9 गांवों को मिलाकर बना था मीरा-भाईंदर, पर मुसीबतें आज भी वैसी ही
आर.एस. त्रिपाठी
मुंबई– मीरा भाईंदर शहर परेशानियों के लिए जाना पहचाना जाता है। सन् 1985 में 9 गांवों को मिला कर जब नगर परिषद की स्थापना हुई थी, तब शहर की जनसंख्या एक लाख 75 हजार थी। इस जनसंख्या के लिए मात्र आधा एमएलडी पानी की व्यवस्था थी। सन् 2002 में स्वतंत्र रूप में कार्य करने वाली महानगर पालिका की स्थापना हुई। इसके पहले 2001 में जनगणना हुई थी तब जनसंख्या पांच लाख बीस हजार 388 थी और पालिका में 86 एम एल डी पानी था।
सन् 2005 से 2010 की महानगर पालिका में जो चल रहा था उसकी सीएजी रिपोर्ट भारत के मुख्य लेखा परीक्षक द्वारा तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार को दी गई थी। जिसमें लिखा गया था कि, मीरा भाईंदर मनपा में 33 से 44 टका पानी की किल्लत है। जिस पर 2011 जून तक तबकी कांग्रेस सरकार ने भी कुछ भी नहीं किया था। सच यह है कि, आज तक महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हुई। सरकारें आती रहीं जाती रहीं। लेकिन अपने शहर मीरा भाईंदर पर कोई असर नहीं पड़ा। तब भी पानी की किल्लत थी और आज भी है।
विशेष यह है कि, कैग रिपोर्ट में लिखा गया था कि, पालिका प्रशासन को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर पानी देने की ज़वाबदारी है, जिसे पालिका नहीं निभा रही है। वहीं टैक्स वसूली के लिए सख्त कार्रवाई करने के लिए आजाद है। मगर टैक्स देने वाले टैक्स पेयर्स पालिका की ज़वाबदारी के लिए कुछ भी नहीं बोलने के लिए मज़बूर हैं। क्योंकि नगर सेवक/नगर सेविकाएं भी टैक्स भरने के लिए लोगों को कहती हैं मगर पानी के लिए पब्लिक के साथ खड़ी नहीं होते हैं।
इतना बड़ा जनसमूह मूठ्ठी भर शासन-प्रशासन से क्यों डरा और सहमा हुआ है? मीरा भाईंदर में इस समय पानी की भयंकर किल्लत है। 25-25 महले की ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों और होटलों को मंजूरी तो दी जा रही है, पर पानी की सप्लाई पुराने ही आधार पर हो रही है। काफी कुछ महानगर पालिका की मिलीभगत से चल रहा है। जानकार कहते हैं कि जब पानी पुरानी ही सप्लाई से आ रहा है तो नए प्रोजेक्ट को मंजूरी देने की जरूरत ही क्यों है और वहां कहां से पानी सप्लाई होगा।