बिहार से फिर बदलेगी दिल्ली की सत्ता, जानिए कब-कब बिहारियों ने किया आंदोलन
मुंबई- बिहार में बुधवार को छात्रों ने जगह-जगह आंदोलन किया। इस दौरान कुछ जगहों पर हिंसक प्रदर्शन भी हुआ। इससे देशभर की नजरें एक बार फिर बिहार की तरफ मुड़ गई। रेलमंत्री को तुरंत आकर बयान देना पड़ा और कमेटी बनानी पड़ी।
बिहार की जमीन से जब-जब छात्रों ने हुंकार भरी है, दिल्ली की सत्ता तक हिल गई है। भले मुद्दे छोटे हों या बड़े। भारत के आजाद होने के बाद बिहार में पहला छात्र आंदोलन 1955 में हुआ था। यह छात्र आंदोलन बहुत ही मामूली बात पर शुरू हुआ था। जहां विवाद राज्य ट्रांसपोर्ट टिकट काटने को लेकर हुआ था। जो बाद में इतना उग्र हो गया था कि एक छात्र की मौत हो गई थी। उस छात्र का नाम था दीनानाथ पांडे।
दरअसल, दीनानाथ सड़क किनारे खड़े होकर बस हंगामा देख रहा था। जहां उन्हें पुलिस की गोली लग गई और उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद यह आंदोलन इतना उग्र हो गया था कि बाद में तात्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पटना आना पड़ा था। फिर भी आंदोलनकारी छात्र नहीं माने। इसके बाद उस समय के ट्रांसपोर्ट मंत्री महेश सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में महेश सिंह को महामाया सिंह ने चुनाव में हरा दिया था।
1955 के बाद एक छात्र आंदोलन 1967 में हुआ था। जो गांधी मैदान के ठीक बगल में मोना टॉकीज और तमाम बिल्डिंगों में आग लगा दी गई थी। उस समय केबी सहाय मुख्यमंत्री थे। बाद में वह चुनाव हार गए और महामाया सिन्हा मुख्यमंत्री बने। महामाया सिन्हा ने इस आंदोलन में छात्रों का साथ दिया था। वो छात्रों को जिगर के टुकड़े कहा करते थे।’
1974 में आपतकाल के विरोध में छात्र आंदोलन शुरू हुआ था। इसी दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और समाजवादी छात्रों ने पहली बार एकजुट होकर छात्र संघर्ष समिति का गठन कर आपातकाल का विरोध किया। इसके लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष चुने गए थे और सुशील कुमार मोदी महासचिव चुने गए थे। इस आंदोलन में नीतीश कुमार भी सक्रिय भूमिका में थे। आपातकाल के विरोध-प्रदर्शन के दौरान बहुत से छात्रों को बेरहमी से पीटा गया और उनको जेल में बंद कर दिया गया था। आंदोलर को नई ऊर्जा के लिया जय प्रकाश नारायण को छात्रों द्वारा आमंत्रित किया गया और उसके बाद उन्होंने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नारा दिया। बाद में जेपी इसके नेता बने थे।
मंडल आयोग के विरोध में छात्र आंदोलन किया गया था। यह आंदोलन सवर्ण वर्ग के छात्रों द्वारा शुरू किया गया था। जब वीपी सिंह सरकार ने 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की थी। यह छात्र आंदोलन बहुत ही पहले तो असंगठिक था, लेकिन बाद में राजनीतिक दलों की ओर से इसे संगठित तरीके से आयोजित किया। आन्दोलन का मुख्य मांग जाति पर आरक्षण को हटाने और आर्थिक विचारों के आधार पर आरक्षण का समर्थन करना था।
2010 में 8 फरवरी को कोचिंग संस्थानों के खिलाफ छात्रों का आक्रोश फूटा पड़ा था। ये आंदोलन एक निजी कोचिंग संस्थान से घटना की शुरूआत हुआ। एक छात्र द्वारा सवाल पूछने पर गालियां दी गई। छात्रों के विरोध पर धक्का मुक्की की गई। समय पर कोर्स पूरा नहीं किए जाने से छात्रों की नाराजगी पहले से ही थी। इस घटना ने आग में घी का काम किया। 9 फरवरी को शहर का एक बड़ा हिस्सा छात्रों के आक्रोश का शिकार हो गया। इस आंदोलन में एक छात्र की गोली लगने से मौत हो गई। पटना के गांधी के बाद का इलाका धूधू करके जल रहा था। आंदोलन तीन दिनों तक लगातार चला। तब बिहार सरकार ने कोचिंग विधेयक लाने की बात कही थी।