भारी बारिश से सब्जियों और जरूरी चीजों के दाम बढ़े, अक्तूबर में महंगाई और बढ़ने की उम्मीद
मुंबई- बिना मौसम बारिश से आरबीआई और सरकार के महंगाई को कम करने के प्रयासों पर पानी फिर सकता है। सब्जियों सहित अन्य जरूरी कीमतों में पिछले 15-20 दिनों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। सब्जियों सहित अन्य जरूरी कीमतों में पिछले 15-20 दिनों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसका सीधा असर अक्तूबर की खुदरा महंगाई पर दिखेगा जो नवंबर में जारी होगी। पहले से ही महंगाई को काबू पाने की कोशिश कर रहे आरबीआई को अब दिसंबर में 0.50 फीसदी की कटौती ब्याज दरों में करनी पड़ सकती है। पहले यह अनुमान 0.25 से 0.35 फीसदी तक था।
कारोबारियों का अनुमान है कि सब्जियों और जरूरी कीमतों की महंगाई नवंबर में भी ऊंची रह सकती है। टमाटर का भाव खुदरा बाजार में 50 फीसदी बढ़ गया है। जबकि प्याज की कीमत 40-50 फीसदी बढ़ गई है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में आलू, प्याज और सब्जियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इससे कीमतें बढ़ सकती हैं।
कारोबारियों ने कहा कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में टमाटर सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। एशिया की सबसे बड़ी मंडी आजादपुर में इस समय रोजाना 20 ट्रक सब्जियां आ रही हैं, जो पहले 25 ट्रक आती थीं।
एचएसबीसी ने कहा, दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई 0.50 फीसदी दर बढ़ा सकता है। क्योंकि खुदरा महंगाई लगातार 7 फीसदी से ऊपर बनी है और सितंबर में यह अनुमान से ज्यादा रही है। बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में भी यही दावा किया गया है।
एचएसबीसी ने कहा, दिसंबर में रेपो दर बढ़ाने से पहले आरबीआई अक्तूबर की महंगाई और दूसरी तिमाही की जीडीपी की समीक्षा करेगा, जो नवंबर के अंत में जारी होगी। इससे आरबीआई द्वारा दरों को बढ़ाने और खपत को समझने में मदद मिलेगी। क्योंकि बैंकों ने कर्ज को काफी महंगा कर दिया है। साथ ही नवंबर में दूसरी तिमाही के रिजल्ट भी समाप्त हो जाएंगे जिससे कंपनियों की आय और फायदा का पता चलेगा।
एचएसबीसी ने कहा कि अगस्त में कंज्यूमर ड्यूरेबल की खपत में 10 फीसदी की कमी आई है। इससे पता चलता है कि आम आदमी अब रोजाना की खपत वाली सामान में कटौती कर रहा है। यानी गांवों में मांगों पर आगे भी असर रहेगा। ड्यूरेबल उत्पादन का इंडेक्स भी अगस्त में 4 फीसदी पर चला गया जो कोरोना के पहले के स्तर पर है। इससे शहरी इलाकों में भी महंगाई का असर हो रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि त्योहारी मौसम में भले ही थोड़ी मांग सुधर जाए लेकिन उसके बाद हालात और बिगड़ सकते हैं। अगर सुधार नहीं होता है तो फिर यह और मुश्किल कर सकता है।

