हम महामारी के डोमिनो इफ़ेक्ट पर रोक कैसे लगा सकते हैं?

मुंबई– कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्थाओं के सभी क्षेत्रों और दिग्गजों को हिलाकर और उनकी आँखें खोलकर रख दी है। और तो और, इसने पूरी दुनिया के समक्ष एक बुनियादी प्रश्न खड़ा कर दिया है और वो यह कि बीमा कंपनियों को जोखिम को कवर करने और ग्राहकों के लिए हमेशा खड़े रहना चाहिए, खासकर तब, जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। 

इस महामारी ने आश्चर्यचकित कर दिया है और सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम अपने ग्राहकों को बेहतर तरीके से सुरक्षित रखने के लिए और क्या कर सकते हैं? कोविड-19 के उपचार खर्चों को कवर करने वाली स्वास्थ्य क्षतिपूर्ति नीतियों (health indemnity policies) के अलावा, कोई भी बीमा प्रोडक्ट उन राहत की पेशकश नहीं कर सकता है जो ग्राहकों को इस चुनौतीपूर्ण समय का सामना करने के लिए आवश्यक हैं। 

क्रिसिल की मई 2020 की रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था पर लॉकडाउन के कारण 26 अरब अमेरिकी डॉलर का असर आंका गया था। इसने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए भारत के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद के पूर्वानुमान को लगभग आधा कर दिया है। इससे हमें पता चलता है कि कैसे महामारी ने हमारी अर्थव्यवस्था को कितना पीछे धकेल दिया है। इसने हमारे आयात और निर्यात को प्रभावित किया है, हमारे देश में बेरोजगारी अप्रैल 2020 में 26% बढ़ गई और रिपोर्ट के अनुसार फरवरी से घरेलू आय लगभग 9% तक घटकर मध्य अप्रैल 2020 में 45.7% हो गई।  

इस महामारी से हमने क्या सीखा है ? 

अधिकांश कारखानों, संस्थानों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, निर्माण स्थलों आदि को लॉकडाउन अवधि के दौरान बंद करना पड़ा, जिससे प्रवासी मजदूरों को अपने घर वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके अतिरिक्त, कई कंपनियां अपनी सीमितताओं के चलते लॉक डाउन के प्रभाव को नहीं झेल पाईं। इससे लोगों को अपनी नौकरी खोनी पड़ी या अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए वेतन में कटौती लेने के लिए कहा गया या अब भी कहा जा रहा है। इस महामारी ने हमें उन समस्याओं और खामियों की पहचान करने में मदद की है जिन पर हमें आगे काम करने की जरूरत है। यह हमें पता चला कि हम कहां खड़े है और इन समस्याओं का कैसे समाधान किया जा सकता है। 

अब जब हम इस बात से अवगत हो गए हैं कि हमारे समाज और अर्थव्यवस्था पर महामारी का भारी प्रभाव पड़ सकता है, तो सवाल यह है कि हम इससे क्या सीख सकते हैं? क्या हमारे पास ऐसा समाधान है जो हमें इससे तेजी से रिकवरी करने में मदद कर सकता है ? क्या लॉक डाउन में नौकरी खो देने के बाद भी हम बिजनेस में या आमदनी में हुई कमी की आर्थिक भरपाई कर सकते हैं ? क्या इस तरह की महामारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर व्यक्तियों, परिवारों, व्यवसायों, अर्थव्यवस्थाओं और समाज के बीच कोई सेतु बनाने का कोई तरीका हो सकता है? मुझे लगता है कि हां, हो सकता है। हम निश्चित रूप से बेहतर तरीके से तैयार हो सकते हैं जब हमें भविष्य में ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े। महामारी का एक पूल बनाकर।  

अब महामारी पूल (pandemic pool) क्या है ? 

हम फण्ड का पूल बनाकर अर्थात फंड जुटाकर इससे एक इमरजेंसी प्रोग्राम तैयार कर सकते हैं जिससे किसी भी महामारी से होने वाले नुकसान के कारण अधिकांश का कवर मिल जाये। आइए देखें कि हम इस विचार को कैसे मूर्त रूप दे सकते हैं। आज कोई भी व्यावसायिक रुकावट नीति, जिसे स्टैंडर्ड प्रॉपर पालिसी के साथ खरीदा जाता है, उसमें महामारी से लगने वाले लॉकडाउन और इसके कारण होने वाले नुकसान को कवर नहीं किया जाता है। हम कॉर्पोरेट्स के लिए प्रॉपर्टी पॉलिसीस के साथ-साथ एक अनिवार्य ऐड-ऑन कवर के रूप में महामारी कवर बना सकते हैं। सरकार द्वारा महामारी के कारण लॉकडाउन की घोषणा करने के तुरंत बाद यह कवर शुरू हो जाएगा। 

