नई श्रम संहिताएं महिलाओं की कार्यबल भागीदारी बढ़ाने को तैयार, आर्थिक-सामाजिक बदलाव की ओर बड़ा कदम

महिलाओं की श्रमबल भागीदारी बढ़ाए बिना भारत का आर्थिक लक्ष्य अधूरा रह जाएगा। देश ने 2047 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का संकल्प लिया है, और इसे हासिल करने के लिए श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी 41.7% से बढ़ाकर 70% तक ले जाना अनिवार्य है। इसी लक्ष्य को गति देने के लिए तैयार की गई नई श्रम संहिताएं भारत की आधी आबादी के लिए एक ऐतिहासिक सुधार साबित होने जा रही हैं—ऐसा सुधार जो शिक्षा, डिजिटल पहुंच और उद्यमिता के क्षेत्र में बनी प्रगति को रोजगार के अवसरों से सीधे जोड़ेगा।

चार संहिताएं, एक उद्देश्य: महिलाओं को श्रम बाजार में सुरक्षित, सक्षम और दृश्यमान बनाना

2019–2020 के बीच अधिनियमित चार श्रम संहिताओं—मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, पेशेगत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, और औद्योगिक संबंध—ने 29 पुराने कानूनों को समेकित करके एक सरल, आधुनिक ढांचा तैयार किया है।
इसका लक्ष्य है:

  • महिलाओं की कार्यबल तक पहुंच आसान बनाना
  • कार्यस्थल पर सुरक्षा और सुविधा बढ़ाना
  • रोजगार में निरंतरता और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना

राज्य इन संहिताओं के कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और इससे आने वाले वर्षों में श्रम बाजार का ढांचा व्यापक रूप से बदलने की उम्मीद है।


सामाजिक सुरक्षा संहिता: पहली बार असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को संरक्षित ढांचा

देश की 53% असंगठित श्रमिक महिलाएं हैं—कुल 16 करोड़। ई-श्रम पोर्टल से जुड़ी इस श्रेणी के लिए सामाजिक सुरक्षा संहिता एक मजबूत सुरक्षा तंत्र तैयार करती है।

संहिता में समाहित प्रमुख लाभ:

  • मातृत्व सहायता
  • स्वास्थ्य बीमा
  • पेंशन
  • बच्चों की देखभाल से जुड़ी सुविधाएं
  • गिग और असंगठित श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड

ई-श्रम पोर्टल और आधार-आधारित UAN (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर) के बीच लिंक होने से यह संभव होगा कि महिलाएं किसी भी राज्य या किसी भी सेक्टर में काम करते हुए इन अधिकारों का लाभ ले सकें। इससे उन महिलाओं को बड़ी राहत मिलेगी जो असंगठित कार्यों में असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करती हैं।


पेशेगत सुरक्षा संहिता: बच्चों की देखभाल और कार्यस्थल सुरक्षा का समाधान

महिलाओं के रोजगार छोड़ने की सबसे प्रमुख वजह होती है—बच्चों की देखभाल। नई पेशेगत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संहिता इस चुनौती को सीधे संबोधित करती है।

संहिता के तहत:

  • कार्यस्थलों पर चाइल्डकेयर सुविधाओं को बढ़ावा
  • सुरक्षित और स्वास्थ्यकर वर्किंग कंडीशंस
  • अलग-अलग पालियों में महिलाओं की नियुक्ति की अनुमति
  • उद्योगों में औपचारिक अनुबंधों का प्रोत्साहन

यह ढांचा उन महिलाओं के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है, जो घरेलू जिम्मेदारियों के कारण औपचारिक कार्यबल का हिस्सा नहीं बन पातीं।


मजदूरी संहिता: नीति निर्माण में महिलाओं को संस्थागत स्थान

पहली बार श्रम सुधारों में महिलाओं की आवाज को नीति-निर्माण का अनिवार्य हिस्सा बनाया गया है। मजदूरी संहिता यह सुनिश्चित करती है कि—

  • सभी केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्डों में कम से कम एक-तिहाई महिलाएं हों

यह परिवर्तन श्रम नीति को अधिक संवेदनशील, समावेशी और वास्तविक परिस्थितियों के अनुरूप बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएगा।


मौका बड़ा, जिम्मेदारी उससे भी बड़ी: बदलाव की असली परीक्षा राज्यों के हाथ में

हालांकि केंद्र ने ढांचा तैयार कर दिया है, लेकिन वास्तविक परिवर्तन राज्यों के क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। जिन राज्यों ने—

  • नियमों को सरल बनाया
  • ई-श्रम और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का एकीकरण किया
  • सलाहकार बोर्डों को सक्रिय किया
  • और लिंग आधारित परिणामों की नियमित समीक्षा की

वे रोजगार मानकों के मामले में अग्रणी बनकर उभरेंगे।

इन संहिताओं की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि महिलाएं न केवल कार्यबल का हिस्सा बनें, बल्कि कार्यस्थलों पर आगे बढ़ने के लिए भी उन्हें पर्याप्त सुरक्षा, सम्मान और अवसर मिले।


निष्कर्ष: महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी तो बढ़ेगी भारत की उत्पादकता

नई श्रम संहिताएं भले ही सर्वसमाधान नहीं हैं, लेकिन ये निश्चित रूप से उन संरचनात्मक बाधाओं को तोड़ने का एकमात्र व्यापक प्रयास हैं, जो दशकों से महिलाओं को कार्यबल से दूर रखे हुए थीं। यदि इनका प्रभावी क्रियान्वयन हुआ, तो:

  • महिलाओं की भागीदारी में तेजी आएगी
  • देश की उत्पादक क्षमता बढ़ेगी
  • भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरा उपयोग कर सकेगा

और सबसे महत्वपूर्ण—भारत की विकास यात्रा वास्तव में आधी आबादी को साथ लेकर आगे बढ़ेगी।

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