देश की आबादी की वृद्धि में आ सकती है रिकॉर्ड गिरावट, फिर भी रहेगा युवा राष्ट्र

मुंबई- देश की आबादी की वृद्धि में 2024 में पहली बार रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है। बावजूद इसके यह दुनिया के प्रमुख देशों की तुलना में सबसे युवा राष्ट्र बना रहेगा। एसबीआई की जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में जनगणना की शुरुआत हो सकती है, जो 2025 में पूरी होगी। हालांकि, 1872 के बाद यह पहली बार है, जब 2021 में तय जनगणना को टाल दिया गया।

एसबीआई ने मंगलवार को विशेष रिपोर्ट में कहा, 2023 में यूरोप में यूरोप में औसत उम्र 42 साल, उत्तरी अमेरिका में 38 साल, एशिया में 32 साल रहा है। वैश्विक स्तर पर यह औसत 30.4 साल का है।

रिपोर्ट के अनुसार, 1951 में देश की आबादी 36.1 करोड़ थी, जो 1.25 फीसदी बढ़ी थी। उसके बाद 1971 में यह 2.22 फीसदी बढ़कर 54.8 करोड़ हो गई। 1991 में 2.14 फीसदी की वृद्धि के साथ आबादी 84.6 करोड़, 2011 में 1.63 फीसदी बढ़कर 121.1 करोड़ और 2021 में यह 1 से 1.20 फीसदी बढ़कर 138 से 142 करोड़ रह सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से तुलना करें तो क्षेत्रवार स्तर पर उत्तरी भारत में आबादी 29 फीसदी बढ़ी है। पूर्वी भारत में 23 फीसदी, पश्चिमी क्षे6 में 22 फीसदी, दक्षिणी भारत में 12 फीसदी, मध्य भारत में 11 फीसदी और उत्तर पूर्व में चार फीसदी की तेजी आई है। उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी आबादी बढ़ी है। पैदा होने वाले शिशुओं की बात करें तो सालाना आधार पर इनकी संख्या में तेजी आई है। 2001 में 2.4 करोड़ शिशु पैदा हुए थे। 2011 में 2.5 करोड़ और 2024 में यह संख्या 2.67 करोड़ होने का अनुमान है। इसमें मध्य भारत में 27 लाख, पूर्व में 63 लाख, उत्तर पूर्व में 10 लाख, उत्तर में 76 लाख और दक्षिण में 41 लाख का अनुमान लगाया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि शून्य से 14 साल वालों की आबादी में तेज गिरावट आ रही है। 1991 में इनकी जनसंख्या 31.2 करोड़ थी, जो 2001 में 36.4 करोड़, 2011 में 37.4 करोड़ हो गई। हालांकि, 2024 में यह घटकर 34 करोड़ हो सकती है। 1991 में कुल आबादी में इनका हिस्सा 37 फीसदी था जो 2024 में घटकर 24.3 फीसदी रह सकता है। 60 वर्ष से ज्यादा की आबादी की संख्या 24 साल में दोगुना हो गई है। 1991 में इनकी संख्या 6.1 करोड़, 2001 में 7.9 करोड़, 2011 में 10.2 करोड़ और 2024 में यह 15 करोड़ हो सकती है।

कामकाजी आबादी यानी 15 से 59 साल वालों की बात करें तो इनकी संख्या 1991 में 46.5 करोड़ थी। 2001 में यह 58.6 करोड़ तथा 2011 में 73.5 करोड़ थी। 2024 में यह 91 करोड़ हो सकती है। कुल आबादी में इनका हिस्सा 2024 में बढ़कर 67 फीसदी रह सकता है। 2030 तक 100 करोड़ हो सकती है। 60 वर्ष से ज्यादा की जनसंख्या बढ़कर इस दौरान 10.7 फीसदी रहने का अनुमान है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2011 की जनगणना के आधार पर शहरी आबादी में चार गुना इजाफा हुआ है। 2011 में कुल आबादी का 31 फीसदी हिस्सा शहरों में था जो 2024 में 35.37 फीसदी होने का अनुमान है। राज्यों में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 54 फीसदी आबादी शहरों में है। महाराष्ट्र में 48.8 फीसदी, हिमाचल में सबसे कम 10.3 फीसदी, बिहार में 12.4 फीसदी और असम में 15.7 फीसदी आबादी शहरों में है।

2024 की जनगणना के नतीजे जब आएंगे तो उस समय 75-80 शहरों में दस लाख से ज्यादा आबादी होगी। 2011 में केवल 52 शहर और 1991 में सिर्फ 18 शहर ऐसे थे। केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की 100 फीसदी जनसंख्या शहरों में होगी। चंडीगढ़ की 99.7 फीसदी व दमन एवं दीव की 96 फीसदी आबादी शहरों में होगी।

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