एयरसेल और रिलायंस कम्युनिकेशन को कर्ज देने वाले बैंक NCLAT के फैसले को देंगे चुनौती

मुंबई– कर्ज में डूबी टेलीकॉम कंपनियां एयरसेल और रिलायंस कम्युनिकेशंस को कर्ज देने वाले बैंक स्पेक्ट्रम बिक्री को लेकर कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल NCLAT के फैसले को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं। उन्हें डर है कि उनका करीबन 60 हज़ार करोड़ का कर्ज बुरे फंस सकता है। यानी यह NPA बन सकता है। 

नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने 13 अप्रैल को अपने आदेश में यह व्यवस्था दी थी कि “स्पेक्ट्रम का उपयोग बिना सही भुगतान के नहीं किया जा सकता है। इसे इंसॉल्वेंसी एंड बँकरप्सी कोड के तहत नहीं हटाया जा सकता है।  

यूवी असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (UVARCL) एयरसेल और रिलायंस कम्युनिकेशंस की स्पेक्ट्रम असेट्स के लिए एक सफल बोलीदाता के रूप में उभरी है। उसने एयरसेल स्पेक्ट्रम के लिए 150 करोड़ रुपए एडवांस और वित्तीय लेनदारों को अगले पांच वर्षों में 6,630 करोड़ रुपए का पेमेंट करने की पेशकश की है।  

फर्म ने रिलायंस कम्युनिकेशंस और उसकी सहायक कंपनियों की स्पेक्ट्रम होल्डिंग हासिल करने के लिए करीब 14,000 करोड़ रुपए का पेमेंट करने की पेशकश की है। NCLAT के फैसले का असर आरकॉम और रिलायंस टेलीकॉम के डेट रिजोल्यूशन पर भी पड़ेगा। आरकॉम और रिलायंस टेलीकॉम के रिजोल्यूशन प्लान को सभी कर्जदाताओं ने मंजूरी दे दी थी। अब इसे NCLAT की मंजूरी का इंतजार है। 

लेनदारों (creditors) की एक समिति के साथ काम कर रहे सूत्रों के अनुसार, यह आदेश एयरसेल और आरकॉम स्पेक्ट्रम के हस्तांतरण को UVARCL में ब्लॉक कर सकता है। इससे भारतीय और विदेशी बैंकों के लगभग 60,000 करोड़ रुपए फंस सकते हैं। स्पेक्ट्रम ही मेन असेट है जो एयरसेल और आरकॉम दोनों के पास है। अगर एयरसेल और आरकॉम को पहले डिपॉर्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (DoT)का बकाया क्लियर करना होगा तो फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के पास रिकवर करने के लिए कुछ नहीं होगा। सूत्रों ने कहा कि वित्तीय लेनदार (Financial creditors) सुप्रीम कोर्ट में NCLAT के फैसले को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं।  

विशेषज्ञों के अनुसार, NCLAT के फैसले के आधार पर, एयरसेल के लिए UVARCL की योजना सही नहीं होगी और एयरसेल लिक्विडेशन की ओर बढ़ जाएगा। इससे इस पर बैंकों के 18,000 करोड़ रुपए की कुछ भी वसूली नहीं हो पाएगी। सबसे बड़ा नुकसान भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को होगा, जिसका करीबन 5,000 करोड़ रुपए इस पर बकाया है। उसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा, कैनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और चाइना डेवलपमेंट बैंक को नुकसान होगा।  

ग्रॉस रेवेन्यू के आधार पर एयरसेल और आरकॉम का डीओटी पर 12,389 करोड़ और 26,000 करोड़ रुपए बकाया है। आरकॉम और रिलायंस कम्युनिकेशन के लिक्विडेशन से 38 कर्जदाताओं को 40,000 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। इसमें चीनी बैंक के नेतृत्व में चाइना डेवलपमेंट बैंक को 9,000 करोड़ और एलआईसी को 3,700 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। 

अनिल अंबानी की मुश्किलें बढ़ाने में दरअसल उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ही थे। टेलीकॉम इंडस्ट्री में जो आइडिया आज मुकेश अंबानी अपना रहे हैं, वही आइडिया 2005 में अनिल अंबानी ने भी अपनाया था। सबसे सस्ता मोबाइल देकर। 500 रुपए में मोबाइल फोन देकर उन्होंने पूरी दुनिया को मुठ्‌ठी में करने की कोशिश की थी जो आज मुकेश अंबानी डेटा और मोबाइल हैंडसेट में कर रहे हैं।  

दरअसल अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन दक्षिण अफ्रीका की कंपनी एमटीएन से एक डील के लिए बात कर रही थी और इसी बीच मुकेश अंबानी ने इस पर अड़ंगा लगा दिया, जिससे यह डील रुक गई। डील के मुताबिक, अनिल अंबानी एमटीएन के साथ रिलायंस कम्युनिकेशन को मिलाना चाहते थए। वे आरकॉम में अपने शेयरों का एक बड़ा हिस्सा एमटीएन को देना चाहते थे। इससे उन्हें एमटीएन में हिस्सेदारी मिल जाती। ऐसा होने पर आरकॉम दुनिया की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन गई होती। 70 अरब डॉलर में यह डील जैसे ही अंतिम चरण में पहुंची तभी मुकेश अंबानी ने इस पर विरोध दर्ज करा दिया।  

मुकेश अंबानी ने कहा कि अनिल अंबानी की कंपनी में खरीदने का अधिकार पहले उनको है। यह अधिकार जब कंपनी में बंटवारा हुआ था, तभी पारिवारिक समझौते में दिया गया था। हालांकि अनिल ने इस समझौते को कभी भी स्वीकार नहीं किया था। इसी के बाद से आरकॉम की हालत खराब हो गई।  

दरअसल मुकेश की टेलीकॉम में उतरने की इच्छा पहले से थी। भले ही उनकी जियो को इस सेक्टर में आने के लिए 2016 तक इंतजार करना पड़ा, पर इसकी नींव काफी पहले रखी गई थी। 2016 से पहले यह कंपनी इसका बहुत समय तक ट्रायल कर रही थी। मुकेश अंबानी को यह पता था कि ऑयल से डेटा कंपनी बनने के लिए एक समय चाहिए। उन्होंने ग्राहकों की नब्ज को पकड़ा और देखते ही देखते पान की दुकान से लेकर सड़क के हर उस इंसान को डेटा की आदत लगा दी जो दिन भर खाली बैठकर गाने सुनता था। रिलायंस ने शुरुआत में ही डेटा को फ्री कर दिया जिससे सभी कंपनियों को इसके लिए आना पड़ा। 

जियो की ही देन है कि अब हर कोई इस सस्ते डेटा के भरोसे दिन भर मोबाइल फोन का उपयोग करते नजर आता है। जियो आज देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन गई और अनिल अंबानी के सामने अपनी प्रॉपर्टी बचाने के लिए भी दिक्कतें हैं। हालात यह है कि उनका कॉर्पोरेट ऑफिस भी इसी महीने यस बैंक ने 1200 करोड़ रुपए में ले लिया। यह ऑफिस मुंबई के सांताक्रूज इलाके में था।  

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