कोरोना से 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे पहुंचे, लोगों की कमाई घटी, 1.5 करोड़ की नौकरी गई
मुंबई– कोरोना का कम आय वालों यानी गरीबों पर बुरा आर्थिक असर हुआ है। इससे निपटने के लिए सरकार को 8 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की आवश्यकता है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ”स्टेट ऑफ द वर्क 2021” नाम की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह रिपोर्ट कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन और कई अन्य सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन से मिली राय के आधार पर तैयार की गई है।
CMIE-CPHS के डाटा की गणना के आधार पर रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि कोरोना के कारण 2020 में 23 करोड़ लोगों की आय गरीबी रेखा से नीचे आ गई थी। जबकि 1.5 करोड़ लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी। स्टडी से पता चलता है कि करीब आधे औपचारिक वर्कर्स को अनौपचारिक कार्य करना पड़ा। स्टडी के मुताबिक, 2019 के अंत से 2020 के अंत तक 30% सेल्फ एंप्लॉयड, 10% कैजुअल वेज और 9% अनौपचारिक वेतन वाले वर्कर्स की आय में कमी रही।
स्टडी के मुताबिक, अप्रैल-मई 2020 में सबसे गरीब 20% हाउसहोल्ड की आय पूरी तरह से खत्म हो गई। वहीं, इस अवधि में अमीर हाउसहोल्ड को कोविड-19 से पहले की एक तिमाही के बराबर कमाई का नुकसान उठाना पड़ा। इन लोगों को राहत देने के लिए अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कई उपाय सुझाए गए हैं। इन उपायों पर अमल करने के लिए सरकार को अतिरिक्त खर्च के तौर पर 8 लाख करोड़ रुपए की लागत वहन करनी होगी।
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर अमित बासोले का कहना है कि हमने सरकार से जीडीपी का 4.5% या करीब 8 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा है। हमें लगता है कि अन्य देशों ने जो किया है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तुलनीय नहीं है। लेकिन वास्तव में भारत को ऐसा करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, कई राज्यों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत करीब 30% लोगों को राशन भी नहीं मिला। इसकी जांच करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) की जन-धन योजना से ज्यादा पहुंच है। PDS के तहत मुफ्त राशन को जून के बाद भी जारी रहना चाहिए और कम से कम 2021 के अंत तक देना चाहिए। कर्नाटक और राजस्थान में जन-धन अकाउंट की लाभार्थी महिलाओं में से करीब 60% को केवल 1 या दो बार आर्थिक मदद मिली। 30% लाभार्थियों को कोई राशि नहीं मिली। जबकि 10% लाभार्थियों को अपने अकाउंट में उपलब्ध राशि के बारे में ही जानकारी नहीं थी।