10 लाख करोड़ रुपए के बैड लोन से निपटना बैंकों के लिए बड़ी चुनौती है, इसमें और बढ़त हो रही है
मुंबई- बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज के बुरे फंसने या एनपीए से निपटने के लिए कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं। रिस्ट्रक्चरिंग, मोराटोरियम जैसी तमाम राहत के जरिए इस योजना को पूरा किया जाएगा। हालांकि इस भारी-भरकम एनपीए से निपटने में समय भी लगेगा। राहत के बावजूद बुरे फंसे कर्जों या एनपीए में और तेजी आ रही है।
दरअसल कोरोना ने इस समस्या को बीते दो दशकों में सबसे ज्यादा भयावह बना दिया है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सरकारी लेंडर्स का भी जरूरी समर्थन नहीं मिल रहा है ताकि प्रभावित लोगों को कैश से सपोर्ट किया जा सके और सिकुड़ती अर्थव्यवस्था को थोड़ा पुश किया जा सके। जोखिम भरा लोन अधिकांश दो क्षेत्रों टेलीकॉम और युटिलिटी में है। दोनों सेक्टर आर्थिक मंदी के दौर में असुरक्षित हैं। इसका अर्थ है अगर वे आने वाले दिनों में और अधिक परेशानी का सामना करते हैं तो, उनके द्वारा ली गई लोन की राशि को बैड लोन में बदलने की प्रबल संभावना है।
क्या योजना है?
जब महामारी इस साल की शुरुआत में भारत में शुरू हुई तो आरबीआई ने बैंकों को 31 अगस्त तक लोन के रिपेमेंट पर छूट देने को कहा। ब्रोकरेज हाउस जैफरीज का अनुमान है कि शुरुआत में 31 प्रतिशत लोन लेने वालों ने आरबीआई के प्रस्ताव को स्वीकार किया। हालांकि जैसे-जैसे आगे चलकर हालात थोड़ा सुधरने लगे, इस ऑफर का लाभ उठाने वालों की संख्या में कमी आई। जून के अंत तक 18 प्रतिशत लोगों ने इस ऑफर का लाभ उठाना शुरू किया था।
कुछ लोगों को बाद में महसूस हुआ कि इस तरह के मोराटोरियम का लाभ उठाना आगे चलकर महंगा साबित हो सकता है। इसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने उन उधारकर्ताओं के लिए एक बार के लिए ऋण पुनर्गठन (one-time debt restructuring ) की अनुमति दी जो लॉकडाउन से पहले किश्त चुका रहे थे। बैंक भुगतान को फ्रीज किये बिना दो साल के लिए लोन में एक्सटेंशन प्रदान कर सकते हैं। महामारी के दौरान भारत की 1.8 ट्रिलियन डॉलर के फाइनेंशियल सिस्टम में बैंकों का लगभग 10 लाख करोड़ रुपए बैड लोन के रूप में आ चुका है। साथ ही साथ एनबीएफसी में 2 साल से लिक्विडिटी का संकट मंडरा रहा था। फिर मोदी की सरकार द्वारा मार्च में दुनिया के सबसे सख्त शेल्टर-एट-होम नियमों की शुरुआत करने के बाद व्यावसायिक गतिविधियाँ चरमरा गई।
चार दशकों से भी अधिक समय में पहली बार अर्थव्यवस्था को इतने बड़े पैमाने पर कम होने का अनुमान लगाया गया है। रिजर्व बैंक के अनुमानों के मुताबिक, कुल लोन का एनपीए या बुरा कर्ज मार्च 2021 तक बढ़कर 12.5 प्रतिशत हो जाएगा जो मार्च 2000 में 8.5 प्रतिशत था। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यह और भी अधिक विकट हो सकता है। इंडिया रेटिंग्स का अनुमान है कि कुल बैंक क्रेडिट का लगभग 8 प्रतिशत का पुनर्गठन (रिस्ट्रक्चरिंग) करना पड़ सकता है और बाकी इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या आर्थिक विकास को बहाल करने के लिए महामारी को कुशलतापूर्वक नियंत्रित किया जा रहा है या नहीं।
कौन सी कंपनियों या इंडस्ट्रीज पर ज्यादा संकट मंडरा रहा है ?
