IBC के बाद भी घर खरीदारों को राहत नहीं, 5 साल में केवल 8 मामले ही मंजूर हुए

मुंबई– 5 साल पहले जिस दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) को घर खरीदारों के फायदे के लिए लाया गया था, आज भी इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है। पिछले 5 सालों में केवल 8 मामले ही IBC में मंजूर किए गए हैँ। जबकि हजारों घर खरीदार बेघर घूम रहे हैँ।  

देश की बड़ी रियल्टी कंपनियों में से एक जेपी इंफ्राटेक इस समय रियल्टी में सबसे बड़ा मुद्दा है। यह एक ऐसा हाई-प्रोफाइल मामला है जो सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। इसमें हजारों घर खरीदार 8 सालों से दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। हालांकि सरकारी कंपनी इसमें काम कर रही है और घर खरीदारों को उम्मीद दिख रही है। पर देश भर में कई ऐसी परियोजनाएं हैं जिसका पजेशन सालों साल देरी से चल रहा है और उन प्रोजेक्ट में घर बुक किए खरीदारों की मुश्किल का कोई अंत नहीं दिख रहा है।  

आंकड़े बताते हैं कि IBC नोटिफाई होने के पांच साल बाद रियल एस्टेट के केवल 8 रिजोल्यूशन प्लान को मंजूरी दी गई है। हालांकि मार्च 2021 तक कुल 205 मामलों को स्वीकार किया गया था। इसका मतलब यह है कि सिर्फ 4 पर्सेंट मामलों में ही सफलता मिल रही है। इसने रियल एस्टेट सेक्टर के परफॉर्मेंस को सबसे बुरा बना कर रखा है। ऐसा हाल तब है जब इस सेक्टर में लोगों का सब कुछ दांव पर लगा हुआ है।  

अन्य क्षेत्रों में उधार देने वाले संस्थान कंपनियों को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में घसीट ले जाते हैं, पर रियल्टी सेक्टर में ऐसा करना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि ऐसा करने में घर खरीदने या बुकिंग कराने वालों की जीवन भर की जमा पूंजी दाव पर लगी होती है। अन्य क्षेत्रों के विपरीत रियल एस्टेट में अधिक जटिलताएं हैं। यह सिर्फ IBC में नहीं है, जिसमें आमतौर पर संस्थागत लेनदार (institutional creditors) और आपूर्तिकर्ता होते हैं।  

रेरा का काम घर खरीदारों की रक्षा करना है। ख़ासकर जिसने होम लोन लिया है। रेरा में भी यही मामला है। इसके अलावा नए-नए नियम आते रहते हैं, जिससे नए दिशानिर्देशों का पालन करना मुश्किल हो जाता है। देखा जाए तो ऐसे नियम और गाइडलाइंस अभी भी रोज आते रहे हैं। इन्हें पूरी तरह से लागू होने में थोड़ा वक्त लगेगा। इससे घर खरीदने वालों के हितों की रक्षा ठीक से की जा सके। जानकारों के मुताबिक, पिछले कानूनों और दिशानिर्देशों में कई खामियां हैं और उनमें अभी सुधार किया जाना बाकी है जो कि हो रहा है।  

बैंकों के लिए सबसे पहला ध्यान इस बात पर है कि किस तरह वह होम लोन में आई कमी को दुरुस्त करें ताकि उनके फायदे का ग्राफ सुधर सके। इसके विपरीत, घर खरीदार चाहते हैं कि एक अधिक भरोसेमंद कंपनी बीमार कंपनी को अपने कब्जे में ले। भले ही बैंकों को थोड़ा बहुत नुकसान ही क्यों ना उठाना पड़े।  

रियल स्टेट की गिरती कीमतों ने मामले को और भी बुरा बना दिया है और इससे अटके प्रोजेक्टस को पूरा करना बहुत ही मुश्किल हो चला है। साथ ही अगर प्रोजेक्ट को बनाने की कीमत कुल घरों के बेचने की कीमत से अधिक है तो वह प्रोजेक्ट व्यावसायिक रूप से कभी सफल ही नहीं होगा।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *