दालों और खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार होंगे लागू
मुंबई- दालों और खाद्य तेलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों को लागू किया जा सकता है। जबकि अनाज के अधिक उत्पादन को हतोत्साहित करने के लिए कदम उठाए जाएंगे। आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है। वर्तमान में घरेलू कमी को पूरा करने के लिए दालों और खाद्य तेलों का बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है।
संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में इस बात पर जोर दिया गया कि विभिन्न विकास पहलों के बावजूद कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास क्षमता है। कमजोर परिवारों की सुरक्षा के लिए अलग तंत्र के साथ किसानों को बाजार से निर्बाध मूल्य संकेत प्राप्त करने की सुविधा दी जानी चाहिए। समीक्षा में जरूरी तीन प्रमुख नीतिगत बदलावों की रूपरेखा दी गई है। इसमें मूल्य जोखिम बचाव के लिए बाजार तंत्र स्थापित करना, ज्यादा खाद के उपयोग को रोकना और पानी व बिजली वाली फसलों के उत्पादन को हतोत्साहित करना है।
इन नीतिगत बदलावों से क्षेत्र में भूमि और श्रम उत्पादकता को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था में कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारत को दलहन और तिलहन के उत्पादन में लगातार कमी का सामना करना पड़ रहा है। तिलहन की 1.9 प्रतिशत की धीमी वृद्धि दर चिंता पैदा करती है। इससे घरेलू खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। इसे सुलझाने के लिए जलवायु लचीली फसल किस्मों को विकसित करने, उपज बढ़ाने और फसल के नुकसान को कम करने के लिए केंद्रित रिसर्च का सुझाव दिया गया है। चावल वाले क्षेत्रों में दालों के क्षेत्र का विस्तार करने के प्रयासों से मदद मिल सकती है।
किसानों के लिए विस्तार गतिविधियों और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने, उच्च उपज और रोग प्रतिरोधी बीज किस्मों के उपयोग और दलहन-तिलहन के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में कृषि प्रथाओं में सुधार के लिए लक्षित हस्तक्षेप की जरूरत है। मिट्टी के क्षरण, विशेषकर जैविक कार्बन सामग्री में गिरावट को देखते हुए खादों के सही तरीके के उपयोग पर जोर दिया गया है जो देश के कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो पिछली चार तिमाहियों में 0.4-2.0 प्रतिशत की वृद्धि दर से उबर गई। मौजूदा कीमतों पर वित्त वर्ष 2024 के अनंतिम अनुमान के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का लगभग 16 प्रतिशत योगदान रहा है। कृषि प्रदर्शन को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक मौसम की स्थिति का प्रभाव है।
सरकारी योजनाओं ने कृषि क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव दिखाया है। 31 अक्तूबर, 2024 तक 11 करोड़ से अधिक किसान पीएम-किसान से लाभान्वित हुए और 23.61 लाख किसान पीएम-केएमवाई पेंशन योजना के तहत नामांकित हुए। रिपोर्ट में छोटे किसानों को समर्थन देने और विशेष रूप से दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में खाद्यान्न भंडारण प्रणालियों को आधुनिक बनाने के लिए निजी क्षेत्र के निवेश की जरूरत पर भी जोर दिया गया है।
ग्रामीण आबादी के स्वास्थ्य पैरामीटर पर भी प्राथमिक ध्यान केंद्रित किया गया है। इस पर कोरोना के कारण ज्यादा जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत इस साल 9 जनवरी तक 8,34,695 किमी सड़क की लंबाई मंजूर की गई। 7,70,983 किमी लंबाई की सड़क पूरी हो गई। अब तक 99.6 प्रतिशत लक्षित बस्तियों को कनेक्टिविटी प्रदान की जा चुकी है। 2016 से प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत 2.69 करोड़ घर पूरे हो चुके हैं। मिशन अमृत सरोवर के तहत 68,843 जल निकायों का निर्माण किया गया है।