मोराटोरियम खत्म होने के बाद अब कर्ज चुकाने में बढ़ी दिक्कत, छोटे व्यापारियों के पास नहीं हैं लोन लौटाने के पैसे

मुंबई– देश में छोटे व्यापारी जो पहले से ही महामारी के बीच संघर्ष कर रहे थे, अब मोराटोरियम के समाप्त होने के बाद कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष करने लगे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उधारकर्ताओं को कर्ज चुकाने के लिए 31 अगस्त तक के लिए मोराटोरियम की सुविधा दी थी। इसमें देश के 1.8 ट्रिलियन डॉलर के लोन का लगभग एक तिहाई हिस्सा इन उधारकर्ताओं के पास है।  

हर तरफ से मांग में कमी आई है। हालांकि फिर भी बिजनेस जैसे-तैसे उठ खड़े होने की कोशिश में लगे हुए हैं, पर उनके समक्ष चुनौती यह है कि वह पहले लोन चुकाएं, या बिजनेस संभालें या फिर अपने बिजनेस पर ताला लगाएं। जयपुर के साधू यादव फ़िलहाल इसी दुविधा में हैं। वे एक ट्रैवल एजेंसी के मालिक हैं और लॉक डाउन के बाद से कोई काम नहीं हुआ है।  

उन्हें मोराटोरियम से अस्थायी राहत जरूर मिली जिससे उन्हें कर्ज चुकाने में 45 लाख रुपए महीने बचाने में मदद मिली। मोराटोरियम समाप्त होने के बाद अब उनको यह चिंता सताए जा रही है कि वह अपना लोन किस तरह चुकाएंगे। क्योंकि बिजनेस अभी भी पूरी तरह से बंद है। इसके अलावा दूसरे कर्मचारियों की सैलरी तथा अन्य बकाया भी उन्हें चुकाना है। 

कॉस्मोस एजेंसीज एलएलपी के मैनेजिंग डायरेक्टर फिलिप ने कहा कि रिजर्व बैंक को बैंकों से मोराटोरियम बढ़ाने के लिए कहना चाहिए। नहीं तो मेरे जैसे दूसरे लोगों के लिए कर्मचारियों की छंटनी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। हालांकि केंद्रीय बैंक ने बैंकों को मोराटोरियम का विस्तार करने और कर्ज पुनर्गठन की अनुमति देकर उधारकर्ताओं को कुछ राहत प्रदान की है, लेकिन यह प्रक्रिया अपने आप होने वाली नहीं है।  

बैंक दो साल तक एक्सटेंशन दे सकते हैं और उनके पास दिसंबर तक का समय है कि उन्हें कौन से लोन की रीस्ट्रक्चरिंग करनी है। इसे जून 2021 तक किया जाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 31 अगस्त कर कर्ज पर ब्याज माफ करने का आंकलन करने के लिए एक पैनल भी स्थापित किया है। कई छोटे व्यवसायों के लिए जो भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 30% का योगदान करते हैं, उनके लिए यह राहत पर्याप्त नहीं है। एक चौथाई छोटे कारोबारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली करीब 1.75 करोड़ दुकानें बंद होने की कगार पर हैं। अर्थव्यवस्था के लिए अगले तनाव की दूसरी लहर आने की संभावना है। पर उनका यह भी कहना है कि अगर तमाम छोटे-बड़े और मझोले उद्योगों को 6 महीने की राहत नहीं मिली होती तो अब तक कितनी कंपनियां बंद हो गई होती और कितने लोग बेरोजगार हो गए होते।  

जब से लॉकडाउन लगा है तब से मांग और खपत दोनों में काफी गिरावट आई है। इसी दौरान लाखों लोगों की नौकरी भी चली गई है। हालांकि अनलॉक के बाद स्थितियां धीरे-धीरे सुधरने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं, पर अभी भी तस्वीर कोई बहुत अच्छी नहीं दिखाई दे रही है। बैंक इस समय मोराटोरियम को बढ़ाने के खिलाफ हैं क्योंकि वे इसमें खुद का बड़ा नुकसान और उधार लेनेवालों के लिए एक बड़ी राहत देख रहे हैं। खासकर उनके लिए जिनके पास पैसे देने की क्षमता तो है, पर दे नहीं रहे हैं। क्रिसिल लिमिटेड ने 2,300 कंपनियों का विश्लेषण किया और पाया कि मोराटोरियम चुनने वाले लगभग 75% व्यवसाय सब-इन्वेस्टमेंट ग्रेड के थे।  

इसमें कहा गया है कि जूलरी, होटल और ऑटोमोबाइल डीलर्स जैसे क्षेत्रों में हर पांचवीं कंपनी ने मोराटोरियम के लिए आवेदन किया है। एक कंपनी के अधिकारी के मुताबिक अगर हमें सरकार से कोई राहत नहीं मिलती है तो हम अपने कारोबार के संभावित बंद करने की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि हमारा बिज़नेस अभी भी ठप पड़ा हुआ है इसलिए हमें हमारा भविष्य अंधकार में दिखाई दे रहा है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए। 

बता दें कि मोराटोरियम पर अभी भी लड़ाई कोर्ट में है। बैंक अब ब्याज पर ब्याज मांग रहे हैं। जबकि जिन लोगों ने मोराटोरियम लिया है, वे इसके खिलाफ हैं। यहां तक कि आरबीआई भी बैंकों के पक्ष में है। पर यह एक तरह से और ज्यादा भार कंपनियों पर डालेगा। क्योंकि अभी तो बिजनेस चालू करने और उसे स्थिर करने में ही समय लगेगा। ऐसे में मूलधन की बजाय ब्याज पर ब्याज लेना कंपनियों के लिए एक और झटका होगा।  

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