किसान सम्मान निधी की जरूरत ही नहीं, फसलों का वाजिब दाम मिले तो आंदोलन खत्म हो जाएगा- आइफा

मुंबई– कल किसानों को इस साल की अंतिम किश्त प्रधानमंत्री सम्मान निधि के तहत मिली। बड़े पैमाने पर सरकारी तंत्र द्वारा इसका प्रचार प्रसार किया गया। लेकिन जिसे किसानों का सम्मान बताकर ढोल पीटा जा रहा है, दरअसल वह सम्मान तो शुरू में ही हटा दिया गया था। यह बस एक झुनझुना जैसा है।  

बात करते हैं पहले सम्मान के शुरुआत की  

साल 2018 में इसकी बुनियाद बनाई गई। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के घर पर कुल 22 लोगों की बैठक हुई। इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कुछ इंडस्ट्रिलियस्ट और किसानों के 4 नेता थे। किसानों के नेताओं की अगुवाई की छत्तीसगढ़ के बस्तर के किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने।  

राजाराम त्रिपाठी अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के संयोजक हैं। इसमें 45 किसान संगठन हैं। राजनाथ के घर पर ही घोषणा पत्र बना। इस घोषणा पत्र में राजाराम त्रिपाठी ने सलाह दी कि किसानों को साल का 24 हजार रुपए दिया जाए।  

इसके पीछे की कहानी कुछ ऐसी है। उन्होंने कहा कि जब किसान कमजोर हो जाता है, काम नहीं कर पाता है, तब उसके ही घर में उसकी इज्जत नहीं होती है। बुढ़ापा बहुत दिक्कत से गुजरता है। उसे सताया जाता है। 60 साल किसानी करने के बाद ऐसी स्थिति के लिए उसे महीने का 2 हजार रुपए अगर मिल जाए तो उसका सम्मान घर में बना रहेगा। बेटी बेटा, बहू उसकी इज्जत करेंगे।  

6 घंटे की इस मीटिंग में यह सलाह दी गई कि सब्सिडी की बजाय सीधे किसानों को अगर यह रकम मिल जाए तो वह इस रकम को खेती में ही लगाएगा और फिर अनाज का उत्पादन अच्छा होगा। हालांकि इससे पहले से तेलंगाना सालाना 16 हजार रुपए किसानों को देता है। उन्होंने कहा प्रस्ताव तो माना गया , पर बाद में इसे 24 हजार की जगह 6 हजार रुपए सालाना कर दिया गया। इसे एक साल बाद यानी 2019 दिसंबर में लागू किया गया जो अब एक साल हो गया है। 

दरअसल यह महीने की 500 रुपए की रकम है। गांवों में जो किसान रहता है उसे महीने में यह रकम लेने के लिए 2-3 बार बैंक जाना होता है। क्योंकि बैंक एक बार में 100-200 लोगों को ही पैसे देता है। अगर कोई किसान 2 बार भी इस रकम के लिए बैंक गया तो उसकी दो दिन की मजदूरी ही 600 रुपए हो गई। फिर किराया का खर्चा अलग है।   

ऐसे में इस रकम को देना या न देना, कोई मायने नहीं रखता है। या यही रकम अगर एक बार में मिल जाए तो उपयोगी हो सकती है और किसान का बैंक में चक्कर काटने का समय बच जाएगा। सरकार किसानों के साथ अन्याय कर रही है। पिछले ही साल आरटीआई से जानकारी मिली कि रिजर्व बैंक ने केवल 60 उद्योगपतियों के 70 हजार करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ कर दिया। जबकि किसानों को इतनी भी रकम नहीं मिली है। रकम तो मामूली है, लेकिन प्रचार ऐसा है कि देश में किसानों को ही सब कुछ मिल रहा है।  

