आरबीआई गवर्नर बोले, रुपये का स्तर आरबीआई तय नहीं करता, यह बाजार पर निर्भर
मुंबई। डॉलर के मुकाबले रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचने की चिंताओं के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, केंद्रीय बैंक घरेलू मुद्रा का कोई भी स्तर तय नहीं करता है। खुद उसे तय करना है कि वह किस स्तर तक जा सकती है। इसके लिए वह स्वतंत्र है। मौद्रिक नीति की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में रुपये के अवमूल्यन पर गवर्नर ने कहा, हम किसी भी मूल्य स्तर या बैंड को लक्षित नहीं करते हैं। हम बाजारों को कीमतें तय करने देते हैं।
मल्होत्रा ने कहा, हमारा मानना है कि बाजार खासकर लंबी अवधि में, बहुत कुशल होते हैं। यह एक बहुत ही गहन बाजार है। बाजार में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं और आरबीआई का प्रयास हमेशा किसी भी असामान्य या अत्यधिक अस्थिरता को कम करने का होता है। हम इसी दिशा में प्रयास करते रहेंगे। क्या डॉलर-रुपये स्वैप का उद्देश्य रुपये का अवमूल्यन रोकना है? इस पर मल्होत्रा ने कहा, यह एक तरलता उपाय है। इसका उद्देश्य रुपये को सहारा देना नहीं है।
देश में आगे अच्छा निवेश आएगा
गवर्नर ने कहा, देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। चालू खाता प्रबंधनीय है। अर्थव्यवस्था की मजबूत बुनियाद को देखते हुए देश में आगे चलकर अच्छा निवेश देखने को मिलेगा। 28 नवंबर तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 686.2 अरब डॉलर था। यह 11 महीने से अधिक के आयात के लिए काफी है।
रेपो दर में कटौती के प्रभाव पर अब रहेगा ध्यान
मल्होत्रा ने कहा कि रेपो दर में 0.25 फीसदी की कटौती के बाद अब ध्यान इस कटौती का वास्तविक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने पर केंद्रित होगा।
फरवरी में फिर सस्ते हो सकते हैं कर्ज
बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई ने दरें घटाकर चौंका दिया है। केंद्रीय बैंक फरवरी में एक बार और दरों में 0.25 फीसदी की कमी कर सकता है। उसके बाद दरों को घटाने का सिलसिला अगले दो साल तक रुक सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आरबीआई को व्यापार संबंधी अनिश्चितताओं के कारण विकास के दृष्टिकोण पर कुछ जोखिम नजर आ रहे हैं, लेकिन वह मुद्रास्फीति के अनुमान को लेकर आश्वस्त है। ऐसे में फरवरी में कटौती की गुंजाइश एक बार और है। आरबीआई का आकलन है कि दूसरी छमाही में वृद्धि 6.8% व महंगाई औसतन 1.6% रहेगी, जो दरों में कटौती का अवसर प्रदान करती है।
एफडी पर भी घटेंगी दरें
आरबीआई के फैसले के बाद बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी पर भी ब्याज दरें घटा सकते हैं। अभी बड़े बैंक 7 फीसदी तक ब्याज दे रहे हैं। नए साल से इन दरों में और कटौती होगी जो 6.5 फीसदी तक जा सकती है। इससे बैंकों में पैसे रखने वालों को नुकसान होगा।
कुछ संकेतकों में कमजोरी के लक्षण
गवर्नर मल्होत्रा ने कहा, उच्च आवृत्ति संकेतक संकेत देते हैं कि दिसंबर तिमाही में आर्थिक गतिविधियां स्थिर रहेंगी। हालांकि कुछ प्रमुख संकेतकों में कमजोरी के कुछ संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। जीएसटी दरों में कटौती और त्योहारी खर्च ने अक्तूबर-नवंबर के दौरान घरेलू मांग को बढ़ावा दिया। ग्रामीण मांग मजबूत बनी हुई है। शहरी मांग में लगातार सुधार हो रहा है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं

