शुरुआती निवेशकों के लिए निकासी का जरिया बन रहे हैं भारतीय आईपीओ
मुंबई- घरेलू बाजार में आईपीओ की भारी तेजी के बीच मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने इस पर भारी चिंता जताई है। उन्होंने कहा, प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने वाली कंपनी के शुरुआती निवेशकों के लिए यह निकासी का प्रमुख जरिया बनते जा रहे हैं। इससे सार्वजनिक भावना कमजोर हो रही है।
कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के मुंबई में आयोजित कार्यक्रम में नागेश्वरन ने कहा, देश के पूंजी बाजारों को न केवल पैमाने में, बल्कि उद्देश्य में भी विकसित होना चाहिए। इसका सीधा अर्थ यह है कि कंपनियों के बाजार पूंजीकरण या डेरिवेटिव ट्रेडिंग की मात्रा जैसे गलत मील के पत्थर का जश्न मनाने से बचना चाहिए। ये वित्तीय उन्नति के मापदंड नहीं है। ऐसे प्रयासों से केवल घरेलू बचत को उत्पादक निवेश से दूर करने का जोखिम है। हालांकि, भारत ने एक मजबूत और उन्नत पूंजी बाजार विकसित करने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन इसने अल्पकालिक आय प्रबंधन दृष्टिकोण में भी योगदान दिया है, क्योंकि वे प्रबंधन पारिश्रमिक और बाजार पूंजीकरण में वृद्धि से जुड़े हैं।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, भारत के शेयर बाजारों में प्रभावशाली वृद्धि हुई है, लेकिन आईपीओ दीर्घकालिक पूंजी जुटाने के इकोसिस्टम नहीं बन पा रहे हैं। अप्रैल से सितंबर की अवधि के दौरान 50 भारतीय कंपनियों ने आईपीओ के जरिये 65,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। अधिकांश निर्गम मौजूदा निवेशकों की ओर से बिक्री के लिए जारी किए गए थे। इनमें नए शेयर जारी करने की संख्या बहुत कम थी जिससे किसी कंपनी को लाभ होता है।
देश बैंक पर निर्भर नहीं रह सकता
नागेश्वरन ने कहा, देश दीर्घकालिक वित्तपोषण के लिए मुख्य रूप से बैंक ऋण पर निर्भर नहीं रह सकता। दीर्घकालिक उद्देश्यों के वित्तपोषण के लिए एक बड़े बॉन्ड बाजार की रणनीतिक जरूरत है। भारतीय निजी क्षेत्र को सतर्क रहने और जोखिम से बचने के पर्याप्त कारण मिल गए हैं। वे ऐसे निवेश निर्णय नहीं ले रहे हैं जो देश के सामने मौजूद रणनीतिक बाधाओं को अवसरों में बदल सकते हैं।
महत्वाकांक्षा की जरूरत
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने स्पष्ट किया, महत्वाकांक्षा की आवश्यकता है। जोखिम उठाने और दीर्घकालिक निवेश की जरूरत है। अन्यथा, भारत रणनीतिक लचीलेपन के मामले में खुद को कमतर पाएगा। एक ऐसी दुनिया में जहां हम आने वाले वर्षों में सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक बनना चाहते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि दुनिया के अन्य हिस्सों में पैदा हुई कमजोरियों का असर भारतीय बाजारों पर नहीं पड़ना चाहिए। न ही हम यह बर्दाश्त कर सकते हैं कि अन्य जगहों पर पैदा हुई कमजोरियां हमारे बाजारों पर पड़ें। विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा पाने के लिए भारत को घरेलू बुनियाद मजबूत करने पर स्पष्ट ध्यान देने की जरूरत होगी। दुनिया में बड़े बदलावों के बीच आंतरिक स्थिरता जरूरी है।

