बैंकों का रिटेल लोन 40 लाख करोड़ रुपए हुआ, होम लोन सबसे ज्यादा

मुंबई– कोविड-19 के चलते लोगों की निजी और पेशेवर जिंदगी में बड़ी उथल-पुथल मची। उनको अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ा और वे उसमें बुरी तरह फंस गए। रिटेल लोन यानी आम लोगों की तरफ से लिया गया लोन 40 लाख करोड़ रुपये के लेवल पर पहुंच गया है। इसके साथ बैंकों का NPA (जिन लोन का मूल या ब्याज 90 दिन तक नहीं चुकाया जाता) भी बढ़ रहा है। डिफॉल्ट का सबसे ज्यादा रिस्क एडुकेशन लोन में है, लेकिन यह समस्या आज की नहीं है। पर्सनल लोन में सबसे कम जोखिम है, लेकिन इसकी वजह मोरेटोरियम है।

सबसे ज्यादा लोन होम, 21,78,422 करोड़ रुपये का पोर्टफोलियो

आइए देखते हैं कि आम लोगों पर किस लोन का बोझ सबसे ज्यादा है। देश के दिग्गज क्रेडिट ब्यूरो CRIF हाई मार्क के मुताबिक, लोगों ने सबसे ज्यादा 21,78,422 करोड़ रुपये का लोन होम लिया हुआ है। यह आंकड़ा 31 अक्टूबर 2020 का है। इसके बाद पर्सनल लोन (5,36,035 करोड़ रुपये), ऑटो लोन (4,26,506 करोड़), गोल्ड लोन (3,37,860 करोड़), क्रेडिट कार्ड (1,62,003 करोड़), एडुकेशन लोन (1,02,742 करोड़) और कंज्यूमर लोन (47,582 करोड़) का नंबर आता है। 

जहां तक डिफॉल्ट रिस्क की बात है तो सबसे ज्यादा (12.6%) जोखिम एडुकेशन लोन को लेकर है। आंकड़ों के मुताबिक, इसके बाद क्रेडिट कार्ड (5.3%), ऑटो लोन (4%), होम लोन (2.6%), कंज्यूमर लोन (2.1%), पर्सनल लोन (0.8%) और गोल्ड लोन (0.7%) का नंबर आता है। RBI ने भी अपनी हालिया फाइनेंशियल स्टैबिलिटी रिपोर्ट में कहा था कि बैंकों का NPA सितंबर 2021 तक 14% पर पहुंच सकता है। 

इन आंकड़ों को देखकर आपको अजीब लग सकता है कि सबसे ज्यादा डिफॉल्ट का रिस्क एडुकेशन लोन में है, जबकि पर्सनल लोन के एनपीए बनने का रिस्क सिर्फ 0.8% है। इसकी वजह यह है कि सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के चलते पर्सनल लोन में होने वाले डिफॉल्ट को बैंक एनपीए करार नहीं दे रहे हैं। 

दरअसल, ज्यादातर बॉरोअर्स ने पर्सनल और क्रेडिट कार्ड रिपेमेंट के लिए मोरेटोरियम ले लिया था। ऐसे में CRIF हाई मार्क का वह डेटा हालात की ज्यादा साफ तस्वीर पेश करता है जिसके मुताबिक, क्रेडिट कार्ड के बकाए पर डिफॉल्ट अक्तूबर 2020 में 5.3% पर पहुंच गया था जो मार्च 2019 में 1.5% था। 

केयर रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस कहते हैं, ‘बैंकों को अभी डिफॉल्ट का सबसे ज्यादा खतरा रिटेल लोन में है। बहुत से लोग बेरोजगार हो गए हैं या उनकी सैलरी में कमी आई है, इसलिए आने वाली तिमाहियों में इनकी तरफ से डिफॉल्ट होने का खतरा बढ़ा है।’ हालांकि पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने इस स्थिति को भांप लिया है, क्योंकि उनके कुछ रिटेल लोन में डिफॉल्ट होने लगा है। उनको अपने यहां डिफॉल्ट का रिस्क सबसे ज्यादा रिस्क SME, टूव्हीलर, पर्सनल और अफोर्डेबल लोन में नजर आ रहा है। 

जानकारों के मुताबिक, लोन के भुगतान में होने वाली देरी की वजह नौकरी और रोजगार जाना, सैलरी में कटौती होना और स्लोडाउन का असर बना रहना है। अगर हालात को लोन देने वालों के नजरिए से देखें तो इसकी वजह IL&FS डेट क्राइसिस के बाद बैंकों के रिटेल लोन पर फोकस करना रहा है। ब्याज दरें कम होने के चलते बॉरोअर्स ने ज्यादा उधार लिए। इनके अलावा ई-कॉमर्स कंपनियों के छोटे शहरों में एंट्री मारने के चलते भी वहां उधार पर खरीदारी बढ़ी। 

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