आम बजट से खुश नहीं हैं आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव
मुंबई- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव इस बार के बजट से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि इस बार के बजट में नौकरियों पर पर्याप्त जोर नहीं दिया गया है। बजट बेरोजगारी की समस्या से सीधे निपटने में विफल रहा। माना गया कि ग्रोथ से अपने आप रोजगार पैदा हो जाएंगे।
सुब्बाराव ने कहा कि कोविड महामारी से पहले भी बेरोजगारी की स्थिति काफी खराब थी और महामारी के कारण यह खतरनाक हो गई है। उन्होंने कहा कि देश में लगभग दस लाख लोग हर महीने लेबर फोर्स में शामिल होते हैं और भारत इसकी आधी नौकरियां भी पैदा नहीं कर पाता है। यानी आधे लोग बेरोजगार रह जाते हैं।
सुब्बाराव ने कहा, ‘मैं निराश था कि बजट में नौकरियों पर पर्याप्त जोर नहीं दिया गया। केवल ग्रोथ से काम नहीं चलेगा, हमें रोजगार आधारित ग्रोथ की जरूरत है।’ आरबीआई के पूर्व गवर्नर से पूछा गया था कि बजट से उनकी सबसे बड़ी निराशा क्या है? सुब्बाराव के अनुसार लगभग दस लाख लोग हर महीने लेबर फोर्स में शामिल होते हैं और भारत इसकी आधी नौकरियां भी पैदा नहीं कर पाता है।’ इसके चलते बेरोजगारी की समस्या न केवल बढ़ रही है, बल्कि एक संकट बन रही है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी जैसी बड़ी और जटिल समस्या का कोई एक या सरल समाधान नहीं है।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘लेकिन मुझे निराशा हुई कि बजट समस्या से निपटने में विफल रहा। सिर्फ यह भरोसा किया गया कि ग्रोथ से रोजगार पैदा होंगे।’ सुब्बाराव ने कहा कि भारत केवल तभी डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठा सकेगा, जब हम बढ़ती श्रम शक्ति के लिए उत्पादक रोजगार खोजने में सक्षम होंगे। बजट की सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने ग्रोथ पर जोर दिया है और राजकोषीय उत्तरदायित्व को लेकर प्रतिबद्धता जताई है, जबकि बजट से पहले आम धारणा यह थी कि वित्त मंत्री चुनावी साल में लोकलुभावन बजट पेश करेंगी।
यह पूछे जाने पर कि क्या बजट दस्तावेज में दिए गए अनुमानों के लिए कोई जोखिम है, उन्होंने कहा, राजस्व और व्यय, दोनों पक्षों पर जोखिम हैं। राजस्व पक्ष के अनुमान इस धारणा पर आधारित हैं कि चालू कीमतों पर जीडीपी 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और इस साल टैक्स कलेक्शन में हुई ग्रोथ अगले साल भी जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि दोनों धारणाएं आशावादी लगती हैं, क्योंकि ग्रोथ और महंगाई अगले साल नरम हो सकती हैं।
खर्च पक्ष पर सुब्बाराव ने कहा कि यदि वैश्विक स्थिति प्रतिकूल हो जाती है और वैश्विक कीमतें बढ़ती हैं तो खाद्य तथा उर्वरक सब्सिडी में अपेक्षित बचत नहीं हो पाएगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अगर रूरल ग्रोथ तेजी से नहीं हुई तो मनरेगा की मांग बजट अनुमानों के मुताबिक घटेगी नहीं।