24 वर्ष पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा मीरा भाईंदर को दिखाए गए सपने हो रहे हैं ध्वस्त

आर.एस. त्रिपाठी 

मुंबई– 24 वर्ष पहले शिवसेना सरकार द्वारा मीरा भाईंदर शहर का विकास मानचित्र मंजूर हुआ। जिसमें विभिन्न तरह के कुल 385 आरक्षण पब्लिक सुविधा के लिए किए गए। तब शहर की अनुमानित जनसंख्या ढ़ाई लाख थी। जो आज तकरीबन पंद्रह लाख तक पहुंच गई है। बावजूद इसके शासन-प्रशासन की मिली भगत से अधिकांश आरक्षणों की ज़मीन कानूनी लूपहोल के सहारे बिल्डरों को दे दी गई। जहां ऊंचे ऊंचे टावर खड़े कर दिए गए।  

सन् 1997 के उस विकास मानचित्र में दिखाई गई सड़कों की चौड़ाई आज भी जस की तस हैं। नई-नई इमारतों में लोग आते गए शहर की जनसंख्या दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ती गई। बेतहाशा बढ़ती हुई शहर की जनसंख्या के लिए ना तो पानी की व्यवस्था हुई और न सड़कों का विस्तारीकरण हुआ न जनसंख्या के आधार पर अस्पतालों का निर्माण हुआ। जो अस्पताल बनाए गए उनमें जरूरत के उपकरणों की आज भी कमी है। 

इस शहर को फास्टग्रो का दर्जा तो मिल गया लेकिन इस शहर के नागरिक आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। कुछ सामाजिक संगठनों और पत्रकारों द्वारा समय-समय पर मीरा भाईंदर मनपा के भ्रष्टाचार को महाराष्ट्र शासन तक पहुंचाया गया। फिर भी कुछ हासिल नहीं हो पाया। बहुतेरे भ्रष्टाचार के खिलाफ मामले मुम्बई हाईकोर्ट में लंबित हैं। 

जानकारों की राय में इस शहर का तब-तक कुछ नहीं होगा जब-तक पूरा-पूरा परिवर्तन नहीं होगा। सन् 1995 से 1999 तक युति (सेना-भाजपा) का शासन था। उसके बाद आघाड़ी और फ़िर भाजपा-शिव सेना का और अब शिवसेना-कांग्रेस-राकांपा की सत्ता है। मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि, मीरा भाईंदर मनपा में भाजपा की सत्ता है और पालिका स्वायत संस्था है। शहर की हालात आपके सामने है। पानी की किल्लत बरकरार है। यातायात अपने आप में मिशाल है। 

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