भारतीयों पर कर्ज बढ़ा, पहले 34 हजार रुपए था, अब 52 हजार रुपए हुआ

मुंबई– कोरोना ने न सिर्फ लोगों को बीमार किया, बल्कि कर्जदार भी बनाया। कोरोना के चलते नौकरियां गईं और आमदनी घटी। महंगाई बढ़ी और मेडिकल समेत दूसरे खर्चों का बोझ भी बढ़ा। भारतीय परिवारों ने इन खर्चों की भरपाई के लिए कर्ज का सहारा लिया। ऐसे में एक साल में ही हर व्यक्ति पर कर्ज का बोझ 34 हजार रुपए से बढ़कर 52 हजार रुपए हो गया है। SBI की तरफ से जारी हालिया रिपोर्ट से ये साफ भी हो जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में परिवारों पर कर्ज का आंकड़ा सालभर में बढ़कर GDP का 37.3% हो गया है। यह पिछले साल 32.5% था। 

SBI रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक फाइनेंशियल ईयर 2017-18 में कर्ज का आंकड़ा GDP का 30.1% था। जो 4 साल में बढ़कर 37.3% हो गया है। इसका मतलब प्रतिशत के लिहाज से यह आंकड़ा 23% बढ़ा। 2021 बजट के मुताबिक हमारा GDP 194.81 लाख करोड़ रुपए था। इस लिहाज से घरेलू कर्ज का हिस्सा अगर 37.3% है तो इसकी वैल्यू करीब 72.66 लाख करोड़ रुपए होगी। 2021 में भारत की जनसंख्या 139 करोड़ है। अब कुल आबादी और घरेलू खर्च के आंकड़ें की गणना करें तो भारत के हरेक शख्स पर औसतन 52.12 हजार रुपए का कर्ज है। साल 2017-18 में इसी हिसाब से ये आंकड़ा 29,385 रुपए था। यानी 7 साल में लोगों पर कर्ज 78% बढ़ गया। 

रिपोर्ट से एक बात और सामने आई है कि 1 जुलाई 2017 को गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) लागू होने के बाद से भारतीय परिवारों पर कर्ज लगातार बढ़ रहा है। GST लागू होने के समय यानी जुलाई 2017 में बेरोजगारी दर 3.4% और रिटेल महंगाई दर 2.41% थी। जून 2021 में बेरोजगारी दर 9.17% और रिटेल महंगाई दर 5.52% हो गई। ऐसे में फाइनेंशियल ईयर 2017-18 के बाद के चार साल में परिवार पर कर्ज में लगातार इजाफा हुआ है। बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (BIS) के मुताबिक GDP में घरेलू कर्ज की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी वाले देशों में अमेरिका, ब्रिgटेन, चीन समेत जापान भी शामिल हैं, जो भारत से भी आगे हैं। 

देश की कुल इकोनॉमी में से घरेलू कर्ज के लिहाज से कोरिया दुनिया में सबसे आगे है। यहां GDP में घरेलू कर्ज का हिस्सा 103.8% है। इसके बाद हांगकांग (91.2%) और ब्रिटेन (90.0%) हैं। सबसे बड़ी इकोनॉमी में शुमार चीन में यह आंकड़ा 61.7% और अमेरिका का 79.5% है। आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौटने लगी हैं। नतीजतन, हालात सुधरते नजर आने लगे हैं। लेकिन तीसरी लहर की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं। ऐसे में मेडिकल पर खर्च बढ़ने से परिवारों पर कर्ज का यह आंकड़ा आगे भी बढ़ने की संभावना है। 

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