अगले साल पूरी दुनिया को करना पड़ सकता है मंदी का सामना
मुंबई- सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च के अनुसार, दुनिया को 2023 में मंदी का सामना करना पड़ेगा। ग्लोबल इकोनॉमी 2022 में पहली बार 100 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गई, लेकिन 2023 में ठप हो सकती है।
CBIR में डायरेक्टर और फोरकास्टिंग हेड केए डेनियल नेउफेल्ड ने कहा, ‘इस बात की संभावना है कि बढ़ी महंगाई के जवाब में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण वर्ल्ड इकोनॉमी को अगले साल मंदी का सामना करना पड़ेगा। महंगाई के खिलाफ लड़ाई अभी जीती नहीं है।’
भारत 2035 में 10 ट्रिलियन डॉलर की तीसरी और 2032 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। वहीं चीन को अब दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने में 6 साल ज्यादा लगेंगे। पहले इसके 2036 तक सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की उम्मीद थी, लेकिन अब इसमें 2042 तक का समय लग सकता है। रिपोर्ट के अनुसार चीन की जीरो कोविड पॉलिसी और पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक तनाव के कारण उसका विकास धीमा पड़ गया है।
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 2037 तक दुनिया की GDP दोगुनी हो जाएगी, क्योंकि डेवलपिंग इकोनॉमीज अमीरों के बराबर हो जाएंगी। शक्ति के बदलते संतुलन से 2037 तक पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र का ग्लोबल आउटपुट में एक तिहाई से ज्यादा का योगदान होगा, जबकि यूरोप का हिस्सा पांचवे से भी कम हो जाएगा।
मंदी की शुरुआत में, जैसे-जैसे कंपनियां कम मांग, घटते मुनाफे और ऊंचे कर्ज का सामना करती हैं, कई कंपनिया कॉस्ट कटिंग करने के लिए इम्पलॉइज की छंटनी शुरू कर देती हैं। बढ़ती बेरोजगारी कई संकेतकों में से एक है जो मंदी को परिभाषित करती है। मंदी में कंज्यूमर कम खर्च करते हैं और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन भी धीमा हो जाता है।