इक्विटी कैश सेगमेंट इंट्रा डे ट्रेडिंग करने वाले 100 में से 70 निवेशक घाटे में

मुंबई- इक्विटी कैश सेगमेंट में इंट्राडे ट्रेडिंग करने वाले 70% से ज्यादा इंडिविजुअल निवेशक घाटे में रहते हैं। यह जानकारी सिक्योरिटी एंड एक्सचेंड बोर्ड ऑफ इंडिया यानी SEBI की एक स्टडी में सामने आई है। मार्केट रेगुलेटर ने वित्त वर्ष 2023 के दौरान निवेश करने वाले लोगों पर यह अध्ययन किया।

स्टडी में एकेडमिक जगत से जुड़े लोग, ब्रोकर्स और मार्केट एक्सपर्ट्स को शामिल किया गया। आज यानी बुधवार 24 जुलाई को जारी स्टेटमेंट में सेबी ने बताया कि इक्विटी कैश सेगमेंट में ट्रेडिंग करने वाले लोगों की संख्या वित्त वर्ष 2019 के मुकाबले वित्त वर्ष 2023 में 300% बढ़ी है।

इक्विटी कैश सेगमेंट में ट्रेड करने वाले लगभग तीन में से एक ट्रेडर इंट्राडे ट्रेड करता है। यह संख्या 2019 के 15 लाख से बढ़कर 2023 में 69 लाख रही। 2022-23 में युवा इंट्राडे ट्रेडर्स (30 साल से कम उम्र) की हिस्सेदारी बढ़कर 48% हो गई, जो 2018-19 में 18% थी।

जो ट्रेडर्स काफी ज्यादा बार (एक साल में 500 से ज्यादा) ट्रेड करते हैं, उनके नुकसान का रेश्यो बढ़कर 80% रहा। इसका मतलब इस तरह के हर ट्रेडर को 100 में से 80 ट्रेड में नुकसान हुआ। अन्य एजग्रुप की तुलना में युवा ट्रेडर्स (आयु 30 साल से कम उम्र) सबसे ज्यादा घाटे में रहे। 2022-23 में इनकी संख्या 76% थी।

लॉस में रहने वाले ट्रेडर्स ने प्रॉफिट में रहने वाले ट्रेडर्स की तुलना में ज्यादा ट्रेड किया। घाटे में रहने वाले ट्रेडर्स ने अपने लॉस का एक्सट्रा 57% ट्रेडिंग कॉस्ट के रूप में खर्च किया। जबकि, मुनाफा कमाने वालों ने ट्रेडिंग प्रॉफिट का केवल 19% ट्रेडिंग कॉस्ट के रूप में खर्च किया।

इस स्टडी में कोरोना महामारी से पहले और बाद के ट्रैंड्स को एनालाइज करने के लिए सेबी ने वित्त वर्ष 2019, 2022 और 2023 को स्टडी में शामिल किया। इसमें देश के टॉप-10 ब्रोकर्स के इंडिविजुअल क्लाइंट्स को शामिल किया गया था। यह नंबर इक्विटी कैश सेगमेंट में ट्रेड करने वालों का 86% है।

इंट्राडे ट्रेडिंग इसे डे-ट्रेडिंग भी कहा जाता है। इसमें एक ही ट्रेडिंग डे के भीतर शेयरों की खरीद और बिक्री होती है। ट्रेडिंग डे के दौरान शेयरों की कीमत लगातार बदलती रहती है। ऐसे में इंट्रा-डे ट्रेडर शॉर्ट टर्म में शेयर में उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाते हैं।

अधिकतर निवेशक बाजार का रुझान बदलने के कारण नहीं समझ पाते और गलत शेयर खरीद लेते हैं। निवेशक रिस्क मैनेजमेंट नहीं कर पाते। ‘कट लॉस’ और ‘बुक-प्रॉफिट’ की बारीकियों से अनजान होते हैं। शेयर ट्रेडिंग की लागत के मुकाबले रिटर्न कम होता है। अक्सर लागत आंकने में निवेशक विफल रहते हैं।

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