धीरे- धीरे खत्म हो जाएगी गैस पर मिलने वाली सब्सिडी
मुंबई- पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (Petroleum Planning & Analysis Cell) के अनुसार सक्रिय घरेलू गैस कनेक्शन (Active Domestic Gas Connection) और अनुमानित घरों की संख्या के आधार पर भारत में 99.8 प्रतिशत घरों में लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) कनेक्शन है। हो सकता है कि ये सटीक आंकड़ा नहीं हो क्योंकि ये घरेलू गैस कनेक्शन की संख्या को 2011 की जनगणना के आधार पर निर्धारित घरों की संख्या से भाग देने के बाद निकाला गया है।
हाल में एलपीजी की ख़ुदरा क़ीमत में बढ़ोतरी और पिछले एक साल से ज़्यादा समय से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर पेमेंट (डीबीटी) की अनुपस्थिति से संकेत मिलता है कि एलपीजी सब्सिडी ख़ामोशी से ख़त्म कर दी गई है. लेकिन अगस्त 2021 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कि क्या एलपीजी सब्सिडी ख़त्म कर दी गई है, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी) ने कहा कि सरकार घरेलू एलपीजी की वास्तविक क़ीमत को व्यवस्थित करने में लगी हुई है और एलपीजी पर सब्सिडी अंतर्राष्ट्रीय दाम और सरकार के फ़ैसले- दोनों पर निर्भर है. लेकिन पीपीएसी के आंकड़ों के मुताबिक़ घरेलू एलपीजी के लिए डीबीटी के रूप में आख़िरी सब्सिडी का भुगतान जुलाई 2019 में किया गया था।
तब से घरेलू एलपीजी का ख़ुदरा दाम बुनियादी क़ीमत, डीलर कमीशन और जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स) को जोड़कर बना हुआ है. उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2021 में करों और सब्सिडी से पहले एलपीजी की क़ीमत 780.52 रु./सिलेंडर थी और घरेलू उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली क़ीमत 884.5 रु./सिलेंडर थी जिसमें 61.84 रु./सिलेंडर डीलर का कमीशन और 42.14 रु./सिलेंडर जीएसटी शामिल था।
अप्रैल 2014 से एलपीजी के खुदरा दाम में लगभग 113 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और ये 414 रु./सिलेंडर से बढ़कर अक्टूबर 2021 में 884.5 रु./सिलेंडर पर पहुंच गया है। “बोझ साझा करने” के कार्यक्रम, जो दिसंबर 2015 से अक्टूबर 2017 के बीच था, के तहत सबसे ज़्यादा बोझ (तेल कंपनियों के बीच) ओएनजीसी (तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम) ने उठाया जो दिसंबर 2015 में 50 रु./सिलेंडर तक पहुंच गया था. सरकार की तरफ़ से दाम में समर्थन (या तो खुदरा क़ीमत में छूट के ज़रिए या डीबीटी के रूप में) ने नवंबर 2018 में सबसे ज़्यादा 435 रु./सिलेंडर की ऊंचाई को छुआ। इसके बाद ये गिरकर जुलाई 2019 में लगभग 140 रु./सिलेंडर तक पहुंच गया. जुलाई 2019 के बाद सरकार की तरफ़ से एलपीजी सब्सिडी पर भुगतान का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
अगस्त 2021 में लोकसभा में उठाए गए एक प्रश्न कि वैश्विक क़ीमत में गिरावट के बावजूद एलपीजी की खुदरा क़ीमत ज़्यादा क्यों बनी हुई है, के जवाब में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री ने एक अस्पष्ट सी बात कही जिसमें ये साफ़ तौर पर नहीं कहा गया कि एलपीजी सब्सिडी हटा ली गई है।
हालांकि एलपीजी की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमत महामारी से जुड़े लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद बढ़ने लगी है लेकिन पिछले छह वर्षों से क़ीमत घट रही थी। 2013-14 (वित्तीय वर्ष) और 2019-20 के बीच एलपीजी की अंतर्राष्ट्रीय क़ीमत में 48 प्रतिशत की गिरावट आई और 2013-14 और 2020-21 के बीच इसमें लगभग 31 प्रतिशत की कमी आई. अप्रैल 2014 और अक्टूबर 2021 के बीच एलपीजी के खुदरा दाम में 110 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। एलपीजी का अंतर्राष्ट्रीय दाम मायने रखता है क्योंकि कुल एलपीजी खपत में एलपीजी आयात का हिस्सा 2011-12 के लगभग 37 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 57 प्रतिशत हो गया है।