कुंभ नहीं, मौतों का महाकुंभ बन गए हैं धार्मिक स्थल, प्रयागराज में 40 मरे

मुंबई- प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ में 40 लोगों की मौत हो गई है। पुलिस के अनुसार अखाड़ा मार्ग भीड़ बढ़ने का कारण यह हादसा हुआ। पुलिस ने बताया कि भीड़ की वजह से बैरिकेड टूट गया। इससे वहां आसपास नीचे सोए श्रद्धालुओं पर अन्य लोग चढ़ गए।

आज़ादी के बाद पहली बार कुंभ मेला आयोजित किया गया था। भारत के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, लेकिन इसे एक त्रासदी के रूप में भी याद किया जाता है। 3 फरवरी 1954 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कुंभ मेले में मौनी अमावस्या के दिन मची भगदड़ में लगभग 800 लोग नदी में डूबकर मर गए।

1986 में हरिद्वार में कुंभ मेले में 200 लोगों की जान चली गई। यह अराजकता तब फैली जब उत्तर प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सांसदों के साथ हरिद्वार पहुंचे। जब सुरक्षाकर्मियों ने आम लोगों को नदी के किनारे जाने से रोक दिया, तो भीड़ बेचैन हो गई और बेकाबू हो गई। इससे एक जानलेवा भगदड़ मच गई।

2003 में महाराष्ट्र के नासिक में भगदड़ मच गई थी। इसमें दर्जनों लोग मारे गए थे। उस समय हजारों तीर्थयात्री कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान के लिए गोदावरी नदी पर एकत्र हुए थे। भगदड़ में महिलाओं सहित कम से कम 39 लोग मारे गए थे। हादसे में 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।

10 फरवरी 2013 को कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर एक फुटब्रिज के ढह जाने से भगदड़ मच गई थी। इसमें में 42 लोगों की जान चली गई थी और 45 अन्य घायल हो गए थे। इस बार प्रयागराज में ब्रह्म मुहूर्त से पूर्व प्रातः एक बजे से 2 बजे के बीच मेला क्षेत्र में अखाड़ा मार्ग पर भारी भीड़ का दबाव बना। भीड़ के दबाव के कारण दूसरी ओर के बैरीकेड्स टूट गए। लोग बैरीकेड्स लांघकर दूसरी तरफ आ गए और ब्रह्म मुहूर्त पर स्नान का इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं को कुचलना शुरू कर दिया।

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