रिन्यूएबल एनर्जी का असर- तेल और गैस उत्पादक वाले देशों को 9 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान
मुंबई– तेल और गैस का उत्पादन करने वाले देशों के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। यह मुश्किलें आगे और बढ़ेंगी। क्योंकि पूरी दुनिया अब रिन्यूएबल एनर्जी की ओर फोकस कर रही है। इस वजह से तेल और गैस पर निर्भर देशों को 9 लाख करोड़ डॉलर के घाटे का सामना करना पड़ा है।
दुनिया के हर देश रिन्यूएबल एनर्जी पर अपना फोकस कर रहे हैं। पता चला है कि गरीब लेकिन संसाधन संपन्न देश खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। उनके सामने ज्यादा जोखिम पैदा हो गया है। कार्बन ट्रैकर के एक आंकलन के अनुसार, सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में 40 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। ये ऐसे देश हैं जहां ईंधन की कमाई में कमी से सरकारी आय में 20% की गिरावट देखने को मिल सकती है। इस वजह से नागरिकों को मिलने वाली आम सेवाओं में कटौती हो सकती है। साथ ही और अधिक बेरोजगारी की नौबत आ सकती है। इसमें से आधे लोग नाइजीरिया में रहते हैं। नाइजीरिया में तेल की कमाई में 70% की गिरावट आई है। इससे देश की इनकम में एक तिहाई से ज्यादा की कमी होगी।
वाइंड और सौर (सोलर) ऊर्जा जैसे रिन्यूएबल एनर्जी, फॉसिल फ्यूल की तुलना में सस्ती हो जाती है। फॉसिल फ्यूल का मतलब गैस, तेल, कोल जैसे प्राकृतिक संसाधनों से तैयार होने वाले ईंधन से है। तेल उत्पादक देशों की इंडस्ट्री के आंकलन के अनुसार, साल 2040 तक उनको 13 लाख करोड़ डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कार्बन ट्रैकर में जलवायु, ऊर्जा और उद्योग के प्रमुख एंड्रयू ग्रांट ने कहा कि हाल ही में चीन और जापान जैसे वैश्विक पावरहाउस देशों ने नेट-जीरो घोषणाएं कर प्रदूषण फैलाने वाली परंपरागत ऊर्जा से दूर रिन्यूएबल एनर्जी को प्रोत्साहन दिया है। उन्होंने कहा कि स्पष्ट रूप से दुनिया में कुछ देशों के लिए तेल का बिजनेस ही नहीं होगा। फॉसिल फ्यूल उत्पादक देश जो अपने देश के बजट के लिए ज्यादातर इसी पर निर्भर रहते हैं, उन्हें निश्चित रूप से आने वाले दिनों में मुश्किलों का सामना करना ही पड़ेगा।
विश्लेषण में पाया गया कि अगर तेल के लिए 60 डॉलर प्रति बैरल के ओपेक (तेल बनाने वाले देशों के संगठन) पहले के अनुमान के स्तर पर अपनी कीमत रखने में फेल होता है तो अंगोला और अजरबैजान सहित 7 देशों को 2040 तक कुल सरकारी कमाई का कम से 40% का नुकसान हो सकता है। स्टडी के अनुसार, नाइजीरिया, अल्जीरिया, सऊदी अरब, कुवैत और इराक उन 12 देशों में हैं जिनकी सरकारी कमाई में 20-40% का नुकसान सकता है। रूस, मैक्सिको और ईरान को 10-20% के बीच नुकसान हो सकता है।
2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत देशों को तापमान को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में व्यापक कटौती करनी है। उस समझौते के तहत, अमीर देशों को जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक असुरक्षित देशों को सालाना 100 अरब डॉलर देना चाहिए। विश्लेषण में कहा गया है कि देशों को तकनीकी सहायता के लिए फंडिंग के साथ-साथ रेगुलेटरी और टैक्स रिफार्म को अपनाने में मदद की जा सकती है, ताकि वे फॉसिल फ्यूल से होने वाली अर्थव्यवस्थाओं में नुकसान को कम किया जा सके।
रिन्यूएबल एनर्जी का उपयोग करने के मामले में आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश चीन पहले नंबर पर है। उसके बाद अमेरिका, जर्मनी, ब्राजील, भारत, जापान, यूके, स्पेन, इटली और फ्रांस हैं। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया इसके बाद हैं। विश्व की पूरी आबादी में से आधे से ज्यादा आबादी इन्हीं देशों में हैं। ऐसे में रिन्यूएबल एनर्जी का आने वाले दिनों में ज्यादा उपयोग से तेल उत्पादक देशों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।