डॉलर की तुलना में रुपया अब 83 के पार पहुंचा, आगे और गिरेगा 

मुंबई- भारतीय रुपया बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर रिकॉर्ड स्तर तक लुढ़क गया। अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड्स के भाव बढ़ने से डॉलर में फिर मजबूती आई है। रुपया पिछले सत्र में 82.36 से नीचे गिरकर 83.02 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। 

निजी क्षेत्र के एक बैंक के एक व्यापारी ने कहा, “एक बार जब आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) 82.40 के स्तर से रुपये को सहारा देना बंद किया तो इसमें तेज बिकवाली देखने को मिली। जब तक आरबीआई इसे दोबारा सहारा नहीं देता है तब तक रुपये में गिरावट के लिए कोई स्तर तय नहीं किया जा सकता है।” 

बता दें कि बुधवार को रुपये में डॉलर के मुकाबले करीब 66 पैसे यानी लगभग 0.8% की गिरावट देखने को मिली है। पिछले कारोबारी सेशन में यह 82.36 के स्तर पर बंद हुआ था।   

रुपये की गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस साल अब 43.15 अरब डॉलर की बिकवाली की है। अगस्त में 4.25 अरब डॉलर बेचा गया है। हालांकि, पिछले साल सितंबर में आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार 642 अरब डॉलर था, जो 110 अरब डॉलर घटकर 532 अरब डॉलर पर आ गया है। इस साल में डॉलर के मुकाबले रुपया में अब तक 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है और यह अभी भी 82 के पार है। ऐसे में संभावना है कि आरबीआई आगे भी रुपये की गिरावट को थामने के लिए डॉलर की बिकवाली करता रहेगा। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का मानना है कि इस साल के अंत तक रुपया 84 तक जा सकता है। 

आरबीआई ने जुलाई में विदेशी विनिमय प्रवाह को उदार बनाने के लिए कुछ घोषणा की थी। इसमें विदेशी निवेशकों को सरकारी ऋण के एक बड़े हिस्से तक पहुंच प्रदान करने और अनिवासी भारतीयों से ज्यादा जमा जुटाने के लिए बैंकों को व्यापक अवसर देना था। लेकिन ये उपाय उतना प्रभावी नहीं हुए, जितना 2013 में ये प्रभावी हुए थे। उस समय फॉरेन करेंसी नॉन रेसिडेंट अकाउंट (एफसीएनआर) जमा को 3 साल की परिपक्वता अवधि पर 3 फीसदी की दर से अदला-बदली की गई थी जो बाजार भाव से 3 फीसदी कम था। उस समय दो बार ऐसा अदला-बदली करने से 34 अरब डॉलर का निवेश आया था जिसमें 26 अरब डॉलर एफसीएनआर के जरिये आया था। 

हालांकि, इस बार एफसीएनआर का यह रास्ता उतना सफल नहीं होने वाला है। इस समय भारत के 3 साल के बॉन्ड पर 7.5 फीसदी का ब्याज मिल रहा है और अमेरिका में यह 4.5 फीसदी है। इस 3 फीसदी के अंतर से निवेशकों को कोई मुनाफा होने की संभावना नहीं है। क्योंकि इस समय हेजिंग की लागत ही 6.5 से 7 फीसदी है। अगर आरबीआई ऐसे में छूट भी देता है तो भी मुश्किल है। 

इस साल के पहले 2013 में डॉलर के मुकाबले रुपया में 11 फीसदी की गिरावट आई थी। तब भी आरबीआई ने इसे थामने के लिए डॉलर की बिकवाली की थी। हालांकि, तब और अब की आर्थिक स्थितियां अलग हैं। मदन सबनवीस कहते हैं कि विदेशी मुद्रा भंडार का फिर से निर्माण करना बहुत जरूरी है। क्योंकि बुनियादी स्तर पर प्रतिकूलता बहुत है। 

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