आरबीआई को 4 पर्सेंट के महंगाई के दायरे पर फिर से विचार की जरूरत 

मुंबई- प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) के चेयरमैन डॉ. बिबेक देबरॉय अपने खुले विचारों के लिए जाने जाते हैं। वे पिछले लंबे समय से देश की अर्थव्यवस्था का अनुमान लगाने और उसमें काफी सुधार करने के ल‌िए भी जाने जाते हैं। अमर उजाला ने डॉ. ‌बिबेक देबरॉय से विशेष बात की। पेश हैं उसी के प्रमुख अंश।

सवाल: नए टैक्स सिस्टम को कोई खास रिस्पांस नहीं मिला। इस पर आप क्या कहेंगे ?
जवाब: आपने सही कहा। फिलहाल दो अलग चैनल्स हैं। एक छूट का लाभ उठाने वाला और इसका लाभ नहीं उठाने वाला। चाहे पर्सनल टैक्स भरने वाले हों या कारपोरेट वाले, बिना छूट वाले सिस्टम को किसी ने भी नहीं अपनाया है। इसलिए मेरा यह मानना है की छूट विहीन (एक्सेमप्शन लेस) सिस्टम को ज्यादा से ज्यादा आकर्षक बनाया जाना चाहिए।  इस पर अमल करने वालों को प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि इस बजट में छूट विहीन सिस्टम को और भी प्रभावी बनाया जाएगा।

सवाल: पिछले साल में महंगाई का मुद्दा काफी हावी रहा है। काफी कोशिशों के बाद आरबीआई को थोड़ी कामयाबी मिली है और यह 6 प्रतिशत से नीचे आ गया है। आप इसे किस तरह से देखते हैं?

जवाब: महंगाई से हमारा दो तरह से वास्ता पड़ा है। पहला खाद्य महंगाई से और दूसरा कमोडिटी की और पैट्रोलियम उत्पादों की बढ़ी कीमतों से।कच्चे तेल के दाम अभी दुनिया में अनिश्चित रहने वाले हैं और इससे सिर्फ हम ही नहीं पूरा विश्व चिंतित है। पर मौजूदा हालात में भी इसमें थोड़ी बहुत राहत मिली है। कितनी राहत मिली है इसे अलग-अलग पैमाने पर देखा जा सकता है। अगर हम अमर उजाला के पाठकों के नजरिए से बात करें तो उनके लिए खुदरा महंगाई ज्यादा महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि जीडीपी डिफ्लेटर द्वारा मापी जाने वाली महंगाई अगले साल में 5.5 या ज्यादा से ज्यादा 6% से अधिक नहीं होगी। जहां तक दायरे की बात है तो यह 4 से 6% तक आरबीआई द्वारा सेट किया गया है। सभी केंद्रीय बैंक बहुत सावधानी बरत रहे हैं।  

आरबीआई को मौद्रिक नीति कमिटी समय-समय पर सलाह देती रहती है। मेरे हिसाब से इस बैंड पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है क्योंकि मौजूदा हालत में 4% शायद बहुत कम है। महंगाई और वृद्धि के बीच लिंक पर काफी समय से बहस की जाती रही है। अगर महंगाई के कर्व को ऊपर नीचे करने की कोशिश की जाती है तो इसका असर विकास पर अवश्य पड़ता है। मैं फिर कहूंगा कि यह मेरी निजी राय है कि निचले बैंड 4% पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए।

सवाल: हमारे देश में 6 करोड से भी कम लोग आयकर रिटर्न फाइल करते हैं और डेढ़ करोड़ से भी कम लोग जीएसटी पर रजिस्टर्ड हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग टैक्स फाइल करने के दायरे में आएं, इसके लिए आप क्या कहना चाहते हैं?

 

जवाब: मैं आपसे सहमत हूं। मेरे हिसाब से देश के कमाई करने वाले सभी नागरिकों को आयकर फाइल करनी चाहिए। टैक्स फाइल करने का मतलब यह नहीं कि आपको टैक्स भरना ही है। आयकर रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या थोड़ी बढ़ी है। फिर भी देश की आबादी देखते हुए यह बहुत कम है। इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कई मामलों में टैक्स की चोरी भी होती है।

