टाटा ग्रुप में उत्तराधिकार योजना, एक व्यक्ति टाटा संस और टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन नहीं हो सकता  

मुंबई- टाटा ग्रुप ने भविष्य में किसी तरह की लड़ाई से निपटने का खाका तैयार कर लिया है। यह उत्तराधिकार की योजना पर काम कर रहा है। टाटा संस के बोर्ड ने पिछले हफ्ते एक विशेष प्रस्ताव पास किया। इसके अनुसार, टाटा संस और टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता।  

टाटा के सूत्रों ने बताया कि यह प्रस्ताव उसी बैठक में पास किया गया जिसमें टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन को पांच साल के लिए फिर से नियुक्त किया गया है। अब इसे टाटा संस के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन में शामिल किया जाएगा। टाटा संस के मानद (emeritus) चेयरमैन रतन टाटा भी विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में इस मीटिंग में शामिल हुए थे।  

टाटा ट्रस्ट ने हाल ही में टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्ट के नॉमिनी व्यक्तियों की उम्र सीमा 70 वर्ष से बढ़ाकर 75 वर्ष कर दी है। टाटा ट्रस्ट के वाइस चेयरमैन और टाटा संस के बोर्ड सदस्य वेणु श्रीनिवासन 70 साल के करीब हैं। टाटा ट्रस्ट के एक अन्य वाइस चेयरमैन विजय सिंह ने 2018 में 70 साल के होने पर टाटा संस के बोर्ड को छोड़ दिया था। इन्हें फिर से बोर्ड में नियुक्त किया जाएगा। 

बेहतर कॉर्पोरेट गवर्नेंस सुनिश्चित करने के लिए दोनों पदों को अलग-अलग व्यक्तियों के संभालने का प्रस्ताव पास किया गया। नोएल टाटा को हाल ही में पिछले हफ्ते सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के बोर्ड में एक ट्रस्टी के रूप में शामिल किया गया था। यह टाटा के दो प्रमुख ट्रस्टों में से एक है। 


टाटा ग्रुप के इस कदम से मैनेजमेंट और शेयरधारकों के बीच संतुलन की उम्मीद है। यह बेहतर गवर्नेंस के लिए चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर की भूमिकाओं को अलग करने के लिए सेबी के नियमों के समान है। टाटा संस और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बनने वाले रतन टाटा अंतिम व्यक्ति थे और संभवत: आगे दोनों पदों पर विराजमान होने वाले वे आखिरी शख्स होंगे।

मिस्त्री परिवार की कंपनी साइरस इन्वेस्टमेंट्स द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में टाटा ने कहा था कि मैं इन ट्रस्ट का वर्तमान चेयरमैन हूं। यह भविष्य में कोई और हो सकता है। जरूरी नहीं कि उसका सरनेम ‘टाटा’ ही हो। एक व्यक्ति का जीवन सीमित होता है जबकि ये संगठन यूं ही चलता रहेगा। टाटा परिवार के सदस्यों का इन पदों पर कब्जा जमाने के लिए कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है।

इस फैसले का तर्क टाटा ट्रस्ट और टाटा परिवार को टाटा संस के कामकाज में उत्पन्न होने वाले विवादों और मुद्दों से अलग करना हो सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि टाटा संस और अन्य टाटा कंपनियों के शेयरधारक टाटा ट्रस्ट द्वारा लिए गए निर्णयों की स्वतंत्रता के बारे में कोई आपत्ति नहीं उठाएं।

टाटा ने यह भी कहा था कि वह और उनके रिश्तेदार टाटा संस में 3% से भी कम के मालिक हैं। टाटा संस की इक्विटी का लगभग 66% हिस्सा टाटा परिवार के सदस्यों के परोपकारी ट्रस्टों के पास है। इनके दो बड़े ट्रस्ट के नाम सर दोराब जी टाटा और सर रतन टाटा ट्रस्ट हैं।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *