महंगाई और विकास के आंकड़ों के आधार पर दरों में होगी कटौती : आरबीआई

मुंबई। महंगाई और विकास का परिदृश्य भविष्य में ब्याज दरों में कटौती का निर्धारण करेगा। मौजूदा आंकड़े ब्याज दरों में कटौती की दिशा को प्रभावित नहीं करेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा, आरबीआई की ब्याज दरों में कटौती से परिसंपत्ति बुलबुले नहीं बनेंगे। केंद्रीय बैंक के पास ब्याज दरों में कटौती के अलावा अर्थव्यवस्था की मदद के लिए और भी हथियार मौजूद हैं।

आरबीआई ने फरवरी से जून के बीच रेपो दर में एक फीसदी की कटौती की है। खुदरा महंगाई चार प्रतिशत के लक्ष्य के मुकाबले घटकर 2.1 प्रतिशत रह गई है। इससे आगे भी इसमें कमी आने की उम्मीद है। मल्होत्रा ने कहा, हमें यह याद रखना होगा कि मौद्रिक नीति में देरी होती है। इसलिए दरों पर निर्णय लेते समय मुद्रास्फीति जैसे प्रमुख आंकड़ों के परिणामों पर 12 महीने तक के दृष्टिकोण को ध्यान में रखा जाता है। वर्तमान अनुमानों के अनुसार, चौथी तिमाही में खुदरा महंगाई बढ़कर 4.4 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है। लेकिन वर्तमान परिणामों से संकेत मिलता है कि इसमें कमी आएगी।

जून तक उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष बैंकों की कर्ज दरों में लगभग 0.50 प्रतिशत की कमी आई है। मल्होत्रा ने कहा, ब्याज दरों में कटौती का उद्देश्य ऋण वृद्धि को बढ़ावा देना है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 12.1 प्रतिशत की ऋण वृद्धि दर बेहतर है। चालू वित्त वर्ष में यह दर लगभग 9 प्रतिशत के स्तर पर बनी रहेगी। नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 3 प्रतिशत की कटौती के बावजूद आरबीआई के पास किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त धन है।

गवर्नर ने कहा, सीआरआर में कटौती केवल नकदी प्रवाह बढ़ाने का कदम नहीं है, बल्कि मध्यस्थता की लागत कम करने का एक प्रयास है। इससे उधारी लागत भी कम करने में मदद मिलेगी। वर्तमान में 8,000 से अधिक नियम हैं। इनमें से केवल लगभग 3,000 ही प्रचलन में हैं। बाकी अप्रचलित हो चुके हैं। आरबीआई प्रत्येक 5-7 वर्ष के बाद विनियमन की समीक्षा करने तथा उसे समसामयिक बनाए रखने के लिए एक नियामक समीक्षा प्रकोष्ठ भी स्थापित कर रहा है।

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