भारतीय बैंकों में नकदी की बढ़ी किल्लत, लोन देने में आ सकती है दिक्कतें
मुंबई-भारतीय बैंक नकदी की किल्लत से जूझ रहे हैं। यह कमी लगभग छह महीने में सबसे ज्यादा है। सोमवार तक यह डेफिसिट 1.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसकी वजह एडवांस टैक्स और रुपये को स्थिर रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का हस्तक्षेप है। लिक्विडिटी डेफिसिट से कर्ज लेना महंगा हो गया है। आरबीआई के डॉलर बेचने और त्योहारों के मौसम में कैश निकालने से भी पैसे की कमी बढ़ गई है।
भारतीय बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी लगभग छह महीने में सबसे ज्यादा हो गई है। कंपनियों के एडवांस टैक्स पेमेंट और रुपये की अस्थिरता को रोकने के लिए आरबीआई की ओर से डॉलर बेचने की वजह से ऐसा हुआ है। सोमवार तक बैंकों की आरबीआई से उधार ली गई रकम 1.5 लाख करोड़ रुपये थी। यह 24 जून के बाद सबसे ज्यादा है।
IDFC फर्स्ट बैंक के अनुसार, आरबीआई अक्टूबर से डॉलर बेच रहा है। इससे नकदी में भारी कमी आई है। बढ़ते व्यापार घाटे और मजबूत डॉलर के बीच आरबीआई की ओर से रुपये में गिरावट रोकने के लिए हस्तक्षेप करने की संभावना के कारण बैंकिंग लिक्विडिटी में और कमी आ सकती है।
आरबीआई ने हाल ही में बैंकिंग लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें कैश-रिजर्व रेशियो (सीआरआर) में कटौती और वेरिएबल रेट रेपो ऑक्शन के जरिए ज्यादा फंड देना शामिल है। बावजूद इसके नकदी की कमी बढ़ी है।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की अर्थशास्त्री अनुभूति सहाय ने कहा, ‘सीआरआर में कटौती के बाद भी कुल मिलाकर लिक्विडिटी न्यूट्रल या थोड़ी कम रहने की संभावना है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘आगे चलकर लिक्विडिटी बढ़ाने या सरप्लस बनाए रखने के लिए और ज्यादा उपायों की जरूरत है। मसलन, ओपन-मार्केट-बॉन्ड खरीदना, ज्यादा टर्म रेपो, एफएक्स स्वैप या सीआरआर में और कटौती।’
नकदी की कमी के चलते इंटरबैंक वेटेड एवरेज कॉल रेट (ओवरनाइट उधारी की लागत का बेंचमार्क) आरबीआई के बेंचमार्क रेपो रेट 6.50% से 0.35 फीसदी ज्यादा हो गया। हर तिमाही के आखिरी महीने में कंपनियों के एडवांस टैक्स पेमेंट से लिक्विडिटी पर दबाव बढ़ रहा है। त्योहारों के मौसम में बैंकों से नकदी निकासी में सामान्य बढ़ोतरी भी इस कमी में योगदान दे रही है।
तिमाही एडवांस टैक्स के नवीनतम दौर ने बैंकिंग सिस्टम से 1.4 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं। नकदी की यह कमी चिंता का विषय है क्योंकि इससे बैंकों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है। ग्राहकों को लोन देने की बैंकों की क्षमता पर इसका सीधा असर पड़ता है। यह आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है। कारण है कि कंपनियों के लिए निवेश करना मुश्किल हो जाएगा।
जब बैंकों के पास पर्याप्त नकदी नहीं होती है तो लोगों को लोन लेने में दिक्कत होती है। बैंक आपके लोन एप्लीकेशन को आसानी से मंजूर नहीं करते हैं. दूसरा, इससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं। बैंकों को पैसे जुटाने के लिए अधिक ब्याज देना पड़ सकता है। इसका असर आपकी होम लोन या कार लोन की ईएमआई पर पड़ सकता है।