पेट्रोल-डीजल पर सरकार बढ़ा सकती है एक्साइज ड्यूटी
मुंबई- ईंधन की आसमान छूती कीमतों के लिए भारी आलोचना झेल रही केंद्र सरकार ने नवंबर में इस पर एक्साइज ड्यूटी घटाया था। इससे महंगाई को कम करने का लक्ष्य था। लेकिन अब इसे फिर से बहाल करने की मांग हो रही है।
2020 में केंद्र को महामारी संकट के बीच अपने खजाने को बढ़ाने के लिए इक्साइज़ ड्यूटी के रूप में एक अच्छा जरिया हाथ लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि रेवेन्यू तो बढ़ गया लेकिन ईंधन महंगा हो गया। कई शहरों में पेट्रोल और डीजल प्रति लीटर 100 रुपए के पार हो गया। नवंबर 2021 की शुरुआत में एक्साइज ड्यूटी में जो कटौती की गई वह फरवरी 2021 तक की गई बढ़ोतरी का केवल 15-30% था। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ड्यूटी में यह कमी महामारी के पहले की स्थिति की तुलना में काफी कम थी। अब जबकि सरकार बजट की योजना बनाने में जुटी है, ऐसे में ड्यूटी को फिर से बहाल करना चाहिए। इस बजट को 2022-23 के लिए सरकार आदर्श वर्ष (ideal year) बना सकती है।
गौरतलब है कि ड्यूटी अभी भी कुल पंप कॉस्ट की तुलना में एक चौथाई। यह 8 साल पहले की हिस्सेदारी से लगभग दोगुना है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि अन्य रेवेन्यू में कमी, जिसकी भरपाई 2020-21 में लगभग हो चुकी है अब वह आगामी बजट के लिए किसी बड़े सिरदर्द का कारण नहीं है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। इस प्रकार एक्साइज़ दरों में और कटौती के लिए जगह बन रही है। सबनवीस ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण केंद्र और राज्य दोनों के लिए टैक्स को कम करने की गुंजाइश है। अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्रीय बजट की योजनाओं पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। खपत को बढ़ावा देने के लिए 2022 में महामारी के पूर्व की दरों को बहाल करना जरूरी है जो वर्तमान में अर्थव्यवस्था की सबसे कमजोर कड़ी है।
उन्होंने कहा कि खासकर तब तक जब तक कि कच्चे तेल की कीमतें मौजूदा 80 डॉलर प्रति बैरल सीमा से बाहर नहीं हो जाती हैं और यह 100 डॉलर तक बढ़ जाती हैं। गोल्डमैन ने कहा है कि कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर सकती हैं। इसका मतलब हुआ कि सरकार को इस मोर्चे पर रेवेन्यू कलेक्शन में दिक्कत हो सकती है। आगामी बजट में एक्साइज़ ड्यूटी में कटौती की संभावना नहीं दिखाई दे रही है, लेकिन आगामी वित्तीय वर्ष के लक्ष्य को पूरा करने के लिए यह अभी भी सबसे अच्छा फैसला हो सकता है। गौरतलब है कि 2014 में जब कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिर गई थी तो नरेंद्र मोदी सरकार को फ्यूल टैक्सेस में बढ़ोतरी शुरू करने का मौका मिला था।
थोड़ा उलटफेर के बाद भी नवंबर तक एक्साइज़ ड्यूटी कलेक्शन पहले से ही पूरे वर्ष के लक्ष्य का 72% था और केंद्र अभी भी बजट अनुमानों को पूरा करने के लिए आशावान है। ICICI सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अभिषेक उपाध्याय ने कहा कि हालांकि अगले साल पूरे साल भर के लिए कलेक्शन प्रभावित हो सकता है और यही फैक्ट संभवतः केंद्र को और कटौती करने से मना करेगा। हालांकि 2020-21 में कीमतों में बढ़ोतरी सबसे ज्यादा थी जिसने सरकारी रेवेन्यू को बचाए रखने में मदद की और पेट्रोलियम प्रोडक्टस से एक्साइज़ ड्यूटी का कलेक्शन दोगुना से अधिक 3.72 लाख करोड़ रुपए हो गया। लेकिन जैसे-जैसे रेवेन्यू स्थिर होता गया, महंगाई बढ़ने लगी तो टैक्स में कटौती की मांग ने जोर पकड़ ली।