मुठभेड़ का नेतृत्व करने वाले देवेंद्र मिश्र कॉन्स्टेबल से डीएसपी के पद तक पहुंचे थे
मुंबई- उत्तर प्रदेश में बांदा ज़िले के मूल निवासी देवेंद्र मिश्र साल 1981 में कॉन्स्टेबल के पद पर यूपी पुलिस में भर्ती हुए थे। विभागीय परीक्षा पास करके वो सब इंस्पेक्टर बने। साल 2005 में उन्नाव ज़िले में आसीवन थाने का इंचार्ज पद संभालते हुए उन्होंने एक शातिर बदमाश का एनकाउंटर किया था जिसकी वजह से उन्हें आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन का इनाम मिला था। इस पदोन्नति ने देवेंद्र मिश्र को इंस्पेक्टर पद तक पहुंचाया। हालांकि उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर बहुत ही संदिग्ध रहे हैं और पुलिस वालों पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर के गंभीर आरोप लगते रहे हैं।
साल 2013 में वाराणसी में कैंट जीआरपी निरीक्षक के रूप में तैनाती के दौरान देवेंद्र मिश्र ने एक ज़हरख़ुरानी गिरोह को धर दबोचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। देवेंद्र मिश्र के साथ काम कर चुके एक पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि अपनी तैनाती के दौरान कई बार अपराधियों के साथ मुठभेड़ में वो शामिल रहे और विभाग में उन्हें बहादुर और चालाक अफ़सर के रूप में जाना जाता था।
पुलिस विभाग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का एक और इनाम देवेंद्र मिश्र को साल 2016 में मिला जब वो दोबारा आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन पाकर पुलिस उपाधीक्षक बने। देवेंद्र मिश्र अभी बिल्हौर में क्षेत्राधिकारी के पद पर तैनात थे और अगले साल मार्च में रिटायर होने वाले थे। मौजूदा वक्त में बांदा ज़िले में तैनात इंस्पेक्टर ब्रजेश यादव देवेंद्र मिश्र के साथ काम कर चुके हैं। ब्रजेश यादव बताते हैं, “जीआरपी में इंस्पेक्टर रहने के दौरान देवेंद्र जी ने अपनी कार्यशैली से सभी का दिल जीता. वह न सिर्फ़ बहादुर अफ़सर थे बल्कि बेहद मिलनसार स्वभाव के भी थे और हर किसी का दिल जीत लेते थे।
बांदा ज़िले के सहेवा गाँव में देवेंद्र मिश्र के परिजन रहते हैं, ”उनकी पत्नी और दो बेटियां कानपुर में ही उनके साथ रहते थे। गांव में देवेंद्र के छोटे भाई राजीव मिश्र और रामदीन मिश्र रहते हैं। देवेंद्र मिश्र के पिता अध्यापक थे।
पुलिस अधिकारी हालांकि इस ऑपरेशन के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताते हैं लेकिन यह ज़रूर कहते हैं कि विकास दुबे को पकड़ने के लिए जो टीम गई थी उसमें अनुभवी, विशेषज्ञ और युवा अधिकारियों को शामिल किया गया था। इसी वजह से देवेंद्र मिश्र को इस टीम का नेतृत्व सौंपा गया था। लेकिन इन सबके बावजूद यह ऑपरेशन इतना विफल कैसे हो गया, इस बारे में कोई भी अधिकारी कुछ भी बताने से कतरा रहा है।
कानपुर में देवेंद्र मिश्र ने लंबा समय गुज़ारा था और यहां के कई थानों के वो प्रभारी रह चुके थे। उनके पड़ोसी गांव जखिनी के रहने वाले उमाशंकर पांडेय बताते हैं, “देवेंद्र मिश्र सिपाही के तौर पर भले ही भर्ती हुए थे लेकिन पढ़ने में तेज़ थे और भर्ती के वक़्त वो ग्रेजुएट थे। उनके अध्यापक पिता ग़रीब ज़रूर थे लेकिन बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में कोई कोताही नहीं की। यही वजह है कि सभी बेटे अच्छी जगहों पर नौकरी कर रहे हैं। साल 2016 में ग़ाज़ियाबाद में तैनाती के दौरान उनका प्रमोशन पुलिस उपाधीक्षक के पद पर हुआ था तो गांव के लोग भी बहुत खुश थे।
प्रमोशन के बाद देवेंद्र मिश्र का तबादला कानपुर में हुआ और वो स्वरूप नगर के सीओ बनकर आए. कुछ समय पहले ही वो सीओ बिल्हौर बनकर गए थे।
उत्तर प्रदेश में डीजीपी रहे रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी वीएन राय कहते हैं, “कॉन्स्टेबल से भर्ती होने वाले पदोन्नति पाकर अधिकतम इंस्पेक्टर तक पहुंच पाते हैं लेकिन डीएसपी की रैंक तक पहुंचना बड़ी उपलब्धि है। इससे पता चलता है कि उस व्यक्ति ने विभाग की कितनी अहम सेवा की है