अनिल अग्रवाल के लिए वेदांता पर कंट्रोल की लड़ाई और मुश्किल होती जा रही है, बढ़ती ब्याज दरें हैं कारण
मुंबई– अनिल अग्रवाल बोल्ड अधिग्रहण कर और बेहिचक लोन लेकर एक स्क्रैप मेटल व्यापारी से खरबपति उद्योगपति बन गए। लेकिन लोन की बढ़ती लागत ने अग्रवाल के विश्व-व्यापी साम्राज्य के खरीदारी के प्रयास पर ग्रहण लगा दिया है।
वेदांता लिमिटेड पर कंट्रोल के लिए उनकी लड़ाई भारत और दुनिया भर के उन धन कुबेरों के मुश्किलों को दिखा रही है जिन्होंने कर्ज ले रखा है। क्योंकि ब्याज दरें ऐतिहासिक रूप से बढ़ चुकी हैं। अग्रवाल का काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है। उनकी पर्सनल होल्डिंग वाली कंपनी वेदांता रिसोर्सेज 7 अरब डॉलर के कर्ज में है। वेदांता के स्टॉकहोल्डर्स अग्रवाल की वेदांता में कंट्रोल की एक कोशिश को पहले ही खारिज कर चुके हैं। इसका शेयर जनवरी में इसके फॉलोऑन ऑफर के मूल्य के 40% प्रीमियम पर ट्रेड कर रहा था। यह दिखाता है कि उन्हें डील पक्की करने के लिए कुछ और जतन करने होंगे।
वेदांता के शेयर का ऑफर मूल्य 160 रुपए जनवरी में तय था। अब उसकी तुलना में शेयर 226 रुपए पर कारोबार रहा है। इसका मतलब यह है कि अग्रवाल को सौदा करने में कम से कम कई बार और सोचना चाहिए। इस बार ओपन ऑफर का मूल्य 230-240 रुपए प्रति शेयर हो सकता है। कंपनी ने इसी साल जनवरी में 37.2 करोड़ शेयरों के लिए ओपन ऑफर लाने की घोषणा की, जो कंपनी की कुल 10% हिस्सेदारी है।
ऑफर प्राइस बढ़ाने की प्रमुख वजह शेयरों के भाव में बढ़ोतरी है। कंपनी ने जनवरी में ऑफर प्राइस 160 रुपए प्रति शेयर तय किया था। शेयर ने निवेशकों को अब तक महीने में 24.40% का पॉजिटिव रिटर्न दिया है। अगर अग्रवाल वेदांता पर अधिक नियंत्रण हासिल करने का प्रयास करते हैं तो भी उनके पास कई और चुनौतियां हैं। अग्रवाल लंदन स्थित निजी इक्विटी फर्म सेंट्रिकस एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड के साथ 10 अरब डॉलर के फंड स्थापित करने में लगे हैं जो कि मोल भाव पर ध्यान केंद्रित करेगा।
अग्रवाल ने 20 साल पहले इसी तरह का कई अधिग्रहण किया था। इसमें भारत सरकार द्वारा बेची जाने वाली मेटल कंपनियों को खरीदा गया था। इन खरीदारियों के साथ वे मुश्किल से मुश्किल डील पक्की करने में उस्ताद हो गए। ब्लूमबर्ग के बिलिनेयर इंडेक्स के अनुसार 67 साल के अग्रवाल की कुल संपत्ति फिलहाल 2.6 अरब डॉलर है।
2001 में जब वे एक एल्यूमीनियम कंपनी खरीदने का प्रयास कर रहे थे तो फंड जुटाना मुश्किल लग रहा था। लेकिन अग्रवाल ने जनसंपर्क अभियान फोन पर चलाया और एक ऐसा सौदा संभव कर दिखाया जिसे भारत की सबसे बड़ी डील के रूप में देखा जाता है। इसमें बैंकों से टेंडर मंगाए गए। जल्द ही वह जरूरत से ज्यादा फंड जुटा चुके थे।
वेदांता रिसोर्सेज 2003 में लंदन में लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी। हालांकि इसके बाद अग्रवाल ने इसे प्राइवेट बना लिया है। उन्होंने 2016 में एक कार्यक्रम में कहा था कि जब वह अपने व्यवसाय का नेतृत्व करने के लिए बीएचपी बिलिटन के पूर्व प्रमुख को नियुक्त करना चाहते थे, तो उन दोंनो ने लंदन और ऑक्सफोर्ड में साइकिल चलाकर बात की थी।
इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट फर्म आईआईएफएल सिक्योरिटीज लिमिटेड के निदेशक संजीव भसीन ने कहा कि उनके पास कंपनियों को चलाने का और उसे बड़े ही अनूठे ढंग से परफॉर्मेंस लेने का अच्छा खासा तरीका है। पिछले साल 2020 में अग्रवाल के लिए नई चुनौतियों का अम्बार लग गया। महामारी में कमोडिटी की कीमतों में कमी आई जिसने ऑयल प्राइस में कमी ला दिया। इससे वेदांता रिसोर्सेज की होल्डिंग में बांड डिफ़ॉल्ट की स्थिति में जीरो के करीब हो सकता है। हालांकि तब से हालात में सुधार हुआ है, क्योंकि आंशिक रूप से कमोडिटी की कीमतों में सुधार हुआ है।
दिसंबर में कमोडिटी में खुशहाली लौटने लगी तो दिसंबर की समाप्त तिमाही में 3 वर्षों में वेदांता ने सबसे अच्छा फायदा दिखाया। वेदांता रिसोर्सेज ने फरवरी में 1.2 अरब डॉलर का बांड जारी किया। इससे निवेशकों की मांग बढ़ गई। संभवतः कंपनी वेदांता में और अधिक शेयर खरीदने के लिए प्रेरित हो सकती है और साथ ही वापस मौजूदा कर्ज का भुगतान करने की कोशिश भी कर सकती है।
मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस लिमिटेड ने फरवरी में कहा था कि वेदांता रिसोर्सेज के पास अब साल भर के लिए पर्याप्त नकदी है। लेकिन इसने उन जोखिमों को भी नोट किया है जो विशेष रूप से लिक्विडिटी को लेकर रहती हैं। मूडीज की रिपोर्ट के मुताबिक, वेदांता रिसोर्सेज के पास अप्रैल 2021 और सितंबर 2022 के बीच 3.3 अरब डॉलर चुकाना होगा। यह बांड के रूप में एक मैच्योरिटी होगी, जिसे उसे निवेशकों को चुकाना होगा। इसके साथ ही ब्याज दरें बढ़ रही हैं और वेदांता के शेयर की कीमत लगातार ऊपर जा रही है। इससे अग्रवाल के लिए लिस्टेड बिजनेस के अधिग्रहण से पैर पीछे खींचना मुश्किल होगा।