लंदन के हीथ्रो-गैटविक और न्यूयॉर्क के जेएफके-लागार्डिया की तर्ज पर दिल्ली-जेवर एयरपोर्ट

मुंबई : नई मुंबई और जेवर हवाई अड्डा एक अलग तरह का अनुभव देने के लिए तैयार हैं। नई मुंबई एयरपोर्ट के उदघाटन के बाद इस महीने के अंत में जेवर का भी उदघाटन होना है। जेवर देश का एक ऐसा हवाई अड्डा बनने की राह पर है जो दुनिया के बड़े शहरों के बराबर कामयाबी का इतिहास रचेगा। यह ठीक वैसा ही होगा, जैसे लंदन के हीथ्रो-गैटविक और न्यूयॉर्क के जेएफके-लागार्डिया के एयरपोर्ट को माना जाता है। नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा उत्तर प्रदेश की 1,300 हेक्टेयर जमीन पर फैला है।

जैसे-जैसे उद्घाटन नजदीक आता जा रहा है, तैयारी पूरी हो रही है। रडार सिस्टम का परीक्षण हो रहा है। रनवे की सतहों की अंतिम जांच की जा रही है। टर्मिनल की चमक बढ़ाई जा रही है। यह वह चरण है जिसे विमानन उद्योग में ऑपरेशनल रेडीनेस एवं एयरपोर्ट ट्रांसफर (ओआरएटी ) कहा जाता है। इसमें हर संभावित स्थिति का अनुकरण किया जाता है, चाहे वह सामान की आवाजाही हो या आपातकालीन निकासी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए जेवर केवल परिवहन का ढांचा नहीं है, यह उनके “ट्रिलियन-डॉलर स्टेट इकॉनमी” के दृष्टिकोण का हिस्सा है।

भारत अमेरिका और चीन के बाद अब तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार है। फिर भी, देश की अधिकांश हवाई आवाजाही कुछ मुट्ठीभर हवाईअड्डों तक सीमित है। जेवर इस दबाव को तोड़ने का प्रयास है। दिल्ली के साथ मिलकर यह एक डुअल-हब सिस्टम बनाएगा, जैसा लंदन के हीथ्रो-गैटविक या न्यूयॉर्क के जेएफके-लागार्डिया मॉडल में है। कम कीमत वाली एयरलाइंस और क्षेत्रीय उड़ानें जेवर से संचालित हो सकती हैं। लंबी दूरी और प्रीमियम उड़ानें दिल्ली से जारी रहेंगी। यह भारत की हवाई कनेक्टिविटी की सोच को बदल सकता है।

हालांकि जोखिम बड़ा है। हवाईअड्डा बनाना केवल आधी सफलता है। यात्रियों, एयरलाइनों और मालवाहक कंपनियों को आकर्षित करना असली चुनौती है। जेवर को दिल्ली से जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे और मेट्रो लिंक अब भी अधूरे हैं। ये समय पर पूरे नहीं हुए, तो यह महत्वाकांक्षा प्रतीकात्मक रह सकती है। जेवर का समय बिल्कुल अनुकूल कहा जा सकता है। विमानन विश्लेषकों का अनुमान है कि अगले दशक में जेवर दक्षिण एशिया का प्रमुख लॉजिस्टिक हब बन सकता है। नोएडा के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैन्युफैक्चरिंग जोन से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को जोड़ते हुए। लुफ्थांसा, एमिरेट्स, और एअर इंडिया जैसी एयरलाइंस यहां संचालन की संभावना पर अध्ययन कर रही हैं।

जेवर यात्रियों के लिए अनुभव पूरी तरह बदलेगा। तेज चेक-इन, डिजिटल बोर्डिंग और दिल्ली की भीड़ से मुक्त एक शांत अनुभव। विमानन उद्योग में समय और सुविधा का यह नया वादा बेहद आकर्षक है। जहां कभी खेती की मिट्टी थी, वहां अब इंजनों की गूंज गूंजने को तैयार है। इस नए हवाई अड्डे से भारत अब विमानन दिग्गजों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए तैयार है। न केवल एक बाजार के रूप में जिसे दुनिया सेवा दे, बल्कि एक ऐसी शक्ति के रूप में जो उपमहाद्वीप की उड़ान की दिशा ही बदल सकती है।

जेवर की कहानी नौकरशाही धैर्य का एक पाठ है। पहली बार 2001 में इसका विचार उभरा, फिर राजनीतिक ठंडे बस्ते में चला गया। 2016 में पुनर्जीवित हुआ और 2017 में अंतिम स्वीकृति मिली। दो दशकों की प्रशासनिक जटिलताओं के बाद जब इस परियोजना की नींव रखी गई, तब इसकी दृष्टि चौंकाने वाली थी। छह रनवे 2050 तक हर साल 7 करोड़ यात्रियों को संभाल सकें। यह इसे दुनिया के सबसे व्यस्त विमानन केंद्रों में शामिल कर देगा। स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख एयरपोर्ट इंटरनेशनल एजी को डेवलपर चुना जाना इस संकल्प की गंभीरता को दर्शाता है। 2024 के मध्य तक इसका पहला चरण एक रनवे और 1.2 करोड़ यात्रियों के लिए बना टर्मिनल तैयार हो चुका था।

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