मुद्रा योजना ने 10 साल में महिलाओं और पिछड़े वर्गों की बदल दी जिंदगी

मुंबई- 2016 में शुरू प्रधानमंत्री मुद्रा योजना यानी पीएमएमवाई ने पिछले एक दशक में महिलाओं और पिछड़े वर्गों की जिंदगी बदल दी है। अब तक कुल 52 करोड़ से अधिक बैंक खाते खुले हैं। बैंकों ने इनको 27.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया है।

एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2014 में एमएसएमई को कुल 8.5 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिया गया, जो 2023-24 में तीन गुना बढ़कर 27.5 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया। 2024-25 में यह 30 लाख करोड़ रुपये को पार कर सकता है। अब तक 52 करोड़ खाते खुले हैं। इसमें से 40 करोड़ यानी 78 फीसदी खाते शिशु कैटेगरी के हैं। 10 करोड़ यानी 20 फीसदी किशोर के और दो करोड़ यानी दो फीसदी तरुण के हैं।

कुल खातों में शिशु का हिस्सा 2024-25 में कम होकर 51.7 फीसदी हो गया, जो 2025-26 में 93 फीसदी था। किशोर का हिस्सा 5.9 फीसदी से बढ़कर 44.7 फीसदी पर पहुंच गया है। इसका मतलब यह कि जिन लोगों ने शिशु के तहत कर्ज लिया वे अब किशोर की श्रेणी में आ गए हैं।

2015-16 में कर्ज का औसत आकार 38,000 रुपये था। अब यह 1.02 लाख रुपये हो गया है। 51 करोड़ खातों में से आधे खाते सामान्य श्रेणी वालों के हैं। कुल खातों में महिला उद्यमी का हिस्सा 68 फीसदी है। 2016 से अब तक के 9 वर्षों में प्रति महिलाओं को वितरित रकम सालाना 13 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़कर 62,679 रुपये हो गई है।

मुद्रा योजना से वित्तीय रूप से कमजोर क्षेत्रों को अधिक लाभ मिल रहा है। अविकसित राज्यों में वित्तीय समावेशन में तेजी से सुधार हो रहा है। देश में एमएसएमई क्षेत्र 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देता है। शिशु के तहत 50,000 रुपये, किशोर के तहत 50 हजार से 5 लाख रुपये, तरुण के तहत 5 से 10 लाख रुपये और तरुण प्लस के तहत 20 लाख रुपये तक का कर्ज मिलता है।

कुल खातों में 28 फीसदी हिस्सा ओबीसी यानी अन्य पिछड़ी जातियों का है। एसटी यानी अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 6 फीसदी और एससी (अनुसूचित जाति) का हिस्सा 16 फीसदी है। इसका मतलब 50 फीसदी खाते गैर सामान्य और 50 फीसदी सामान्य वर्ग के हैं। नए उद्यमियों के खातों का हिस्सा 21 फीसदी है।

बिहार में सबसे अधिक 4.2 करोड़ महिला खाते हैं। तमिलनाडु में चार करोड़, पश्चिम बंगाल में 3.7 करोड़, कर्नाटक में 3.4 करोड़, महाराष्ट्र में 3.3 करोड़ खाते हैं। हालांकि, राज्यवार बात करें तो राज्यों के कुल खातों में सबसे ज्यादा 79 फीसदी महिलाओं का हिस्सा महाराष्ट्र में है।

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