आरआईएल कभी रिलायंस कमर्शियल कॉर्प होती थी, मुकेश अंबानी 1977 में कंपनी में आए थे
मुंबई- आज रिलायंस इंडस्ट्रीज से ज्यादा चर्चा जियो की हो रही है। कंपनी के चेयरमैन मुकेश अंबानी टॉप 10 अमीर बिजनेसमैन के क्लब में शामिल हो गए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रिलायंस इंडस्ट्रीज कभी रिलायंस कमर्शियल के नाम से थी? कभी यह रिलायंस टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज के नाम से थी? इसका बिजनेस महज 21 करोड़ था जो आज अरबों डॉलर में है। हम आपको बता रहे हैं कंपनी के कुछ ऐसे ही ऐतिहासिक बदलाव।
1960 के दशक में शुरू हुई कंपनी
मुकेश अंबानी के पिता और रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी और चंपकलाल दमानी ने 1960 में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की। हालांकि यह पार्टनरशिप बाद में खत्म हो गई, पर धीरूभाई अंबानी लगातार पॉलीस्टर बिजनेस में बने रहे। 11 फरवरी 1966 में उन्होंने रिलायंस टेक्सटाइल्स इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की। इसके लिए 15 लाख रुपए कैपिटल के रूप में लगाया गया। 1,672 वर्ग मीटर में यह कंपनी शुरू की गई थी। कंपनी में कुल 70 कर्मचारी थे। यह कंपनी महाराष्ट्र में बनी। हालांकि इसी साल में इसकी एक सिंथेटिक फैब्रिक्स की मिल गुजरात के नरोदा में शुरू हुई।
रिकॉर्ड के मुताबिक, 8 मई 1973 को इसका नाम बदलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज कर दिया गया। हालांकि सालाना रिपोर्ट में रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम 1984-85 में शुरू हुआ। इस दौरान कंपनी का शुद्ध लाभ 7 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया। 1975 में कंपनी का बिजनेस टेक्सटाइल में शुरू हुआ और यह विमल ब्रांड के रूप में स्थापित हुआ। इसके बाद कंपनी 1977 में आईपीओ लाई जो सात गुना भरा था। 1979 में टेक्सटाइल्स कंपनी सिधपुर मिल्स का आरआईएल में विलय किया गया। 1980 के दशक में कंपनी ने पॉलिस्टर यार्न में कदम रखा और इसने महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के पातालगंगा में प्लांट शुरू किया।
1980 के अंत तक कंपनी कपड़ों के ही कारोबार में थी। लेकिन 1990 के दशक में इसने 1991-92 में हजीरा में पेट्रोकेमिकल प्लांट की स्थापना की। 1993 में इसने भारत के बाहर रिलायंस पेट्रोलियम के शेयर जारी किए जिसे ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट (जीडीआर) के नाम से जाना जाता है। 1996 में यह भारत की निजी सेक्टर की पहली कंपनी थी जिसे रेटिंग मिली। यह रेटिंग एसएंडपी ने की थी जो बीबी प्लस थी।
कंपनी की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज से पहले रिलायंस टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज जब थी, तभी मुकेश अंबानी बोर्ड में आ गए थे। 1977-78 की रिपोर्ट के मुताबिक, धीरूभाई अंबानी चेयरमैन और एमडी थे। रमणिक लाल अंबानी ज्वाइंट एमडी थे। इनके अलावा बोर्ड में के गोपाल राव, जयंतीलाल शाह, मानसिंह लाल भक्त, नटवरलाल शाह, रमनलाल पटेल, रसिकलाल मेसवानी थे। बोर्ड के अंतिम नाम के रूप में मुकेश डी अंबानी डायरेक्टर थे। वे बाद में कंपनी में 1980-81 में एग्जिक्युटिव डायरेक्टर बन गए। इसके तीन साल बाद 1983-84 में मुकेश के छोटे भाई अनिल अंबानी भी बोर्ड में शामिल हुए और वे सीधे एग्जिक्युटिव डायरेक्टर बने।
इस समय गुजरात के नरोदा इंडस्ट्रियल इस्टेट के गाला नंबर 103-106 में कंपनी की मिल हुआ करती थी। जबकि रजिस्टर्ड ऑफिस तब के बॉम्बे के तिलक मार्ग पर हुआ करती थी। रिपोर्ट के मुताबिक, 1972-73 में कंपनी की बिक्री 21.14 करोड़ रुपए थी। 1973 में यह 31.61 करोड़ रुपए, 1974-75 में 48.93 करोड़ रुपए, 1975-76 में 66.34 करोड़ रुपए, 1976-77 में 70.77 और 1977-78 में यह आंकड़ा पहली बार 100 करोड़ को पार किया। यह 125.65 करोड़ रुपए पर पहुंच गया।
1972-73 में कंपनी कर्मचारियों की सैलरी पर 56 लाख रुपए सालाना खर्च करती थी। 1977-78 में यह बढ़कर 4.28 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। इसी अवधि में कंपनी का शुद्ध लाभ 69 लाख रुपए से बढ़कर 2.50 करोड़ रुपए हो गया। कंपनी की नेटवर्थ की बात करें तो इसी अवधि में यह 3.31 करोड़ से बढ़कर 14.44 करोड़ रुपए हो गई। कंपनी 1980 तक बैलेंसशीट में लाख में आंकड़ा दिखाती थी, लेकिन उसके बाद इसे मिलियन में दिखाना शुरू किया। 1987-88 में कंपनी ने मिलियन को भी हटाया और आंकड़ों को करोड़ में लिखना शुरू किया। इस दौरान कंपनी की नेटवर्थ 1980 में 31 करोड़ से बढ़कर 1988 में 1,022 करोड़ रुपए हो गई। शुद्ध लाभ इसी अवधि में 11.21 करोड़ रुपए से बढ़कर 80.77 करोड़ रुपए हो गया।
एक बार टेलीकॉम में फेल हो गई कंपनी आज अंबानी के लिए आरआईएल से बडी
जिस टेलीकॉम के दम पर कंपनी आज अपना डंका बजा रही है, उसी टेलीकॉम सेक्टर में अंबानी ने पहले ही भविष्य देख लिया था। 1995-96 में टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश किया गया। इसके लिए अमेरिकी कंपनी एनवाईएनईएक्स के साथ रिलायंस टेलीकॉम लिमिटेड के बीच ज्वाइंट वेंचर किया गया। हालांकि धीरूभाई की मृत्यु के बाद जब बंटवारे में अनिल अंबानी के हिस्से टेलीकॉम आया तो उसके बाद से टेलीकॉम में रिलायंस का नाम ही खत्म हो गया। यह कंपनी आज भी दिवालिया घोषित है। 2010 में यह तीसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी थी।
1998-99 में आरआईएल ने एलपीजी को 15 किलो के पैक में सिलिंडर के रूप में लांच किया और इसका नाम दिया रिलायंस गैस। साल 2001 में रिलायंस इंडस्ट्रीज और रिलायंस पेट्रोलियम भारत की दो सबसे बड़ी कंपनी के रूप में उभरीं। हालांकि 2001-02 में रिलायंस पेट्रोलियम को आरआईएल में मिला दिया गया।
आंकडो़ं के मुताबिक वर्तमान में कंपनी के पास 160 से ज्यादा सब्सिडियरी हैं और 7 एसोसिएट कंपनियां हैं। पर इसमें से जो मेजर कंपनियां हैं उसमें आरआईएल, जियो प्लेटफॉर्म, जियो मार्ट, रिलायंस रिटेल, रिलायंस लाइफ साइंसेस, रिलायंस लॉजिस्टिक्स, रिलायंस क्लिनिकल रिसर्च सर्विसेस, रिलायंस सोलार, आरआईआईएल, एलवाईएफ, नेटवर्क 18 आदि हैं। लेकिन फिलहाल और आगे जो मुकेश अंबानी को भविष्य दिख रहा है, वह टेलीकॉम, रिटेल और आईटी में है। यही कारण है कि मुकेश अंबानी पेट्रोलियम और टेक्सटाइल्स से फोकस कम कर अब पूरी तरह से टेलीकॉम और रिटेल पर जा रहे हैं। यह विजन उनके पिता जी की ही लाइन पर है, जिसमें निचले स्तर के ग्राहकों की जरूरत को ध्यान में रखकर बिजनेस तैयार किया जाए। आज जियो टेलीकॉम और रिटेल के बल पर ही अंबानी की नेटवर्थ, कंपनी का मार्केट कैप रिकॉर्ड स्तर पर है।