प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय का निधन

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद और अर्थशास्त्री डॉ. बिबेक देबरॉय का शुक्रवार को निधन हो गया। वे 69 साल के थे। दिल्ली के एम्स अस्पताल के मुताबिक, देबरॉय को आंतों से जुड़ी बीमारी थी। सुबह करीब 7 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित देबरॉय नीति आयोग के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने नई पीढ़ी के लिए सभी पुराणों का अंग्रेजी में आसान अनुवाद लिखा था। डॉ. देबरॉय की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के नरेन्द्रपुर में रामकृष्ण मिशन स्कूल में हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से पूरी की।

प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा- डॉ. बिबेक देबरॉय एक प्रखर विद्वान थे। वे अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, अध्यात्म और अन्य विविध क्षेत्रों में पारंगत थे। अपने कार्यों के माध्यम से उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी।

देबरॉय ने 1979 से 1984 तक कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अपना एकेडमिक कैरियर शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पुणे में गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स जॉइन किया, जहां उन्होंने 1987 तक काम किया। 1987 से 1993 तक उन्होंने दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड में जिम्मेदारी संभाली। 1993 में देबरॉय वित्त मंत्रालय और यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम के एक प्रोजेक्ट के निदेशक बने। यह प्रोजेक्ट भारत के कानूनी सुधारों पर फोकस्ड था। वे 1998 तक निदेशक थे।

1994 से 1995 तक उन्होंने इकॉनोमिक अफेयर्स, 1995 से 1996 तक नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च और 1997 से 2005 तक उन्होंने राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी स्टडीज में काम किया। 2005 से 2006 तक उन्होंने पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में जिम्मेदारी संभाली, फिर 2007 से 2015 तक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में काम किया।

बिबेक देबरॉय ने न्यूज वेबसाइट द मिंट में 14 अगस्त 2023 को संविधान बदलने को लेकर एक आर्टिकल लिखा था। इस पर JDU ने कहा था कि RSS के कहने पर देबरॉय ने यह आर्टिकल लिखा था। देबरॉय ने अपने आर्टिकल लिखा था कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग ने रिपोर्ट सबमिट की थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए, जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था।

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