भारी उत्पादन से कश्मीरी सेब की कीमतों में 30 फीसदी की गिरावट
मुंबई- कश्मीर में सेब का बंपर उत्पादन उत्पादकों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। पिछले साल के मुकाबले इस साल सेब की कीमतें 30 फीसदी तक गिर गई हैं। इससे सेब उत्पादकों को भारी नुकसान हो रहा है। उन्होंने इससे उबरने के लिए अब सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
कश्मीरी सेब सितंबर में तब सुर्खियों में आया था, जब एशिया के सबसे बड़े थोक बाजार आजादपुर मंडी सहित घाटी के बागों से केंद्र शासित प्रदेश के बाहर के बाजारों तक इसके परिवहन में बार-बार अड़चन आने पर हंगामा हुआ था। देश में कुल सेब की फसल का लगभग 75 प्रतिशत उत्पादन कश्मीर में होता है। वहां की अर्थव्यवस्था ज्यादातर इसी पर टिकी है और यह जम्मू और कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 8.2 फीसदी का योगदान देता है।
चैंबर ऑफ आजादपुर फल एवं सब्जी व्यापारी अध्यक्ष मेथा राम कृपलानी ने बताया कि सरकारी समर्थन के बिना उत्पादकों के नुकसान को दूर करना बहुत मुश्किल है। इस सीजन में अच्छी गुणवत्ता वाली बंपर फसल हुई थी, लेकिन पिछले साल की तुलना में पैकेजिंग और परिवहन शुल्क जैसे खर्च लगभग दोगुने हो गए हैं। दरें सीधे आपूर्ति और मांग से जुड़ी हुई हैं। चूंकि आपूर्ति अधिक है इसलिए दर कम हो गई है।
मध्य कश्मीर के बडगाम जिले के चरार-ए-शरीफ के निवासी और सेब उत्पादक बशीर अहमद बाबा ने कहा कि इस मौसम में उपज की अच्छी वापसी की उम्मीदें धराशायी हो गई हैं। अधिकांश उत्पादक और व्यापारी अपनी वित्तीय फायदे से आशंकित थे। बाबा ने कहा, कटाई के मुख्य मौसम के दौरान भूस्खलन के कारण श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बार-बार बंद होने और फलों से लदे ट्रकों के एक साथ कई दिनों तक फंसे रहने का असर पड़ा है। इससे सेब मंडियों में देर से पहुंचे थे।
कश्मीर से बाहरी बाजारों में फलों से लदे ट्रकों की सुचारू आवाजाही को आसान बनाने में कथित विफलता के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्थानीय पुलिस को जमकर फटकार लगाई थी। सितंबर में श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को स्थानांतरित कर दिया था।
बाबा ने कहा कि 16 किलो वजन वाले सेब के डिब्बे पर 500 रुपये से अधिक का खर्च आता है। इसमें पैकेजिंग, माल ढुलाई शुल्क, कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग शामिल है। लेकिन हमें प्रति बॉक्स औसतन 400 रुपये ही मिल रहे हैं। कश्मीर की आधी से ज्यादा आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बागवानी उद्योग से जुड़ी है। यह उद्योग 10,000 करोड़ रुपये का है। सेब का वार्षिक उत्पादन लगभग 21 लाख मीट्रिक टन है। इसकी खेती 1.45 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है।
उन्होंने कहा कि सरकार को पैकेजिंग, अच्छी क्वालिटी के कार्डबोर्ड पर सब्सिडी के साथ परिवहन की कीमतों को भी तय करना चाहिए। फलों वाले ट्रक की आवाजाही पर लगने वाले टैक्स को भी खत्म करना चाहिए। उन्होंने कहा कि टैक्स से बचने के लिए ईरान से अफगानिस्तान के माध्यम से आयात किए जाने वाले सेब पर शुल्क लगाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना सरकार का काम है कि देश में किसान अपनी उपज को सही कीमत पर बेच सकें।
उन्होंने कहा, कश्मीरी सेब बांग्लादेश सहित विभिन्न देशों को भी निर्यात किए जाते हैं। सरकार को संबंधित सरकारों के साथ इस मुद्दे को उठाने के बाद उत्पाद को शुल्क मुक्त वस्तुओं में शामिल करने के उपाय करने चाहिए।

