235 रुपए प्रति शेयर पर आएगा वेदांता का ओपन ऑफर, जनवरी की तुलना में 46.8% ज्यादा भाव मिलेगा
मुंबई– वेदांता की डीलिस्टिंग का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है। कंपनी ने ओपन ऑफर के लिए 235 रुपए प्रति शेयर का भाव तय कर दिया है। मंगलवार की देर रात कंपनी ने एक्सचेंज को इसकी जानकारी दी। निवेशकों को जनवरी की तुलना में 46.8% ज्यादा का भाव मिलेगा। यानी दो महीने में ही निवेशक 46.8 % कमा लिए हैं।
जनवरी में कंपनी ने ओपन ऑफर में प्रति शेयर का भाव 160 रुपए तय किया था। मंगलवार को कंपनी का शेयर बीएसई पर 226 रुपए पर बंद हुआ है। ऐसे में निवेशकों के लिए यह फायदे का सौदा हो गया। इसके अतिरिक्त प्रमोटर्स ने 65.10 करोड़ शेयरों को खरीदने का ऑफर दिया है। पहले 37.17 करोड़ शेयरों को खरीदने की योजना थी।
प्रति शेयर 1.29 रुपए ब्याज
कंपनी ने शेयरों की कीमतों को बढ़ाने के पीछे एक कारण बताया है कि वह इसमें 1.29 रुपए प्रति शेयर ब्याज भी जोड़ रही है। वेदांता रिसोर्सेज ने 8 जनवरी को अपनी 3 सब्सिडियरी ट्विन स्टार, वेदांता होल्डिंग मॉरीशस और वेदांता होल्डिंग मॉरीशस-2 के जरिए नया ओपन ऑफर पेश किया था। कंपनी ओपन ऑफर पर करीबन 15,300 करोड़ रुपए खर्च करेगी। पिछले साल जब कंपनी ने ओपन ऑफर लाने की घोषणा की थी तब अगर ओपन ऑफर पूरा हो जाता तो यह रकम 5,948 करोड़ रुपए होती।
शेयरों में कीमतें बढ़ने से बढ़ाना पड़ा ओपन ऑफर में भाव
ऑफर प्राइस बढ़ाने की प्रमुख वजह शेयरों के भाव में बढ़ोतरी है, जो जनवरी से अब तक करीब 28% बढ़कर 226 रुपए प्रति शेयर पर कारोबार कर रहा है। 29 जनवरी को 161.20 रुपए पर भाव था। कंपनी ने जनवरी में ऑफर प्राइस 160 रुपए प्रति शेयर तय किया था। जब जनवरी में कंपनी ने 160 रुपए प्रति शेयर भाव तय किया था तो वह उस समय के मार्केट प्राइस से 12% कम था।
पिछले साल दरअसल डिलिस्टिंग फेल इसलिए हुई क्योंकि म्यूचुअल फंड के साथ-साथ जो भी निवेशक हैं, सबका एक औसत प्राइस प्रति शेयर 140 रुपए के आस-पास है। किसी ने 140 पर खरीदा, किसी ने 120 पर खरीदा, किसी ने 70 पर तो किसी ने 160 पर खरीदा। अब औसत प्रति शेयर कीमत 140 है तो कोई भी निवेशक इसे 87.25 रुपए में नहीं दे सकता है।
डिलिस्टिंग के लिए अलग-अलग भाव पर शेयर मिले। किसी ने 155 पर ऑफर किया, किसी ने 175 पर ऑफर किया, किसी ने 320 पर ऑफर किया और किसी ने उससे ज्यादा भाव पर ऑफर किया। डिलिस्टिंग के लिए कंपनी ने जे पी मोर्गन को मर्चेंट बैंकर्स चुना था। मर्चेंट बैंकर्स की सलाह पर ही यह भाव रखा गया। दरअसल कंपनी ने इस मामले में कोरोना में फायदा उठाना चाहा। कंपनी को लगा कि 87 रुपए में लोग कोरोना में ऑफर कर सकते हैं। लेकिन इस पर कंपनी फेल हो गई। यह अनुमान गलत साबित हुआ।
विश्लेषकों के मुताबिक कंपनी को इस डिलिस्टिंग के लिए कम से कम 180-190 रुपए प्रति शेयर भाव तय करना चाहिए था। क्योंकि ज्यादातर लोगों ने इससे थोड़े कम भाव पर शेयर खरीदा है। ऐसे में अगर 180-190 होता तो कंपनी की डिलिस्टिंग पूरी हो जाती। हां, क्योंकि एलआईसी के पास 6 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा हिस्सेदारी है। डिलिस्टिंग के लिए 90 प्रतिशत की जरूरत थी। ऐसे में कंपनी अगर 180 रुपए भाव रखती तो बिना एलआईसी के भी यह ऑफर पूरा हो जाता।
इस पूरे मामले में कंपनी ने जल्दबाजी की। अगर उसे कम भाव पर यह ऑफर लाना था तो उसे पहले खुले बाजार से शेयर खरीदना चाहिए था। जब डिलिस्टिंग का ऑफर हुआ था, उस समय शेयर का भाव 92-94 रुपए चल रहा था। अगर उस समय कंपनी खुले बाजार से शेयर खरीदती तो करीबन 75-80 प्रतिशत उसकी हिस्सेदारी हो सकती थी। इसके बाद वह 150-180 के भाव पर 10 प्रतिशत शेयर खरीद सकती थी। इस तरह से कंपनी कम भाव पर ही इस डिलिस्टिंग को पूरा कर सकती थी।
डीलिस्टिंग यानी की कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट है। अब कंपनी चाहती है कि वह लिस्ट ना रहे और प्राइवेट हो जाए। इसलिए कंपनी शेयर बाजार से हटना चाहती है। ओपन ऑफर यानी कोई भी कंपनी जब अपनी कंपनी में बहुत ज्यादा शेयरों को खरीदना चाहती है तो बाजार के रेगुलेटर सेबी के नियमों के मुताबिक उसे ओपन ऑफर लाना होता है। यानी खुले बाजार से उसे निवेशकों से शेयर खरीदना होता है। यह निवेशकों की मर्जी है कि वह इसमें शेयर बेचेगा या नहीं।