भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय कारोबार में सालाना 34 अरब डॉलर की होगी वृद्धि

मुंबई- भारत और ब्रिटेन ने अपने बहुप्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए को पूरा कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ब्रिटिश समकक्ष ने इस पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में सालाना लगभग 34 अरब डॉलर की वृद्धि होगी।

एफटीए के बाद ब्रिटेन को किए जाने वाले 99 फीसदी भारतीय निर्यातों पर से शुल्क समाप्त हो जाएगा। यह छूट करीब-करीब पूरे व्यापारिक मूल्य को कवर करती है। यानी दोनों देशों के बीच जो भी व्यापार होता है, उसका लगभग पूरा हिस्सा अब कर मुक्त होगा। इससे दोनों देशों के उत्पाद सस्ते और प्रतिस्पर्धी बनेंगे। इसमें वस्त्र, जेनरिक दवाएं व चिकित्सा उपकरण, चमड़े के सामान और कृषि एवं रासायनिक उत्पाद प्रमुख रूप से शामिल हैं।

अब इस सौदे को भारत में कैबिनेट की मंजूरी और ब्रिटिश संसद की पुष्टि की जरूरत होगी। दोनों देशों के बीच एक अलग द्विपक्षीय निवेश संधि पर अभी भी बातचीत चल रही है। इस समझौते से ब्रिटिश कंपनियों के लिए भारत को व्हिस्की, कार और अन्य उत्पादों का निर्यात आसान हो जाएगा और साथ ही समग्र व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। भारत के लिए यह अब तक का सबसे महत्वपूर्ण व्यापार समझौता है। यह निवेश आकर्षित करने के लिए बाधाओं को कम करने की भारत की इच्छा को दर्शाता है। यह सौदा ऐसे समय में हुआ है जब भारत यूरोपीय संघ और अमेरिका सहित प्रमुख व्यापार साझेदारों के साथ बातचीत कर रहा है।

इस समझौते के तहत भारत अपनी टैरिफ लाइनों में 90 फीसदी की कटौती करेगा। ब्रिटेन के उत्पादों पर औसत शुल्क 15 फीसदी से घटकर 3 फीसदी हो जाएगा। देश स्कॉच व्हिस्की पर अपने टैरिफ को तुरंत आधा करके 75 फीसदी कर देगा। एक दशक में यह स्तर घटकर 40 फीसदी हो जाएगा। इलेक्ट्रिक वाहनों पर कोटा आधारित टैरिफ कटौती पर भी सहमत होगा, जिससे मुख्य शुल्क 110 फीसदी से घटकर 10 फीसदी हो जाएगा।

इस समझौते से दुनिया के प्रमुख देशों में भारत को प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी। भारतीय कृषि उत्पादों को जर्मनी जैसे प्रमुख यूरोपीय निर्यातकों के साथ टैरिफ समानता मिलेगी। वस्त्र और चमड़े पर शून्य शुल्क से बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों के बीच भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ने की उम्मीद है। अगले दो वर्षों में भारत के चमड़ा क्षेत्र को ब्रिटेन में 5 फीसदी की अतिरिक्त बाजार हिस्सेदारी हासिल करने का अनुमान है।

अनुमानों से पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग निर्यात 2030 तक दोगुना होने की संभावना है। अगले वित्त वर्ष में केमिकल निर्यात 30 से 40 फीसदी बढ़ सकता है। रत्न और आभूषण निर्यात अगले तीन वर्षों में वर्तमान 94.1 करोड़ डॉलर से दोगुना होने की उम्मीद है। व्यापार समझौते के प्रभावी होने के बाद सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात में सालाना लगभग 20 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है। ब्रिटिश अधिकारियों का कहना है कि इस समझौते से उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम करने में मदद मिल सकती है।

ब्रिटिश अधिकारियों का अनुमान है कि इस समझौते से लंबी अवधि में भारत को ब्रिटेन के निर्यात में लगभग 60% की वृद्धि होगी। इसमें एक खरीद सेगमेंट भी शामिल होगा, जिससे ब्रिटिश कंपनियां भारत में संघीय स्तर के अनुबंधों के लिए बोली लगा सकेंगी। इसमें एक अध्याय यह होगा कि ब्रिटिश वित्तीय सेवा कंपनियों के साथ घरेलू आपूर्तिकर्ताओं के समान व्यवहार किया जाए।

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