इंडिविजुअल टैक्स रेट में बदलाव की कम उम्मीद, डिडक्शन पर मिल सकती है राहत

मुंबई- बजट 2022 नजदीक है। देश के लाखों टैक्स पेयर्स वित्त मंत्री से कुछ खुशी और राहत पाने की उम्मीद कर रहे हैं। बढ़ती महंगाई ने हर किसी की कमर तोड़ रखी है। बावजूद इसके इंडिविजुअल टैक्स रेट में बदलाव की उम्मीद बहुत ही कम है।  

अर्नेस्ट एंड यंग के सोनू अय्यर ने एक नोट में कहा कि टैक्स पेयर्स को उम्मीद है कि बजट में टैक्स और सरचार्ज कम होगा और 80C के तहत उपलब्ध कटौती बढ़ेगी। इसके अलावा वे होम लोन के रीपेमेंट में राहत चाहते हैं। डिविडेंड टैक्सैशन पर राहत मिलने की हालांकि उम्मीद है। विभिन्न असेट क्लास पर लगने वाले कैपिटल गेन्स को तार्किक बनाने, सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) को हटाने तथा आम आदमी आदि द्वारा प्राप्त सेवाओं पर GST को हटाने  की उम्मीद कर रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें तो टैक्स पेयर्स की बस यही उम्मीद है कि उनके हाथ में ज्यादा से ज्यादा पैसा बचा रहे। 

उनका कहना है कि सरकार टैक्स पेयर्स की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम होगी या नहीं इसे हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के नजरिए से समझने की जरूरत है। इनमें कोविड-प्रभावित आबादी को खाद्यान्न और अन्य लाभों का निरंतर प्रावधान, मनरेगा भुगतान, MSMEs के लिए सुरक्षा, अर्थव्यवस्था को वित्तीय प्रोत्साहन, बढ़े हुए पूंजीगत खर्च के पूरे चक्र के माध्यम से खपत में वृद्धि को ध्यान में लाया जाना चाहिए। 

अय्यर के मुताबिक, भले ही महामारी की छाया बड़ी बनी हुई है और यह अभी तक अज्ञात है कि कोविड-19 का अतिरिक्त वित्तीय प्रभाव क्या होगा, पर अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से अर्थशास्त्री वित्त वर्ष 2022 के लिए 9.2% की GDP वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं। सरकार अपनी ओर से GDP की वृद्धि को पूरा करने के लिए अपने पूंजीगत खर्च (कैपेक्स) को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रकार अपनी कैपेक्स की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होने के लिए टैक्स रिसीट्स पर निर्भर रहना जारी रहेगा। टैक्स रिसीट्स पर निर्भरता अधिक है क्योंकि कैपेक्स को फाइनेंस करने के लिए आगे उधार लेना अच्छा नहीं है। 

वे कहते हैं कि यह तर्क दिया जा सकता है कि टैक्स रिसीट्स के मजबूत कलेक्शन से सरकार को टैक्स पेयर्स को कुछ टैक्स छूट देने के लिए जगह मिलनी चाहिए। हालांकि अनुमानित GDP वृद्धि के लिए टैक्स में उछाल बहुत जरूरी है। यह भी आवश्यक है कि सरकार को राजकोषीय घाटे के लिए योजना न बनानी पड़े जैसा कि पिछले एक दशक में साल दर साल होता आ रहा है।  

चूंकि कोरोनावायरस महामारी की समाप्ति की कोई निश्चित तारीख नहीं है, इसलिए सरकार को एक बफर जोन बनाकर चलना होगा। एक पॉलिसी के दृष्टिकोण से, टैक्स बेस को और बढ़ाने के लिए सरकार पहले से ही कम टैक्स रेट दरों की दिशा में कटौती के बिना आगे बढ़ रही है। कन्सेशनल टैक्स रीजीम (CTR) के तहत, व्यक्ति और हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) टैक्स पेयर्स अपनी कुल आय को टैक्स की निचली स्लैब दर पर ऑफर कर सकते हैं, बशर्ते वे अधिकांश कटौती, छूट, फॉरवर्ड लॉस को छोड़ते हैं।  

टैक्स पेयर्स के लिए CTR व्यवस्था वैकल्पिक है। इसे चुनने का निर्णय प्रत्येक वर्ष किया जा सकता है बशर्ते कि टैक्स देनेवाले की उस वित्तीय वर्ष में बिजनेस या प्रोफेशनल इनकम न हो। अन्य मामलों में इस ऑप्शन को सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल में लाया जा सकता है। CTR की सफलता का मूल्यांकन करने के लिए डेटा अभी भी सामने नहीं आए हैं। 

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