लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज जैसे शहरों में डिजिटल लेनदेन चार साल में 175 फीसदी बढ़ा
मुंबई- दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में डिजिटल लेनदेन तेजी से बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के बाद से लखनऊ, मोरादाबाद, जयपुर, मेरठ और वाराणसी जैसे शहरों में कार्ड खर्च 175% बढ़ गया है। जिन छोटे शहरों में डिजिटल लेनदेन में तेजी देखी जा रही है उनमें अंबाला, जामनगर, जबलपुर, रोहतक, हावड़ा, भावनगर, रेवाड़ी, लुधियाना, राजकोट, पटना, भोपाल, कानपुर, प्रयागराज, नासिक, गौतमबुद्ध नगर, जमशेदपुर, अजमेर, सूरत, जयपुर, इंदौर, बड़ौदा, चंडीगढ़, गाजियाबाद, पानीपत, कोटा और रायपुर सहित अन्य शहर भी हैं।
वीजा की जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश के डिजिटल भुगतान में गैर महानगरीय शहरों विशेष रूप से दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में डिजिटल लेनदेन में तेज भुगतान देखा जा रहा है। ये शहर महत्वपूर्ण विकास इंजन के रूप में उभर रहे हैं। ये शहर विकास के रुझान को दिखाते हैं, जो देश भर में विकसित हो रहे उपभोक्ता क्षेत्रों और बेहतर डिजिटल बुनियादी ढांचे से प्रेरित है।
गैर-महानगरीय क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान में वृद्धि आय के बढ़ते स्तर, ई-कॉमर्स की तेज वृद्धि और बढ़ी हुई डिजिटल कनेक्टिविटी से प्रेरित है, जो प्रधानमंत्री जन धन योजना और डिजिटल इंडिया कार्यक्रम और जैसी सरकारी पहलों को सशक्त बनाने से समर्थित है। वीजा की रिपोर्ट के अनुसार, तीसरे स्तर के शहरों के ग्राहकों में डिजिटल भुगतान में चार गुना की वृद्धि हुई है। यहां एक कार्ड पर सालाना दो लाख रुपये से अधिक का खर्च होता है।
रिपोर्ट के अनुसार, बड़े शहरों में 2019 की तुलना में 2024 में डिजिटल भुगतान में 1.4 गुना बढ़त रही है। तीसरे स्तर के शहरों में ऑनलाइन खर्च की हिस्सेदारी 53% से बढ़कर 73% हो गई। गैर-महानगरीय शहरों में डिजिटल सेवाओं की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जहां ऑनलाइन गेमिंग खर्च 16 गुना बढ़ गया। इसी अवधि के दौरान डिजिटल सामग्री पर खर्च 9 गुना बढ़ गया।
भारत और दक्षिण एशिया के वीजा कंसल्टिंग के प्रमुख सुष्मित नाथ कहते हैं, भारत के तेजी से विकसित हो रहे डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में गैर-महानगरीय शहर अवसर और आकांक्षा के उभरते जीवंत केंद्र हैं, जो तेजी से डिजिटल अपनाने से प्रेरित हैं। हालांकि कैट दूसरे और तीसरे स्तर के शहरों में उपभोक्ताओं के पास औपचारिक क्रेडिट चैनलों तक पहुंच है, लेकिन सीमित क्रेडिट इतिहास के कारण वे साहूकारों या पारिवारिक कर्ज जैसे अनौपचारिक कर्ज स्रोतों पर अधिक निर्भर रहते हैं।