किसानों की प्रमुख मांगे क्या हैं  

किसानों की मांग यह है कि जो कम से कम मूल्य समर्थन (एमएसपी) है उसमें एक तय प्राइस की जाए कि इससे कम में कोई व्यापारी हो या सरकार हो, उत्पादन को नहीं खरीदेगी। सरकार कह तो रही है ऐसा होगा, लेकिन वह इस पर एक अध्यादेश नहीं ला रही है। इसलिए इसमें असली पेंच यहां पर है। साथ ही बिल को होल्ड कर दिया जाए। अगर इतना सा ही सरकार मान ले तो आंदोलन खत्म हो जाएगा। 

सरकार अभी एमएसपी पर किसानों की सिर्फ 7 पर्सेंट ही फसल खरीदती है। ऐसी कोई मांग नहीं है कि फसल सरकार ही खरीदे। अगर यह कानून बन जाए तो व्यापारी भी खरीदेगा तो किसानों को अच्छी रकम मिलेगी। 16 रुपए प्रति किलो गेहूं बिकता है, जबकि कंपनियां उसी गेहूं का आंटा 45-50 रुपए किलो दे रही हैं। यह तो डबल से भी ज्यादा मुनाफा है। किसानों की मांग है कि अगर देश में न्यूनतम मजदूरी तय है तो फिर एमएसपी क्यों नहीं तय हो सकता है? सरकार को ये करना चाहिए।   

पंजाब का ज्यादा विरोध क्यों है?  

दरअसल यह पूरा मामला राज्यों के टैक्स से जुड़ा है। उनको डर है कि नए कानून से उनका टैक्स खत्म हो जाएगा। जैसे उदाहरण के तौर पर पंजाब को सालाना मंडी के टैक्स और फीस से 3,500 करोड़ रुपए मिलता है। इसमें 6 पर्सेंट मंडी टैक्स और 2.5 पर्सेंट सेंट्रल प्रोक्योरमेंट को हैंडलिंग करने का चार्ज लिया जाता है।  

किसानों की आत्महत्या में पंजाब सबसे पीछे 

किसानों की आत्महत्या की बात करें तो 2019 में पंजाब में केवल 3 पर्सेंट किसानों ने आत्महत्या की थी। जबकि किसानों के आंदोलन में पंजाब की ही भूमिका अहम है। छत्तीसगढ़ के 6 पर्सेंट किसान, तेलंगाना के 6 पर्सेंट किसान, मध्य प्रदेश के 8 पर्सेंट किसान, आंध्र प्रदेश के 12 पर्सेंट किसान और कर्नाटक के 22 पर्सेंट किसानों ने आत्महत्या की थी। महाराष्ट्र सबसे टॉप पर रहा जहां 45 पर्सेंट किसानों ने आत्महत्या की। दिलचस्प यह रहा है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक की तुलना में पंजाब के कृषि हाउस होल्ड की आय 2.3 गुना ज्यादा रही है।  

आंकड़े बताते हैं कि 2015 में कुल 11,584 किसानों ने, 2016 में 11,379, 2017 में 10,655 किसान, 2018 में 10,349 और 2019 में 10,269 किसानों ने आत्महत्या की थी।  

किसानों का क्रेडिट कार्ड 

अब किसानों के क्रेडिट कार्ड के बकाए को देखते हैं। पंजाब में प्रति किसान क्रेडिट कार्ड पर 2,93,288 रुपए का बकाया है। हरियाणा में यह 211,577 रुपए, राजस्थान में 141,583 रुपए, उत्तर प्रदेश में 98,722 रुपए, मध्य प्रदेश में 96,146 रुपए, छत्तीसगढ़ में 57,488 रुपए और महाराष्ट्र में 96,523 रुपए बकाया है।   

मार्च 2020 तक किसानों के क्रेडिट कार्ड का कुल बकाया 7,095 अरब रुपए रहा है। इसमें 6.7 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड हैं।  

MSP को फ्लोर प्राइस बनाना बाजार के लिए नुकसानदेह 

SBI के रिसर्च के मुताबिक, किसानों की मांग के हिसाब से MSP को मंडी के भीतर और बाहर दोनों जगह के लिए फ्लोर प्राइस के तौर पर लागू करना बाजार के लिए नुकसानदेह होगा। इससे खरीदार बिदकेंगे क्योंकि अगर सभी एक रेट पर माल लेंगे तो उनका इन्सेंटिव या कॉम्पिटिटिव एज नहीं रहेगा। ऐसे में कुछ खरीदार तिकड़म लगाकर बहुत से छोटे किसानों से कम पर खरीदारी करने की जुगत लगाएंगे। 

