ये हैं धनंजय सिंह, माफिया से नेता बने, मौत के बाद फिर जिंदा हो गए
मुंबई- जौनपुर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे 16 जुलाई 1975 को धनंजय सिंह कोलकाता में पैदा हुए। जन्म के कुछ साल बाद पूरा परिवार जौनपुर आ गया। 1990 में 10वीं में थे। महर्षि विद्या मंदिर के शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या हो गई। नाम आया धनंजय सिंह का। 12वीं में पहुंचे। एक और युवक की हत्या हो गई। फिर से नाम आया धनंजय का। पुलिस ने पकड़ लिया। धनंजय को तीन परीक्षाएं पुलिस हिरासत में देनी पड़ीं।
धनंजय सिंह आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंच गए। पहले दोस्त बने अभय सिंह। यहां पढ़ाई के साथ राजनीति शुरू हो गई। धनंजय, अभय, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह जाति के नाम पर एकजुट हो गए। यूनिवर्सिटी में वर्चस्व बढ़ा तो ठेकों में दखल शुरू हो गया।
हबीबुल्ला हॉस्टल इनकी दबंगई से चर्चा में आ गया। किसी को चाकू मारा गया हो, किडनैप किया गया हो या फिर कहीं गोली चली हो। इसी हॉस्टल का नाम आता और खोज होती धनंजय सिंह की। इस गुट का रेलवे के ठेकों में दखल बढ़ा। ये ठेके लेते नहीं थे, बल्कि बोली मैनेज करवाते थे। जिसे मिल जाती उससे गुंडा टैक्स वसूलते थे।
17 अक्टूबर 1998, पुलिस को किसी ने सूचना दी कि भदोही-मिर्जापुर रोड के एक पेट्रोल पंप पर लूट होने वाली है। पुलिस सक्रिय हो गई। असलहा लेकर मोर्चा संभाल लिया। चार लोगों का एनकाउंटर कर दिया। कहा- धनंजय सिंह को मार गिराया। इस तरह पुलिस रिकॉर्ड में धनंजय मर चुके थे, लेकिन चार महीने बाद ही फरवरी 1999 में धनंजय सिंह सामने आए और पुलिस के सच को झूठ साबित कर दिया।
हालांकि पुलिस ने जिसे धनंजय सिंह बताया था दरअसल वह थे ओमप्रकाश यादव। ओमप्रकाश सपा के समर्पित कार्यकर्ता थे। उस वक्त विपक्ष में सपा थी। मुलायम सिंह ने भाजपा के खिलाफ हल्ला बोल दिया। एनकाउंटर में शामिल 34 पुलिसवालों को सस्पेंड किया गया। उन पर मुकदमा दर्ज हुआ। 2002 में रारी विधानसभा (अब मल्हनी) से धनंजय निर्दलीय विधायक बन गए।
2007 के चुनाव में धनंजय सिंह निषाद पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े और जीत गए। 2008 में पार्टी छोड़कर बसपा में चले गए। मायावती ने भरोसा जताया और 2009 में जौनपुर से लोकसभा प्रत्याशी बना दिया। यहां भी वह जीत गए। यही जीत अब तक की आखिरी जीत साबित हुई।
2012 के विधानसभा चुनाव में धनंजय ने अपनी उस वक्त की पत्नी जागृति सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी बनाया, लेकिन सपा के पारस नाथ यादव ने उन्हें 31,502 वोटों के अंतर से हरा दिया। कुछ दिन बाद ही जागृति को पुलिस ने अपनी नौकरानी की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया। धनंजय सिंह पर सबूत मिटाने का आरोप लगा।
2014 में धनंजय ने लोकसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा। महज 64 हजार वोट मिले। ये कुल पड़े वोटों का 6% था। 2009 के बाद धनंजय एक चुनाव भी नहीं जीत सके। धनंजय सिंह को लंबे समय से Y श्रेणी की सुरक्षा मिली थी। चार पुलिसवाले साथ चलते थे। इसके खिलाफ 2018 में कोर्ट में याचिका दायर हुई तो योगी सरकार बैकफुट पर चली गई। धनंजय के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास जैसे कुल 24 गंभीर मुकदमे दर्ज हैं।
सरकार पर दबाव बढ़ा तो अगली तारीख 25 मई 2018 को सरकार ने सुरक्षा हटा दी। सरकार ने कहा कि धनंजय सिंह को मिली सभी जमानतों को खारिज करने के लिए जौनपुर SSP को निर्देश दे दिया गया है, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। जुलाई 2018 में बागपत जेल के अंदर मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गई। मुन्ना की पत्नी सीमा सिंह ने धनंजय पर आरोप लगाया।

