यूटीआई के आईपीओ में निवेश करने से पहले यूएस-64 स्कीम के घोटाले को जरूर याद करें, लगातार घट रही है यूटीआई म्यूचुअल फंड की रैंकिंग

मुंबई– हाल के समय में कुछ आईपीओ ने निवेशकों को बेहतरीन लाभ दिया है। 10 दिनों में ही निवेशकों की राशि दोगुना हो गई है। लेकिन आप सोचते हैं कि ऐसा कुछ यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) म्यूचुअल फंड के साथ होनेवाला है तो आप इसके आईपीओ में निवेश करने से पहले इसके इतिहास को जरूर पढ़ें।  

किसी भी स्टॉक या आईपीओ में या कहीं भी निवेश करते समय कंपनी के इतिहास, मैनेजमेंट और उसकी फाइनेंशियल स्थिति को जरूर देखें। यूटीआई इन तीनों पैरामीटर्स पर खरी नहीं उतरती है। यूटीआई की स्थापना 1964 में संसद एक्ट के तहत हुई थी। इसे म्यूचुअल फंड स्कीम के तहत देश की बचत में योगदान देना था। यूटीआई ने पहली स्कीम यूनिट स्कीम 1964 को लांच किया था। इसे यूएस-64 के नाम से जानते हैं। फंड की शुरुआती पूंजी 5 करोड़ रुपए की थी, जिसे रिजर्व बैंक, एलआईसी, एसबीआई और अन्य विदेशी बैंकों ने दिया था।  

1998 में अचानक निवेशकों ने यूएस-64 स्कीम से पैसे निकालने शुरू कर दिए थे। क्योंकि यह गंभीर आरोप लगा था कि इस स्कीम में निवेशकों के पैसे सुरक्षित नहीं हैं। यूएस-64 के 32 सालों के इतिहास में यह पहली घटना थी। जुलाई 1995 से मार्च 1996 के दौरान इसके फंड में 3,104 करोड़ रुपए की कमी आई। इससे एक तरह से लिक्विडिटी का संकट पैदा हो गया। बाद में इस संकट में पता चला कि सही तरीके से फंड प्रबंधन और आंतरिक नियंत्रक सिस्टम सही नहीं था।अक्टूबर 1998 में यूएस-64 के इक्विटी कंपोनेंट का बाजार मूल्य गिरकर 4,200 करोड़ रुपए रह गया था। जबकि यह इससे पहले 8,200 करोड़ रुपए था। इस स्कीम की एनएवी भी 1993-96 के दौरान काफी गिरी जो 9.68 रुपए पर रह गई। जबकि इस स्कीम की बिक्री 14.55 रुपए पर की गई थी और फिर से अक्टूबर 1998 में खरीदी 14.25 रुपए पर की गई थी। ये तो इतिहास रहा।  

मैनेजमेंट को लेकर देखें तो कभी भी स्थिर मैनेजमेंट नहीं रहा है। यहां तक कि इसके एमडी की पोस्ट दो-दो साल तक खाली रहती है। यूके सिन्हा के जाने के बाद कंपनी में दो साल तक कोई एमडी नहीं था। फिर अभी लियोपुरी के जाने के बाद से करीबन डेढ़ साल तक एमडी की पोस्ट खाली रही। हाल में आईपीओ से कुछ समय पहले इम्तियाजुर रहमान को सीईओ बनाया गया है। इनसे पहले लियोपुरी काफी विवादित एमडी रहे हैं। उन्हें जबरदस्ती जाना पड़ा। अपने कार्यकाल के विस्तार को लेकर जोर आजमाइस कर रहे लियोपुरी ने यूटीआई के एक हिस्सेदार टी रोवे प्राइस को अपने पक्ष में कर लॉबिंग भी की, पर वे सफल नहीं हुए। वे सोच रहे थे कि आईपीओ की मंजूरी मिल जाए तो उनको विस्तार मिल जाएगा, लेकिन बड़े बेआबरू होकर उन्हें निकलना पड़ा।  

यूटीआई के चार शेयर धारक सरकारी हैं। इन चारों को सेबी ने पिछले साल यूटीआई में हिस्सेदारी घटाने का आदेश दिया था। लेकिन चारों ने सेबी की एक न सुनी। एलआईसी, एसबीआई, पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा इसके हिस्सेदार हैं। अंत में इस साल सेबी ने चारों पर 10-10 लाख रुपए की फाइन लगा दी। अब प्रदर्शन देखते हैं। यूटीआई कभी एक नंबर की म्यूचुअल फंड कंपनी होती थी। धीरे-धीरे यह गिरते-गिरते आज आठवें नंबर पर पहुंच गई है। दिनों दिन कंपनी की रैंकिंग तो खराब हो ही रही है इसका वित्तीय प्रदर्शन भी गिर रहा है। जहां म्यूचु्अल फंड उद्योग और कंपनियां रैंकिंग में ऊपर जा रही हैं, वहीं यह फंड हाउस लगातार कमजोर प्रदर्शन कर रहा है।  