स्टैंडर्ड चार्टर्ड पीएलसी का अनुमान है कि चार सेक्टर्स की 15 कंपनियों के पास मार्च 2020 तक कुल स्ट्रेस्ड या तनाव वाले कर्ज का 70 प्रतिशत हिस्सा था। इस लिस्ट में टेलीकॉम सेक्टर टॉप पर था जिसके पास कुल लोन का लगभग एक तिहाई हिस्सा है। यह सेक्टर कई तरह से मार भी खा रहा है। बिजली की मांग गिरने के साथ ही यूटिलिटीज पर भी दबाव पड़ा है। इस सेक्टर में कुल स्ट्रेस्ड लोन का अनुपात इस साल के 14 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2021 तक 17% से 19% तक बढ़ सकता है।
एसएंडपी ग्लोबल की भारतीय इकाई क्रिसिल ने 2,300 से अधिक एनबीएफसी का विश्लेषण किया। लॉकडाउन से आहत इन कंपनियों में से सिर्फ पांच कंपनियों ने मोराटोरियम का लाभ उठाया। ये कंपनियां जूलरी, होटल और यूटिलिटीज से जुड़ी हैं। इस कर्ज के एनपीए की नींव 2007 से 2012 के डाली गई। इसी दौरान बैंकों ने कर्ज में 4 गुना की बढ़ोतरी की। जब विकास दर हाल ही में धीमी हुई तो कई कंपनियों को लोन चुकाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। इससे बैंकों को और अधिक उधार देने की इच्छा नहीं रही है।
इसमें वैसे तो बैंकों के साथ एनबीएफसी की भी बड़ी भूमिका थी लेकिन सबसे प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (आईएलएफएंडएस) की भूमिका थी। इसका मामला 2018 में में आया। इसे भारत का मिनी लेहमन माना जाता है।
क्या इस कदम से समस्या का समाधान होगा?
ऐतिहासिक डेटा के अध्ययन से स्टैंडर्ड चार्टर्ड के अनुसार, इसका हल तुरंत निकलना मुश्किल है। जैफरीज ने यह भी भविष्यवाणी की है कि आधे रिस्ट्रक्चरिंग लोन एनपीए में चले जाएंगे। यह अगले दो वर्षों में कुल बकाया लोन का 4% हो जाएगा। इस दौरान क्रिसिल का कहना है कि पुनर्गठन से कंपनियों के कैश फ्लो और उनकी रेटिंग प्रोफाइल की रक्षा में मदद मिलेगी। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि महामारी नियंत्रण में होने के बाद बैंकों को आगे और रियायत नहीं दी जाएगी। रिजर्व बैंक का पूर्वानुमान है कि बैंकों का पूंजी-पर्याप्तता अनुपात (capital-adequacy ratio) मार्च तक 14.6% से 11.8% तक कम हो सकता है।
खुद को बचाने और भविष्य के कारोबार की तैयारी के लिए भारत के ज्यादातर टॉप प्राइवेट बैंक जैसे कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड ने इक्विटी मार्केट्स के जरिए करीब 9 अरब डॉलर जुटाए हैं। हालांकि, ज्यादातर सरकारी बैंक, जिनके पास कुल बैंक क्रेडिट का दो तिहाई हिस्सा है, वे विवश हैं और सरकार द्वारा फंडिंग की राह देख रहे हैं। यह हाल फिलहाल इस साल संभव नहीं दिखाई दे रही है। पर फिलहाल तो मोदी सरकार सरकारी बैंकों को छोटे और मझोले बिजनेसमैन और व्यापारियों को लोन देने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। क्योंकि अप्रैल-जून 21 की तिमाही में जीडीपी 23.9 प्रतिशत तक गिर चुकी है। यह बहुत ही बुरा प्रदर्शन रहा है।