इस ऐडऑन के तहत, लॉकडाउन के कारण कॉरपोरेट्स के विभिन्न स्टैंडिंग चार्जेज जैसे कर्मचारी वेतन, परिसर का किराया आदि को कवर किया जा सकता है। यह अधिकतम देयता सीमा के साथ लॉकडाउन के शुरुआती 2-3 महीनों के लिए अधिकतम क्षतिपूर्ति कवर हो सकता है। इस प्रकार, वेतन में कटौती, छंटनी, व्यापार में घाटे से उबरने में मदद मिलेगी और कंपनियों को महामारी के प्रभाव से रिकवर होने का एक टूल मिलेगा। 

रिटेल बेसिस पर, व्यक्ति इसे अपने आवास/होम इन्सुरेंस पॉलिसी के साथ-साथ ऐड-ऑन कवर के रूप में खरीद सकते हैं। यह अनिवार्य नहीं होगा और यह एक ग्राहक के ऊपर होगा कि वे इसका विकल्प चुनते हैं या नहीं। नौकरी खो जाने या किसी विशेष परिस्थितियों में इस ऐड-ऑन के तहत, बीमाकर्ता शुरुआती 2-3 महीनों के लिए अपने होम लोन के लिए ग्राहक को मासिक ईएमआई का भुगतान कर सकता है। इस प्रकार, लॉकडाउन अवधि के दौरान अपने होम लोन का ख्याल रखकर किसी व्यक्ति पर वित्तीय बोझ को कम किया जा सकता है।  

इस पूल की फंडिंग पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए की जा सकती है जिसमें सरकार और कंपनियां दोनों ही इस पूल में योगदान दे सकते हैं। हम सभी कंपनियों के लिए सीएसआर कंपोनेंट से इस पूल में योगदान करने पर विचार कर सकते हैं, इसलिए उन्हें इसे एक अलग खर्च के रूप में देखने की जरूरत नहीं होगी। इस तरह हम एक अच्छा खासा पूल बना सकते हैं। इसके बाद कॉर्पोरेट अपनी प्रॉपर्टी पॉलिसी के एक हिस्से के रूप में महामारी ऐड-ऑन कवर के लिए भुगतान करने वाले प्रीमियम को अपने सीएसआर फंड से दे सकते हैं। 

इसलिए, इस महामारी कवर की ओर भुगतान किए गए प्रीमियम के लिए कंपनी पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता है जो महामारी पूल की ओर जाता है। हम सीमित क्षमता के लिए पुनर्बीमा समर्थन (reinsurance support) की भी तलाश कर सकते हैं जो उन विशिष्ट कॉर्पोरेट के लिए हो सकता है जो लाइबिलिटी की लंबी अवधि का विकल्प चुनना चाहते हैं, यानी 3 महीने से अधिक। 

उदाहरण के लिए, महामारी पूल लॉकडाउन के शुरुआती 2-3 महीनों के लिए कवर प्रदान कर सकता है और लॉस ट्रीटी की अधिकता जैसे मामले में उस अवधि के बाद पुनर्बीमा समर्थन सक्रिय किया जा सकता है। इसमें जनरल इंश्योरेंस कंपनियां भी योगदान दे सकती हैं जैसा कि वे आतंकवाद/परमाणु पूल के मामले में करती हैं। 

एक बार जब पूल फंड काफी मजबूत हो जाते हैं और यह आत्मनिर्भर हो जाता है, तो सरकार धीरे-धीरे पूल में अपना योगदान कम कर सकती है और महामारी के प्रसार को कम करने की दिशा में अपना ध्यान केंद्रित कर सकती है। इसके अलावा, जैसा कि पूल सरप्लस हर कुछ वर्षों में बढ़ता है, हम बीमित व्यक्ति के लिए देयता की सीमा बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं। 

संकट में हमेशा एक सीख छिपी होती है और कोई ऐसा संकट फिर से दोहराया जाता है तो ऐसी सूरत में मौजूदा संकट हमें मजबूत बनने का अवसर प्रदान करता है। महामारी पूल भी एक ऐसी ही सीख है, जो हमारी अर्थव्यवस्था और हमारे समाज को पतन से बचाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। मुझे यकीन है कि इस महामारी पूल के माध्यम से हम हमारी अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान पहुंचाए बिना किसी भी महामारी का डट कर सामना कर सकते हैं। इस प्रकार, मौजूदा महामारी के चेन रिएक्शन के प्रभाव को रोकने के लिए, हमें मजबूती के साथ एकजुट होकर खड़ा होना होगा जिससे हमारा समाज सुखी रहे और अर्थव्यवस्था निर्बाध गति से आगे बढ़ती रहे। 

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