देश की अर्थव्यवस्था में 40 सालों की बड़ी गिरावट, 7.3 पर्सेंट गिरी जीडीपी की विकास दर

मुंबई– फाइनेंशियल इयर 2020-21 में GDP ग्रोथ -7.3% रही है। इस लिहाज से देखा जाए तो पिछले 40 साल में अर्थव्यवस्था का सबसे खराब दौर है। इससे पहले 1979-80 में यह -5.2% दर्ज की गई थी। तब इतनी बड़ी गिरावट की वजह तब पड़ा सूखा था। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतें भी दोगुना बढ़ गई थीं। उस समय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में थी, जो 33 महीने बाद गिर गई। 

हालांकि, जनवरी से मार्च के दौरान यानी चौथी तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पादन (GDP) की विकास दर 1.6% रही है। वित्त वर्ष 2020-21 में 4 तिमाहियों में पहली दो तिमाही में GDP में गिरावट रही, जबकि अंतिम दो तिमाही में इसमें बढ़त देखी गई। यह लगातार दूसरी तिमाही है जिसमें कोरोना के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था बढ़ती नजर आई है। जीवीए में पूरे साल के दौरान 6.2% की गिरावट दर्ज की गई है। 2019-20 में GDP की ग्रोथ रेट 4% रही थी। 

चौथी तिमाही में जीडीपी की कुल साइज का अनुमान 38.96 लाख करोड़ रुपए रहा है जबकि एक साल पहले इसी समय में यह 38.33 लाख करोड़ रुपए थी। सालाना आधार पर इसका अनुमान 135.13 लाख करोड़ रुपए लगाया गया है जबकि एक साल पहले यह 145.6 लाख करोड़ रुपए थी। चौथी तिमाही में जीडीपी में कृषि की ग्रोथ 4.3% रही है। एक साल पहले इसी समय में यह 4.3% थी। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में चौथी तिमाही में 14.5% की ग्रोथ रही है। इलेक्ट्रिसिटी, पानी, गैस और अन्य युटिलिटीज की ग्रोथ रेट 9.1% रही है। एक साल पहले यह 7.3% थी। 

फरवरी में दूसरी बार एडवांस अनुमान जो सरकार ने जारी किया था उसमें यह कहा था कि अर्थव्यवस्था में 8% की सालाना गिरावट आ सकती है। हालांकि उस अनुमान की तुलना में कम गिरावट आई है। वित्त वर्ष 2019-20 में 4% की बढ़त देखी गई थी। वैसे कोरोन की दूसरी लहर का असर इस चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच दिखेगा। क्योंकि दोबारा लॉकडाउन मार्च के अंत और अप्रैल में राज्यों ने लगाया है। 

दूसरी ओर वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान राजकोषीय घाटा सरकार के अनुमान से कम रहा। वित्त मंत्रालय ने सोमवार को फिस्कल डेफिसिट का डाटा जारी किया। इसके तहत राजकोषीय घाटा 18,21,461 करोड़ रुपए है। यह देश की GDP का 9.3% है, जो वित्त मंत्रालय के अनुमानित 9.5% से कम है।फाइनेंशियल इयर 2019-20 के दौरान फिस्कल डेफिसिट GDP का 4.6% रहा था। 2020-21 के लिए केंद्र सरकार के रेवेन्यू-खर्च के आंकड़ों को जारी करते हुए लेखा महानियंत्रक (CGA) ने फाइनेंशियल इयर के अंत में राजस्व घाटा (रेवेन्यू डेफिसिट) 7.42% रहा। 

अक्टूबर-दिसंबर 2020 तिमाही में 0.4% रही थी। उस समय यह अनुमान लगाया गया था कि कारोबारी साल 2020-21 यानी अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच में देश की GDP में 8% की गिरावट रह सकती है। तीसरी तिमाही में विकास दर्ज करने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था तकनीकी मंदी से बाहर आ गई थी। इससे पहले लगातार दो तिमाही में GDP में गिरावट दर्ज की गई थी। महामारी से लगे झटकों के कारण पहली तिमाही यानी, अप्रैल-जून तिमाही में GDP में 23.9% गिरावट दर्ज की गई थी। इसके बाद दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर में भी GDP में 7.5% गिरावट दर्ज की गई थी। 

GDP को घटाने या बढ़ाने के लिए चार इम्पॉर्टेंट इंजन होते हैं। पहला है, आप और हम। आप जितना खर्च करते हैं, वो हमारी इकोनॉमी में योगदान देता है। दूसरा है, प्राइवेट सेक्टर की बिजनेस ग्रोथ। ये GDP में 32% योगदान देती है। तीसरा है, सरकारी खर्च। इसका मतलब है गुड्स और सर्विसेस प्रोड्यूस करने में सरकार कितना खर्च कर रही है। इसका GDP में 11% योगदान है। और चौथा है, नोट डिमांड। इसके लिए भारत के कुल एक्सपोर्ट को कुल इम्पोर्ट से घटाया जाता है। क्योंकि भारत में एक्सपोर्ट के मुकाबले इम्पोर्ट ज्यादा है, इसलिए इसका इम्पैक्ट GPD पर निगेटिव ही पड़ता है। 

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं। GDP किसी देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा पैमाना है। अधिक GDP का मतलब है कि देश की आर्थिक बढ़ोतरी हो रही है, अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा कर रही है। इससे यह भी पता चलता है कि कौन से सेक्टर में विकास हो रहा है और कौन सा सेक्टर आर्थिक तौर पर पिछड़ रहा है। 

ग्रॉस वैल्यू ऐडेड यानी जीवीए, साधारण शब्दों में कहा जाए तो GVA से किसी अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल आउटपुट और इनकम का पता चलता है। यह बताता है कि एक तय अवधि में इनपुट कॉस्ट और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने रुपए की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हुआ। इससे यह भी पता चलता है कि किस खास क्षेत्र, उद्योग या सेक्टर में कितना उत्पादन हुआ है। 

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