सेबी के पूर्व चेयरमैन की राय, पुराने नियमों, सर्कुलर्स को हटाने से ही समस्या के एक हिस्से का समाधान होगा

मुंबई– सेबी के पूर्व चेयरमैन एम. दामोदरन ने कहा है कि पुराने नियमों, सर्कुलर्स और दिशा निर्देशों को हटा देना चाहिए। इससे समस्या के एक हिस्से का समाधान हो जाएगा। वर्तमान में जो कानून सही हैं, उन्हें ही रखना चाहिए।  

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 15 अप्रैल को डेप्युटी गवर्नर की अध्यक्षता में एक रेगुलेशंस रिव्यू अथॉरिटी (RRA) का गठन किया था। इसका मतलब सभी पुराने रेगुलेशन, सर्कुलर और दिशा-निर्देशों की छंटाई की जा सके। केवल वे ही बने रहें जो वर्तमान में सही हैं। RBI ने RRA को फॉरवर्ड किए जाने वाले आवेदनों और सुझावों को आमंत्रित करने के लिए 6 सदस्यीय एडवाइजरी ग्रुप का भी गठन किया है।  

इस नई पहल का स्वागत करते हुए कॉर्पोरेट गवर्नेंस सलाहकार फर्म एक्सीलेंस इनेबलर्स ने सुझाव दिया है कि एडवाइजरी ग्रुप को उन तक पहुंचने के लिए आवेदनों और सुझावों की प्रतीक्षा करने की बजाय खुद से सक्रिय होकर संभावित आवेदकों तक पहुंचना चाहिए। इसके साथ ही RRA को नियमों, सर्कुलर्स और दिशा-निर्देशों पर गौर करना चाहिए, ताकि उन लोगों की पहचान की जा सके जिन्हें तत्काल प्रभाव से बंद किया या स्क्रैप किया जा सकता है। 

एक्सीलेंस इनेबलर्स दामोदरन की ही संस्था है। इसने यह भी कहा है कि पुराने नियमों, सर्कुलर्स और दिशा-निर्देशों को हटा दिया जाए। जब ये हटेंगे तभी नए-नए रेगुलेशन अस्तित्व में आते रहेंगे। इस माहौल में यह सुझाव दिया गया है कि RRA को प्रस्तावित नए रेगुलेशन पर भी गौर करना चाहिए, ताकि यह देखा जा सके कि क्या वे आवश्यक हैं। क्या कोई मौजूदा रेगुलेशन, सर्कुलर और दिशा-निर्देश इसमें शामिल मुद्दे का समाधान करेंगे। 

RRA कोई नई पहल नहीं है। 1999 में RBI ने पुराने रेगुलेशन, सर्कुलर्स और दिशानिर्देशों की समस्या के समाधान के लिए एक वर्ष की अवधि के साथ एक RRA की स्थापना की थी, जिसे एक वर्ष तक बढ़ा दिया गया था। उस समय इसको लेकर महत्वपूर्ण प्रगति हुई थी। एक्सीलेंस इनेबलर्स का मानना है कि RRA को सीमित कार्यकाल के बिना एक परमानेंट बॉडी होना चाहिए, ताकि पुराने कायदे कानून, सर्कुलर और दिशा-निर्देशों की समस्या का हमेशा के लिए हल निकाल लिया जाए। 

एक्सीलेंस इनेबलर्स ने यह भी सिफारिश की है कि नए रेगुलेशंस में जहां भी संभव हो, सनसेट क्लॉज होने चाहिए। इससे रेगुलेशंस का एक निश्चित अवधि की समाप्ति पर प्रभाव पड़े और यदि वे सही हैं और बने रहते हैं, तो उनकी उपयोगिता को आगे भी बढ़ाया जाना चाहिए। यह भी आशा की जाती है कि अन्य रेगुलेटर रिजर्व बैंक के इस पहल को फॉलो करेंगे और अपने संगठनों के भीतर इसी तरह के ऑथोरिटीज को लागू करेंगे। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *