चुनौतीपूर्ण आर्थिक स्थितियों के बावजूद भारत वैश्विक विकास का प्रमुख चालक

मुंबई- बढ़ते व्यापार व देशों के बीच लंबे समय तक चलने वाले तनाव और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से होने वाले प्रभावों से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक विकास का एक प्रमुख चालक बनी हुई है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सोमवार को जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट यानी एफएसआर के मुताबिक, चूंकि भारत की वृद्धि मुख्य रूप से घरेलू मांग में उछाल के कारण है, इसलिए यह वैश्विक चुनौतियों से अछूता रहता है। भारतीय अर्थव्यवस्था स्वस्थ गति से बढ़ रही है, जो महंगाई में लगातार कमी के साथ मिलकर व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता में सहायता कर रही है। घरेलू वित्तीय प्रणाली बैंकों और गैर-बैंकिंग कंपनियों की स्वस्थ बैलेंस शीट से मजबूत बनी हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय बाजारों में कम अस्थिरता और उदार मौद्रिक नीति से समर्थित वित्तीय स्थितियांआसान हुई हैं। अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली टैरिफ वाले झटकों का सामना करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं। हालांकि, देशों के बीच संघर्षों में वृद्धि से जोखिम एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है। शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) की पूंजी स्थिति मजबूत हुई। लाइफ और जनरल दोनों क्षेत्रों में बीमा क्षेत्र बेहतर बने हुए हैं।

हालांकि, घरेलू वित्तीय प्रणाली बाहरी प्रभावों से प्रभावित हो सकती है। बढ़ते व्यापार व्यवधान और देशों के बीच तनाव से घरेलू विकास प्रभावित हो सकता है, जिससे बैंक कर्ज की मांग घट सकती है। इससे निवेशकों में जोखिम से बचने का रुझान भी बढ़ सकता है। इससे घरेलू इक्विटी बाजारों में और सुधार हो सकता है।

कर्ज में तेज वृद्धि के साथ अधिकांश प्रमुख विकसित और उभरते देश ब्याज के रूप में सरकारी राजस्व का बड़ा हिस्सा चुका रहे हैं। आगे इनके ऋण स्तरों में और वृद्धि होने का अनुमान है, क्योंकि देश आर्थिक गतिविधि का समर्थन करने के लिए अधिक ऋण जारी करते हैं। उन देशों में ऋण स्थिरता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

2024-25 के दौरान सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई यह दर्शाता है कि भारत एक आकर्षक निवेश गंतव्य बना हुआ है। हालांकि, शुद्ध एफडीआई में कमी आई। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) 2024-25 के दौरान कम हुआ। 2024-25 के दौरान शुद्ध पूंजी प्रवाह चालू खाता घाटा से कम हो गया, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई। हालांकि, एफपीआई निकासी जीडीपी के छह फीसदी पर पहुंच सकती है।

20 जून, 2025 तक 697.9 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। यह 11 महीने से अधिक के व्यापारिक आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है। अप्रैल, 2025 से रिजर्व बैंक के तरलता बढ़ाने के उपायों और नीतिगत दरों में कटौती से वित्तीय स्थितियां आसान हुई हैं। रिजर्व बैंक ने 9.5 लाख करोड़ की टिकाऊ तरलता बैंकिंग प्रणाली में डाली है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *