बेरोजगारों सहित सभी तरह के कामगारों व स्वरोजगारों को पेंशन देगी सरकार

मुंबई- सरकार सभी तरह के कामगारों को पेंशन देने की योजना बना रही है। इसमें संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्र के कर्मचारी शामिल होंगे। फिलहाल, असंगठित क्षेत्र के लोगों जैसे निर्माण श्रमिक, घरेलू कर्मचारी और दिहाड़ी श्रमिक सरकार की किसी भी पेंशन के दायरे से बाहर हैं। यह योजना स्वैच्छिक और अंशदायी होगी। रोजगार से बंधी नहीं होगी। इसलिए हर किसी के लिए योगदान और पेंशन अर्जित करने के लिए खुली होगी।
श्रम मंत्रालय के मुताबिक, इसके लिए जल्द ही शेयरधारकों से राय-मशविरा ली जाएगी। यह योजना सभी वेतनभोगी कर्मचारियों और खुद रोजगार करने वाले लोगों के लिए भी होगी। हालांकि, इस नए प्रस्ताव और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) जैसी मौजूदा योजनाओं के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि योगदान स्वैच्छिक आधार पर होगा और सरकार अपनी ओर से कोई योगदान नहीं देगी। इसका मतलब यह है कि स्वैच्छिक आधार पर इस योजना में 18 साल का कोई भी नागरिक शामिल हो सकता है जो 60 वर्ष की आयु के बाद पेंशन का लाभ लेना चाहता है।

सूत्रों के मुताबिक, कुछ मौजूदा योजनाओं को शामिल करके पेंशन/बचत ढांचे को सुव्यवस्थित करने का लक्ष्य है। असंगठित क्षेत्र के लिए सरकार की कई पेंशन योजनाएं हैं। इनमें अटल पेंशन योजना निवेशक की उम्र 60 वर्ष पूरी होने के बाद 1,000 से 1,500 रुपये का मासिक रिटर्न देती है। प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (पीएम-एसवाईएम) के तहत रेहड़ी-पटरी वालों, घरेलू कामगारों या मजदूरों सहित अन्य को लाभ मिलता है।

इस पहल का उद्देश्य पूरे समाज में पेंशन कवरेज का विस्तार करते हुए प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए मौजूदा केंद्रीय योजनाओं को शामिल करना है। सरकार पीएम-एसवाईएम और एनपीएस ट्रेडर्स सहित विभिन्न पेंशन कार्यक्रमों को एक योजना में समेकित करने पर विचार कर रही है। ये वैकल्पिक कार्यक्रम 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के ग्राहकों को सरकारी फंडिंग के अनुरूप 55 से 200 रुपये तक के योगदान के आधार पर 3,000 रुपये की मासिक पेंशन प्रदान करते हैं।

एकीकृत योजना में अटल पेंशन योजना शामिल हो सकती है, जिसका नियामक पीएफआरडीए है। प्रस्ताव में निर्माण उद्योग के श्रमिकों को पेंशन देने के लिए भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम के जरिये एकत्र किए गए उपकर का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है। केंद्र सरकार राज्यों को अपनी पेंशन योजनाओं को इस कार्यक्रम में एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। इससे सरकारी योगदान का समान वितरण, बढ़ी हुई पेंशन राशि और डुप्लिकेट लाभार्थियों का योजना से बाहर किया जा सकता है।

2036 तक भारत की बुजुर्ग आबादी (60 वर्ष और उससे अधिक आयु) 22.7 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। यह कुल आबादी का 15 फीसदी है, जो 2050 तक बढ़कर 34.7 करोड़ यानी 20 फीसदी हो जाएगी।

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