कार्बन उत्सर्जन सीमा और हल्की कारों के लिए नए मानक से ऑटो कंपनियां परेशान
मुंबई- देश की ऑटो कंपनियां सरकार के नए नियमों को लेकर परेशान हैं। सरकार ने 2027 से कारों के कार्बन उत्सर्जन को एक तिहाई तक घटाने की योजना बनाई है। ये पहले के लक्ष्य से दोगुना तेज है। इस कदम को लेकर देश की प्रमुख ऑटो कंपनियां चिंतित हैं। उनका कहना है कि यह बहुत आक्रामक रवैया है। अगर इसे लागू किया गया तो इंडस्ट्री का टिकाऊ विकास खतरे में पड़ सकता है।
भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता संघ (सियाम) ने ऊर्जा मंत्रालय को भेजे पत्र में कहा, अगर प्रस्तावित नियम लागू हुए तो इंडस्ट्री को अरबों रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है। भविष्य के निवेश भी रुक सकते हैं। यह सुझाव देश की कॉरपोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी (सीएएफई) नियमों के तीसरे चरण को लेकर दिया गया है। यह नियम 2017 में शुरू किए गए थे, ताकि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाया जा सके और तेल पर निर्भरता कम की जा सके।
भारत दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जनकर्ताओं में से एक है। 137 अरब डॉलर का ऑटो उद्योग इसमें प्रमुख योगदाने देता है। सरकार छोटी और हल्की कारों के लिए भारी मॉडलों की तुलना में अलग मानक लागू करने का प्रस्ताव कर रही है, लेकिन कार निर्माता इसका विरोध कर रहे हैं। इस नियम से मारुति सुजुकी जैसी कंपनियों को लाभ हो सकता है, जो देश के छोटी कार बाजार पर हावी हैं व कंप्रेस्ड गैस और हाइब्रिड प्रौद्योगिकी में भारी निवेश कर रही है।
सूत्रों ने बताया, मारुति और टोयोटा किर्लोस्कर के नेतृत्व में एक लॉबी हाइब्रिड, इथेनॉल-मिश्रण मॉडल और गैस चालित कारों के लिए भी इलेक्ट्रिक वाहनों के समान उत्सर्जन क्रेडिट प्रोत्साहन देने की वकालत कर रही है। कुछ कंपनियों का कहना है कि आकार के आधार पर मानकों को विभाजित करने से कुछ कंपनियों को लाभ होगा। भारत 2040 तक पेट्रोल और डीजल वाहनों की बिक्री बंद करने का विचार कर रहा है। इस प्रस्ताव को लगातार प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। सियाम ने चेतावनी दी है कि इस तरह के कठोर कदम मौजूदा और भावी निवेश दोनों को कमजोर कर देंगे।