यूटीआई अब एक बार फिर पब्लिक में आ रही है। इस बार कंपनी आईपीओ लेकर आ रही है जो 29 सितंबर को खुलेगा और एक अक्टूबर को बंद होगा। यह आईपीओ 552 से 554 रुपए पर आ रहा है। 30 जून 2020 के आधार पर इसका कुल असेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) 1336.3 अरब रुपए रहा है। इसके पास 8.97 करोड़ ग्राहक हैं। हालांकि यह पूरे इसके असेट मैनेजमेंट के हैं। 

30 जून 2020 तक इसके पास 163 वितरण नेटवर्क थे। 257 बिजनेस डेवलपमेंट एसोसिएट्स और 43 ओपीए थे। यह सभी ज्यादातर बी-30 (टाप 30 शहरों से आगे) में थे। करीबन 53 हजार स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार इसके पास थे। इसके कुल एयूएम में कॉर्पोरेट और संस्थागत निवेशकों का हिस्सा 45.4 प्रतिशत रहा है। बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों का हिस्सा 3.5 प्रतिशत रहा है। ट्रस्ट का 5.7 प्रतिशत रहा है। कंपनी के पास कुल 153 स्कीम्स हैं। इसमें इक्विटी, हाइब्रिड, इनकम, लिक्विड और मनी मार्केट फंड्स हैं। 

आईपीओ के बारे में  

कंपनी में पांचों शेयर धारक अपनी-अपनी हिस्सेदारी कम करेंगे। कुल 3.89 करोड़ शेयर जारी होंगे। 29 सितंबर को खुलकर एक अक्टूबर को यह बंद होगा। इसका मूल्य दायपा 552-554 रुपए है। न्यूनतम 27 शेयरों के लिए आवेदन किया जा सकता है। कंपनी इसके जरिए 2,152 से 2,159 करोड़ रुपए जुटाना चाहती है जो शेयर धारकों को जाएगा। निर्गम के बाद कंपनी की चुकता पूंजी 30.75 प्रतिशत रहेगी। 2 लाख शेयर कर्मचारियों के लिए आरक्षित होंगे। 50 प्रतिशत क्यूआईबी के लिए, 15 प्रतिशत एचएनआई और 35 प्रतिशत रिटेल के लिए आरक्षित होंगे।  

कंपनी ने अगस्त और सितंबर 2015 में 200 से 260 रुपए पर इक्विटी जारी की थी। इसने बोनस शेयर एक के लिए चार के अनुपात में दिसंबर 2006 और दो के लिए 3 के अनुपात में दिसंबर 2007 में जारी किया था। इश्यू के बाद इसका बाजार पूंजीकरण 7,024 करोड़ रुपए होगा। इश्यू के लीड मैनेजर्स में कोटक महिंद्रा कैपिटल, एक्सिस कैपिटल, सिटीग्रुप ग्लोबल मार्केट्स, डीएसपी मैरिल लिंच, आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज, जे एम फाइनेंशियल और एसबीआई कैपिटल हैं। 

वित्तीय स्थिति- 

कंपनी की वित्तीय स्थिति लगातार गिरती रही है। वित्त वर्ष 2018 में इसका राजस्व 1,162.75 करोड़ रुपए रहा है जबकि लाभ 405 करोड़ रुपए रहा है। 2019 में यह घट कर 1,080.89 और 347.93 करोड़ रुपए हो गया। 2020 में यह और गिरा। रेवेन्यू 890.67 करोड़ तथा शुद्ध लाभ महज 275.49 करोड़ रुपए रह गया। पिछले तीन सालों का इसका औसत प्रति शेयर आय (ईपीएस) 24.83 रुपए रहा है। अगर इसके एनएवी और रिटर्न ऑन नेटवर्थ के आधार पर देखें तो इसका प्राइस टू बुक वैल्यू 2.48 है। इस आधार पर इसका प्राइस टू अर्निंग 17.37 है। हालांकि अगर वित्त वर्ष 2020 के आधार पर देखें तो यह 25.49 है। यह काफी महंगा आईपीओ इस आधार पर है।  

इसमें कुल सात बुक रनिंग लीड मैनेजर्स हैं। इन्होंने पिछले तीन सालों में 28 आईपीओ लाया है। इसमें से 9 आईपीओ तो इश्यू के भी भाव से नीचे चल रहे हैं। ऐसे में यह मर्चेंट बैंकर्स यूटीआई को किस तरह पार लगाएंगे, यह भी एक सवाल है। बाजार में फिलहाल दो म्यूचुअल फंड लिस्ट हैं। एचडीएफसी का बाजार पूंजीकरण 44,746 करोड़ रुपए है। निप्पोन लाइफ का 15,565 करोड़ है। इस तरह से यूटीआई सबसे नीचे रहेगा।   

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