टैक्स की चोरी करना और उसे नजरअंदाज करना दो अलग-अलग बातें हैं। चोरी करना गैरकानूनी है पर इसका अवॉइडेंस करना यह बताता है कि आपने आपके समक्ष उपलब्ध छूट का लाभ उठाया है और टैक्स नहीं भरा है। ऐसे में सिर्फ वेतन भोगी करदाताओं की ओर नहीं देखा जाना चाहिए जिनके पास छूट पाने के बड़े सीमित मौके होते हैं। ज्यादातर छूट का फायदा कंपनियां या असंगठित व्यापारियों द्वारा उठाया जाता है जो पर्सनल इनकम टैक्स रूल्स के अंतर्गत आते हैं। अगर हम करदाताओं का दायरा बढ़ाना चाहते हैं तो हमें धीरे-धीरे ऐसा सिस्टम लाना चाहिए जहां कोई छूट ना मिले।

सवाल: साल 2047 में जब हम आजादी के 100 साल पूरे करेंगे तो आपके हिसाब से हमें किस तरह आगे बढ़ना चाहिए कि हम एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरें और देश के हर नागरिक को बुनियादी जरूरतें मुहैया कराई जा सके?
जवाब: आपने बड़े मुद्दों पर सवाल पूछा है। इसके लिए हमें केंद्र सरकार के एग्जीक्यूटिव आर्म के अलावा राज्य सरकार और उनके खर्च, जुडिशरी, संसद और राज्य सरकार की विधायिका जैसे सभी मुद्दों को देखना होगा।

सवाल: खाद्य सुरक्षा को एक साल बढ़ाया गया है और 80 करोड़ लोगों को हर महीने राशन बांटा जा रहा है। क्या वास्तव में ऐसा है कि देश में 80 करोड़ लोग गरीब हैं और उन्हें मुफ्त में राशन दिया जाना चाहिए?
जवाब: गरीबी का आकलन करने के अलग-अलग तरीके हैं। उसके लिए डाटा की जरूरत होती है। अभी भी तेंदुलकर पावर्टी लाइन को ही इसका पैमाना माना जाता है। इसके लिए 2011-12 के आधिकारिक आंकड़े को आधार माना गया है। गरीबी का आकलन करने के लिए 2011-12 के बाद कोई  आधिकारिक आंकड़े एकत्र नहीं किए गए। इस लिहाज से जब भी गरीबी का आकलन किया जा रहा है वह मान्यताओं या अनुमानों के आधार पर किया जा रहा है।  

जब 2011-12 के डाटा का इस्तेमाल अब हो रहा है तो इसमें कुछ अनुमान भी शामिल है। इसलिए तेंदुलकर कमेटी हो, यूएनडीपी हो या फिर मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स हो, अलग-अलग पैमाने से इसकी अलग-अलग संख्या होगी। पर अमूमन सभी में 10 से 20% लोग गरीबी रेखा के नीचे पाए गए हैं। तो आपका सवाल यह है कि क्या इतनी बड़ी संख्या में गरीब हैं और वे मुफ्त में राशन के हकदार हैं? तो इसका जवाब है नहीं। पर इसके लिए हमें कानून बदलने की जरूरत होगी।

सवाल: कृषि सेक्टर पर आधी देश की आबादी निर्भर है। क्या यहां किसी सुधार की जरूरत है ?
जवाब: कृषि के क्षेत्र में देखा जाए तो उतने सुधार नहीं हुए हैं जितने कि होने चाहिए थे। इससे संबंधित ज्यादातर कायदे कानून संविधान के सातवें शेड्यूल में हैं जो राज्य सरकारों के दायरे में है। इसलिए यह मूलभूत रूप से राज्यों का विषय है।

सवाल: तो इसमें क्या किया जाना चाहिए ?
जवाब: इसके लिए सुधार तो अवश्य किया जाना चाहिए। सबसे पहले तो जमीन के रिकॉर्ड को अपडेट करना होगा और उसका टाइटल ठीक करना होगा। कई ऐसे किसान हैं जिनके पास जमीन तो नहीं है पर पेशे से किसान हैं। हमें उनके उत्पादों का वितरण और उनके लिए खेतों से बाहर रोजगार पैदा करने की जरूरत होगी।

सवाल: डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए के एक्सचेंज रेट का दायरा क्या होना चाहिए?
जवाब: इसका सही सही जवाब देना मुश्किल है, क्योंकि एक्सचेंज रेट मार्केट फोर्स तय करता है। हालांकि इसमें आरबीआई का थोड़ा-बहुत दखल जरूर होता है। यह चालू खाता घाटा पर भी निर्भर करता है। विश्व के बाजार में होने वाला उतार-चढ़ाव भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। 

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