SBI ने ऐसे में किसानों की समस्या के समाधान के लिए पांच उपाय बताए हैं। 

पांच साल का क्वॉन्टिटी गारंटी क्लॉज 

किसान प्राइस गारंटी के तौर पर जो MSP मांग रहे हैं उसके बजाय सरकार कानून में कम से कम पांच साल के लिए क्वॉन्टिटी गारंटी क्लॉज जोड़ सकती है। इसके हिसाब से वह लगातार पांच साल तक किसानों के कुल उत्पादन का उतना प्रतिशत उपज खरीदती रहेगी, जितना उसने पिछले साल खरीदा था। इसके साथ ही वह बाढ़ और सूखे वाली स्थिति में किसानों की आजीविका के लिए उपाय कर सकती है। फसलों की सरकारी खरीदारी हालिया आंकड़े बताते हैं कि कुल गेहूं उत्पादन का 25 से 35 पर्सेंट हिस्सा ही वह खरीदती रही है। गेहूँ की सबसे ज्यादा खरीदारी पंजाब और हरियाणा के किसानों से होती रही है। 

eNAM मार्केट के लिए नीलामी का फ्लोर प्राइस 

सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस को नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (eNAM) में होने वाली नीलामी के लिए फ्लोर प्राइस बना सकती है। लेकिन इससे समस्या पूरी तरह दूर नहीं होगी क्योंकि मौजूदा डेटा के मुताबिक (eNAM) मंडियों का औसत मॉडल प्राइस उड़द को छोड़कर सभी कमोडिटी के MSP से कम है। 

APMC मार्केट व्यवस्था को मजबूत करती रह सकती है 

APMC मार्केट वाली व्यवस्था के ढांचे को मजबूत बनाने की कवायद जारी रखी जा सकती है। सरकार की एक रिपोर्ट के हिसाब से फसल की कटाई और उसके बाद अनाज के रखरखाव की दिक्कतों से लगभग 27,000 करोड़ रुपए सालाना का नुकसान होता है। इन दिक्कतों के चलते तिलहन का 10,000 करोड़ रुपए जबकि दलहन 5000 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। 

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक संस्था बना सकती है 

सरकार देश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (ठेका पर खेती) के लिए एक संस्था बना सकती है जिसके पास कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए होनेवाली प्राइस डिस्कवरी पर नजर रखने का विशेष अधिकार हो सकता है। कई देशों में किसानों को टेक्निकल असिस्टेंस के साथ मार्केट के सप्लाई चेन का एक्सेस मुहैया कराने और कीमतों में स्थिरता का लाभ दिलाने में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का अहम रोल रहा है। थाईलैंड का अनुभव बताता है कि बाजार में निश्चितता और दाम में स्थिरता ने वहां के किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अपनाने के लिए बढ़ावा दिया है। 

किसान क्रेडिट कार्ड के नॉर्म्स में बदलाव कर सकती है 

सरकार किसान क्रेडिट कार्ड के नियमों में बदलाव करने के बारे में भी सोच सकती है जिसके चलते बैंकों का एग्री पोर्टफोलियो पर बड़ा दबाव है। एसबीआई का कहना है कि किसान क्रेडिट कार्ड के रिपेमेंट नियम में बदलाव करने से किसानों की मासिक आय में 35 पर्सेंट की उछाल आ सकती है। इसके आंकड़े यह भी बताते हैं कि इसमें जितना ज्यादा आउटस्टैंडिंग होता है, किसानों के आत्महत्या करने के आसार कम होते हैं। 

देश में मंडियों की स्थिति 

एपीएमसी मंडी -6,179, ई-नाम पर रजिस्टर्ड एपीएमसी मंडी- 1000 

ई-नाम पर रजिस्टर्ड ट्रेडर्स- 1.45 लाख, ई-नाम पर किसान- 1.67 करोड़ 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *