अक्तूबर में दुनिया के बाजारों में रही भारी तेजी, भारतीय बाजार में कम बढ़त
मुंबई- अक्तूबर महीने में दुनिया के प्रमुख शेयर बाजारों में अच्छी खासी तेजी रही, पर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में सबसे कम बढ़त रही। सेंसेक्स में 5.78 फीसदी की तेजी रही जबकि निफ्टी-50 में 5.37 फीसदी की तेजी रही।
जर्मनी का शेयर बाजार जहां 9.54 फीसदी बढ़ा, वहीं यूरो स्टोक्स50 में 9.07 फीसदी की तेजी दर्ज की गई। फ्रांस के शेयर बाजार में 8.83 फीसदी की जबकि अमेरिका के एसएंडपी 500 इंडेक्स में 7.90 फीसदी की बढ़त हुई। फिलीपीन के शेयर बाजार में इसी दौरान 7.18 और दक्षिण कोरिया के शेयर बाजार में 6.41 फीसदी की तेजी दर्ज की गई थी। जापान का बाजार 6.36 पर्सेंट बढ़कर बंद हुआ था।
सबसे ज्यादा बढ़ने वालों में अमेरिका का डाऊजोंस रहा जिसमें 14.63 फीसदी की बढ़ोतरी रही। सेंसेक्स पिछले 4 माह में 9,000 अंक बढ़ा है। जून मध्य में यह 51,260 पर था जो मंगलवार को 61 हजार के आंकड़े को पार कर गया। पूरी दुनिया के बाजारों में हाल के समय में बढ़त इसलिए आई क्योंकि एक तो कच्चे तेलों की कीमतें गिरती गईं और दूसरे केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों को बढ़ाना जारी रखा।
ब्याज दरें अप्रैल के बाद से 4-5 बार बढ़ चुकी हैं और यह सष्ष्ट होने के बाद बाजारों में इसका सकारात्मक असर दिखा। हालांकि, विदेशी निवशकों की शेयर बिकवाली से भारतीय बाजार में कम बढ़त देखी गई।
रुपये में इस साल चार सबसे बड़ी गिरावट रही। मई में डॉलर के मुकाबले इसमें जहां 1.5 फीसदी की गिरावट आई वहीं जून में यह 1.7 फीसदी टूट गया। सितंबर में 2.4 फीसदी टूटा जबकि अक्तूबर में यह 1.8 फीसदी गिरकर बंद हुआ। 1985 के बाद पहली बार ऐसा है जब रुपया लगातार 10 महीने तक गिरावट में रहा है।
ब्रोकरेज हाउस मोर्गन स्टेनली ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण अगले दस साल में 10 लाख करोड़ डॉलर को पार सकता है। इस आधार पर यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा पूंजीकरण वाला बाजार होगा। फिलहाल सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 3.5 लाख करोड़ डॉलर है।
निवेशकों को घाटा देने में अव्वल पेटीएम के शेयरों की विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने जमकर बिकवाली की है। एक साल में इन्होंने इसके 2.97 करोड़ शेयर या 44 फीसदी शेयरों को बेच दिया है। पिछले साल 18 नवंबर को पेटीएम का शेयर सूचीबद्ध हुआ था। इसमें 127 एफआईआई की हिस्सेदारी थी जिन्होंने 6.71 करोड़ शेयर खरीदे थे। अब 88 एफआईआई बचे हैं। अब उनकी हिस्सेदारी केवल 3.74 फीसदी रह गई है।