आरबीआई के पूर्व उप गवर्नर विरल आचार्य ने कहा, सरकार को बैंकों में पैसा डालना चाहिए
मुंबई– भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व उप गवर्नर (डेप्यूटी गवर्नर) ने एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि सरकार को बैंकों को पैसा देने से दूर नहीं रहना चाहिए। सरकार केवल कर्ज के मोरेटोरियम और ब्याज माफी पर ही फोकस कर रही है।
बता दें कि विरल आचार्य ने इससे पहले भी इसी तरह की राय जताई थी। उन्होंने कहा था कि यह बहुत जरूरी है कि सरकार बैंकों को पैसा दे। उन्होंने कहा कि भारतीय बैकों का कुल बुरा फंसा कर्ज (एनपीए) करीबन 12 लाख करोड़ रुपए है। इससे बैंक काफी दिक्कत में हैं। एनपीए का अनुपात मार्च तक दोगुना हो सकता है।
आचार्य ने कहा कि बैंकों द्वारा रिकवरी ठीक दिख रही है पर इस मामले पर थोड़ा सरकार को भी ध्यान देना चाहिए। हाल ही में भारत में वित्तीय स्थिरता बहाल करने के लिए क्वेस्ट नामक एक पुस्तक लिखने वाले आचार्य ने कहा कि फोकस की यह कमी लोगों को सड़क पर ला सकती है। शॉर्ट टर्म में लाभ के लिए वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
आचार्य ने कहा कि बार-बार की गई इस गलती ने भारत को विपरीत झटकों से अच्छी तरह उबरने से रोक दिया है। उनकी यह टिप्पणी भारत द्वारा छह महीने तक कर्ज के मोरेटोरियम की शर्तों को कानूनी चुनौती के बाद 2 करोड़ रुपए तक के सभी लोन पर ब्याज को माफ करने के ऑफर के कुछ हफ्तों बाद आई है। आचार्य ने कहा कि अगर सरकार को बैंकों को समय पर पैसे देना चाहिए। वरना लोन मोरेटोरियम और माफी जैसी योजनाओं से बैंकों को आगे कर्ज देने में और दिक्कत हो सकती है। यह पिछली गलतियों से सबक सीखने और बैंक के उधारकर्ताओं और वास्तविक अर्थव्यवस्था के लिए नरमी बरतने का समय है। बैंक बैलेंसशीट की भी ऐसे समय में रिपेयरिंग करने की जरूरत है।
आचार्य ने कहा कि शॉर्ट टर्म में जरूरत से ज्यादा कर्जदारों के पक्ष में होने वाले मोरेटोरियम और माफी, मीडियम टर्म में क्रेडिट ग्रोथ की ठोस रिकवरी के लिए नुकसानदेह होती है। उन्होंने कहा कि हालांकि नए रिस्ट्रक्चर (पुनर्गठन) पैकेज को यह सुनिश्चित करने के लिए ठीक-ठाक किया गया है कि इसका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है। पुनर्गठन के माध्यम से होने वाले नुकसान के लिए फंड को अलग रखा जाना चाहिए ताकि बैंक विकास का गला न घोंट सकें। क्योंकि महामारी के बाद अर्थव्यवस्था ठीक होना शुरू हो जाती है।